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बहुत पहले की बात थी , एक अमीर भिक्षु और एक गरीब भिक्षु थे । एक दिन गरीब भिक्षु ने अमीर भिक्षु से कहा।
मैं बौध धर्म के तीर्थ स्थल नान हाई जाना चाहता हूं , आप की क्या राय है । धनी भिक्षु ने जवाब में कहा , नानहाई यहां से बहुत दूर है ।
वहां जाने आने में कई हजार ली का रास्ता तय करना है , वहां जाने के लिए आप के पास कौन सा साधन उपलब्ध है । गरीब भिक्षु ने कहा , मेरे लिए पानी भरने का एक बोतल और खाना खाने का एक कटोरा काफी है ।
अमीर भिक्षु ने परिहाश मार कर कहा कि कुछ साल पहले मैं ने भाड़े पर एक जहाज ले कर तीर्थ ना न हाई सागर जाने की ठान ली थी ।
लेकिन धनी होने पर भी अब तक मैं ने यह तौयारी पूरी नहीं की । तो एक बोतल और एक कटोरा के साथ आप क्या कर सकते हैं , आप के लिए नान हाई जाना दिवास्वप्न होगा ।
एक साल के बाद अमीर भिक्षु जहाज भाड़े पर लेने के लिए पैसा जुटाने में अभी भी लगा रहा था कि गरीब साक्षु नानहाई सागर की तीर्थ यात्रा पूरा कर वापस आ चुका था ।
दोस्तो , कहते हैं कि खाली संकल्प करने से ज्यादा काम आता है ठोस काम करना ।
बेमत लब का तर्क वितर्क शीर्षक नीति कथा
एक दिन दोनों भाई शिकार करने घास मैदान चले गए , दूर आकाश में जंगली हंसों का एक झुंड नजदीक उड़ने आ रहा नजर आया ।
दोनों भाई अपना अपना तीर को राजहंस की ओर साध कर रहे थे कि बड़े भाई की बात छिड़ी , देखो , भाई , इस मौसम में जंगली हंस का मांस बड़ा ताजा और स्वादिष्ट है , उसे पानी में उबाल कर खाने से मजा आएगा । छोटा भाई ने भाई के सुझाव का विरोध किया , पालतू हंस का मांस उबाल कर पकाया जाता है , लेकिन जंगली हंस का मांस भुन कर पकाया जाने से अधिक मजेदार है ।
बड़े भाई ने पके लहजे में कहा । इस बार मेरा सुझाव चलेगा , उसे आग पर भुन कर पकाया जा एगा । छोटा भाई अपनी जिद्द पर कायम रहा । इस तरह दोनों अपनी अपनी राय पर तुले रहे और आपस में वादविवाद जारी रहा । अंत में दोनों भाई वापस गांव के मुखिया के सामने जा पहुंचे , वृद्ध मुखिया ने उन के झगड़े को सुलझने का यह उपाय रखा कि जंगली हंस का आधा भाग उबाला जाए और आधा भाग भुन दिया जाए । दोनों भाई राजी हो गए और फिर घास मैदान वापस लौटे , इस वक्त आकाश में किसी जंगली हंस की छाया भी नहीं रह गयी।
दोस्तो , किसी काम को पूरा करने से पहले बेकार का तर्क वितर्क में लग जाने से यही परिणाम निकलना स्वाभाविक है । हमें खोखली विवाद से बचना चाहिए ।
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