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(GMT+08:00) 2006-01-23 11:07:43    
फोटोग्राफ़र जाओ बो और उन के माता-पिता

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पिछले तीस वर्षों में मशहूर चीनी फ़ोटोग्राफ़र जाओ बो ने अपने माता-पिता के हज़ारों फ़ोटो खींचे, जो उन के जीवन का ब्यौरा देते हैं। जाओ बो की"मेरे माता-पिता"शीर्षक वाली फ़ोटो प्रदर्शनी की बड़ी धूम मची। चीनी मीडिया ने इस का उच्च मूल्यांकन करते हुए इसे"पूरे चीन पर प्रभाव डालने वाली प्रदर्शनी"बताया।

अपने माता-पिता के प्यार को जाओ बो ने बहुत गहराई से महसूस किया। वर्ष 1974 में जाओ बो ने एक साथी कर्मचारी के पुराने कैमरे से अपने माता-पिता का पहला फोटो खींचा। जाओ बो ने कहा कि उनके पास तब तक अपने माता-पिता का कोई फ़ोटो नहीं था। इसके बाद जब भी उन के पास कैमरा होता, वे तुरंत अपने माता-पिता के फ़ोटो खींचना चाहते। जाओ बो को याद है कि पहली फ़ोटो खींचे जाने के समय उनके माता-पिता शर्माये भी। माता ने इसके लिए नए कपड़े पहने, जो त्योहार के समय पहने जाते हैं। पिता ने अपनी युवावस्था का सूट पहना। उन के लिए फोटो खींचना बड़ी भव्य रस्म थी।

इस के बाद घर में रहने के दौरान जाओ बो अपने माता-पिता के फोटो खींचने लगे। फोटो खींचने की तकनीक को उन्नत करने के लिए जाओ बो अखबारों में छपे फोटो की नकल करते और यही सोचते कि एक दिन वे एक पेशेवर फोटोग्राफ़र बन सकेंगे। वर्ष 1983 में जाओ बो ने ज़ी बो कालेज में दाखिला लिया। उन्होंने कालेज में फोटोग्राफ़र संघ की स्थापना की और अपने सहपाठियों के साथ जगह-जगह जाकर फोटो खींचने लगे। कालेज से स्नातक होने के बाद वे एक समाचार एजेंसी में फ़ोटो-संवाददाता बने। पर इस समय भी उन का अपने माता-पिता के फोटो खींचना जारी रहा और धीरे-धीरे उन के मन में यह विचार आया कि वे कैमरे के जरिए अपने माता-पिता की छवि सुरक्षित कर सकते हैं। जाओ बो ने कहा

"बचपन में मैं अपने माता-पिता को बहुत प्यार करता था और अक्सर यह सोच कर डरता भी था कि मैं उन्हें खो भी सकता हूं। जब मैं बड़ा हुआ तो मेरे माता-पिता बूढ़े हो गए। मैंने जब यह सोचा कि माता-पिता को अपने पास सदा कैसे रख लकता हूं तो मुझे लगा कि कैमरा ही इसका सब से अच्छा उपाय है। मैं कैमरे के प्रयोग से उन की मुस्कराहट, क्रोध, और सुख-दुख हमेशा के लिए बरकरार रख सकता था।"

उस वक्त हमारे छोटे से गांव में कैमरे बहुत कम थे। कई लोगों ने तो पूरी जिंदगी में कैमरा देखा तक नहीं था। जाओ बो जब कभी अपने माता-पिता के फ़ोटो खींचते तो कुछ गांववासियों को इससे ईर्ष्या भी होती। लगातार फोटो खिंचवाने के बाद माता-पिता की शर्म भी दूर हो गई और उन्हें फोटो व कैमरा अपने जीवन का एक अंग लगने लगा। यों उन्हें यह नहीं मालूम था कि उनका छोटा बेटा उन के फ़ोटो क्यों खींचता है। वे बस अपने बेटो को प्यार करते थे और उसके काम को समर्थन दे रहे थे। एक बार सर्दियों में जाओ बो की 80 वर्षीय माता बीमार पड़ीं और डाक्टर ने कहा कि वे सिर्फ़ दो घंटे ही जिंदा रहेंगी। जाओ बो को इससे बहुत दुख हुआ। वे अपनी माता का अंतिम फ़ोटो खींचना चाहते थे । पिता ने सुझाया कि यह फोटो खींचने के लिए एक बड़े बल्ब का प्रयोग किया जाये। बड़े बल्ब की चमकदार रोशनी में जाओ बो ने अपने पिता और बीमार माता का फोटो खींचा। पर दूसरे दिन जाओ बो की माता आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो गईं। इस की याद करते हुए जाओ बो ने कहा

