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चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2006-01-16 14:58:57    
पश्चिमी चीन की अल्पसंख्यक जातियां

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चीन में कुल 56 जातियां रहती हैं। हान इन में प्रमुख है, उस की जन संख्या सारे देश की जन संख्या की 93 प्रतिशत हैं। अन्य 55 जातियों की जन संख्या हान जाति की तुलना में अपेक्षाकृत कम है, इसलिए, उन्हें अल्प संख्यक जातियां माना गया । चीन की अधिकांश अल्पसंख्यक जातियां चीन के पश्चिमी क्षेत्र में एकत्र हैं। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को उत्तरी चीन की मंगोल जाति तथा दक्षिण पश्चिमी चीन की अन्य अल्पसंख्यक जातियों की जानकारी दे रहे हैं।

चीन की मंगोल जाति उत्तरी चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत प्रदेश में रहती है। चीन की अल्पसंख्यक जातियों में मंगोल जाति की जन संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, यह 40 लाख के आसपास है। विस्तृत घास मैदानों में रहने वाले मंगोल लोग आम तौर पर खुले व उदार होते हैं। गर्मियों के मौसम में जब घास मैदान में वनस्पति से लदे होते हैं, तब वहां परम्परागत मंगोल मेले--- नादामू का आयोजन किया जाता है। नादामू चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत प्रदेश समेत देश के अन्य स्थलों में रहने वाले मंगोलों का सब से महत्वपूर्ण त्यौहार है । वह आम तौर पर तीन दिन चलता है।

मंगोल भाषा में नादामू का अर्थ है खेल या मनोरंजन । चीन के विभिन्न स्थलों में आयोजित होने वाले बड़े व छोटे नादामू समारोहों में मंगोल लोग सर्वप्रथम अच्छी फसल की प्रार्थना करते हैं। और इस रस्म के बाद कुश्ती, घुड़ दौड़ , तीरेदानी आदि प्रतिस्पर्द्धाओं में भाग लेते हैं। रात को , घास मैदान मधुर संगीत से गुजर उठता है, पुरुष मांस खाते गपशप करते हैं, और युवति अलाव अग्नी के आसपास यां नाचती हैं। इस तरह वे लोग इस त्यौहार की खुशी मनाते हैं। यदि इस दौरान आप उन के बीच बैठे हों, तो जरुर उन की खुशी व जोश से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे।

अब चलें, दक्षिण पश्चिमी चीन की ओर । जहां चीन की 30 से ज्यादा अल्प संख्यक जातियां रहती हैं, इस में च्वांग, माओ ,याओ ,तुंग और बेई आदि जातियों की जन संख्या कई लाख से ऊपर है। इस समय आप जो गीत सुन रहे हैं, वह तुंग जाति की लड़कियों की प्रस्तुति है।

तुंग जाति मुख्य रुप से क्वे च्ओ प्रांत में रहती है, वह एक बड़ी संगीत प्रेमी है । और वाद्यों का इस्तेमाल किये के बिना मधुर स्वर उत्पन्न करने में सक्षम हैं।

दक्षिण पश्चिमी चीन के क्षेत्र अनेक पहाड़ी है, वहां का मौसम न तो बहुत गर्म है और न ही वही नमी है। इन क्षेत्रों में रहने वाली विभिन्न जातियों के लोगों में कुछ समानताएं पाई जाती हैं। मिसाल के लिए, उन के मकान आम तौर पर लकड़ी या बांसू से बने होते हैं , वस्त्र हाथों से बुने होते हैं और सिर पर वे चांदी के जेवर पहनते हैं।

व्यन नान प्रांत एक ऐसा प्रांत है ,जहां 25 अल्प संख्यक जातियां रहती हैं।बेई जाति के लोग मुख्य रुप से इस के शहर दा ली के बेई स्वायत प्रिफेक्चर में एकत्र हैं। बेई जाति के लोगों को सफेद रंग बहुत पसंद है। उन के वस्त्र और मकान सब सफेद रंग के होते है। दा ली प्रिफेक्चर में र हेई नामक एक बड़ा दालाब है।र हेई के तट पर एक छांग शेन नामक पहाड़ है।

पर्यटक नावों पर सवार हो कर इन के बीच आराम से घूम सकते हैं , जहाज पर बेई जाति के परम्परागत गीत नृत्य भी देख सकते हैं तथा बेई जाति की मशहूर चाय सेन दाओ छा भी पी सकते हैं।

सेन दाओ छा बेई जाति द्वारा मेहमानों के सत्कार की रस्म में प्रमुख्य सब से ऊंची चीज़ मानी जाती है। सेन दाओ छा का अर्थ है मेजबान का मेहमान को तीन बार तीन तरह की चाय पिलाना । अब सेन दाओ छा बेई जाति की विशेष चाय संस्कृति का एक अंग बन गयी है।

च्वांग चीन की अल्पसंख्य जातियों में से सब से बड़ी जन संख्या वाली जाति है, इस की जन संख्या 1 करोड़ के आसपास है। ये लोग मुख्यतः क्वांग शी च्वांग स्वायत प्रदेश में रहते हैं। च्वांग जाति के लोगों को भी संगीत का बहुत शौक है। च्वांग जाति बहुल गांवों व पहाड़ी क्षेत्रों में गीत गाना लोगों के जीवन का एक अनिर्वार्य विष्य है।

लोग गायन से जीवन के हर पक्ष को प्रतिबिंबित कर सकते हैं। हर वर्ष तीन मार्च को च्वांग जाति एक गीत समारोह का भी आयोजन करती है। यह उन के लिए खुशी का सब से बड़ा दिन होता है। इस दिन वे सब से सुन्दर कपड़े पहनते हैं। वे तंबू गाड़ते हैं, गीत प्रतियोगिता आयोजित करते हैं और गीतों के जरिए अपने प्रेमियों का चुनाव करते हैं। इस दिन की सब से प्रमुख गतिविधि पहाड़ी गीत गाना होती है। लोग मनमाना गाना गाते हैं , दोस्तों को अपने जीवन की कहानी सुनाते हैं, और प्रेम, मैत्री व प्रकृति का गुणगान करते हैं। इस दिन जो गीत प्रतियोगिता आयोजित होती है उस में विजेता को अकसर अपने जीवन साथी की भी खोज करने में सफल होते हैं।

ह्वांग छ्वन येन नामक एक गायक ने बताया, मेरा जन्मस्थल में बहुत सुन्दर पहाड़ी गीतों से भरा है। मेरे दादा, दादी, पिता व माता जी सब अच्छा हाते हैं। बचपन से ही मैं इन पहाड़ी गीतों के सागर में डूबा रही हूं । कहा सकता हूं कि मैं इन्ही गीतों के साथ पली बढ़ी हूं।