"मुझे लगा कि मेरी मां तब हम से विदा नहीं लेना चाहती थीं, वे और ज्यादा फोटो खिंचवाना चाहती थीं।शायद मेरे कैमरे ने उन्हें वापस बुलाया, और वे और पांच साल जिंदा रहीं। मेरा मानना है कि मेरे फ़ोटो ने मां के भीतर जीवनी शक्ति को संचार हुआ। उन्हें इस पर गर्व रहा कि उनके बेटे ने उन के लिए अनगिनत फोटो खींचे और वे खुश भी थीं। मेरी मां 92 वर्ष की उम्र तक जिंदा रहीं और पिता 88 वर्ष तक।"

जाओ बो की फोटो खींचने की तकनीक दिन ब दिन बेहतर हुई तो वे राजधानी पेइचिंग में आकर काम करने लगे। इस दौरान वे हर माह अपने जन्मस्थान लौटकर अपने माता-पिता के फ़ोटो खींचते रहे। उन की चाह माता-पिता को उनके देहांत से पूर्व कोई यादगार तोहफ़ा देने की थी। वर्ष 1998 में जाओ बो के एक फोटो को अंतरराष्ट्रीय रीति-रिवाज़ फोटो प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार हासिल हुआ। उन्होंने इस पुरस्कार से अपनी माता के 86वीं जन्मदिन पर चीनी ललित कला भवन में "मेरे माता-पिता"नामक फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया। वे अपनी माता को पीठ पर लेकर फोटो प्रदर्शनी दिखाने भी लाए। यह एक सीधे-सादे किसान दंपति के लिए बड़े गौरव की बात थी।

वर्ष 2000 में जाओ बो ने डिजिटल कैमरे से अपने माता-पिता के फोटो खींचना शुरू किया। उनका देहांत होने तक जाओ बो उन के 12 हज़ार फोटो खींच चुके थे और उनसे छै सौ घंटे के वीडियो कैसेट बना चुके थे। जाओ बो ने फोटो और वीडियो कैसेटों के जरिए न सिर्फ़ अपने माता-पिता के जीवन को सफल साबित किया, चीनी ग्रामीण जीवन में आये परिवर्तन की भी पुष्टि की। विशेषज्ञों ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जाओ बो की रचनाओं ने उनके माता-पिता की छवि ही नहीं एक पूरे काल की छवि बरकरार रखी है।

माता-पिता के देहांत के बाद जाओ बो आधुनिक उपकरणों से खींचे गए उनके फोटो देखने से डरते हैं। उन का कहना है

"आज मैं बहुत दुविधा में हूं। तीस वर्षों तक मैं ने अपने माता-पिता की छवि को बरकरार रखने की कोशिश की। लेकिन उन के देहांत के बाद, लम्बे समय तक मैं उनकी फोटो देखने से डरता रहा। मैं उन के बुढ़ापे के फोटो देखने से डरता हूं, लेकिन कभी-कभी देखना भी चाहता हूं।अब मेरे सपनों में मेरे माता-पिता की छवि जिंदा है।"

हमारे संवाददाता के साथ साक्षात्कार के दौरान जाओ बो की आंखें भर आईं। उन्होंने कहा कि पहले वे हर माह एक बार घर वापस जरूर जाते थे, लेकिन अब जन्मस्थान लौटने का कोई कारण बाकी नहीं रहा है, इस से उन्हें दिन खोखले लगते हैं।

जाओ बो अब भी फोटो खींचना जारी रखे हुए हैं। वे अपने माता- पिता के फोटो को सलीके से रखते हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य में वे इनका एक संग्रह प्रकाशित करेंगे, जिसे वे दुनिया भर के माता-पिताओं को समर्पित करेंगे।