आज के इस कार्यक्रम में हम—आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के काजी मोहम्मद राइहान, कलेर, बिहार के मोहम्मद असिफ खान, बेगम निकहत प्रवीन, सदफ आरजून, अजफर अकेला, तहमीना मशकुर और कोआथ बिहार के विश्व रेडियो श्रोता संघ के सुनील केशरी, डी डी के पत्र शामिल कर रहे हैं।
पिछले कार्यक्रम में कलेर, बिहार के मोहम्मद असिफ खान, बेगम निकहत प्रवीन, सदफ आरजून, अजफर अकेला और तहमीना मशकुर ने पूछा है कि क्या चीन में भी ज्वालामुखी पर्वत हैं। हम ने इस सवाल का उत्तर दिया, तो आज के इस कार्यक्रम में जवाब का दूसरा भाग सुनीए।
उत्तर-पूर्वी चीन के जीलिन प्रांत के छांगबाई पर्वत में थ्येनछी ज्वालामुखी पहाड़ है। वर्ष 1668 और 1702 में इस ज्वालामुखी में दो विस्फोट हुए। इस के पहले वर्ष 1199 में या 5000 वर्ष पूर्व भी इसमें दो विस्फोट हुए थे। वर्ष 1199 से 1201 के बीच का विस्फोट पिछले 2000 वर्षों में दुनिया का सब से भीषण ज्वालामुखी विस्फोट माना गया। उस वक्त ज्वालामुखी की राख उड़ कर जापानी समुद्र या उत्तरी जापान तक जा बिखरी थी।
जीलिन प्रांत का दूसरा ज्वालामुखी पर्वत लूंगकांग है। लूंगकांग पहाड़ में अब भी 160 से अधिक ज्वालामुखी शंकु खड़े हैं। अब यहां एक रमणीक स्थल है।
दक्षिण-पश्चिमी चीन के युनान प्रांत में थंगझूंग ज्वालामुखी पर्वत है। इस सक्रिय ज्वालामुखी के कारण क्षेत्र के भूमिगत जल का तापमान सौ डिग्री सेलसियस रहता है। इधर के वर्षों में भूमिगत जल का तापमान बढ़ा है और हल्के विस्फोटों के रिकार्ड भी हैं। भविष्य में इस ज्वालामुखी पर्वत में फिर विस्फोट होने की संभावना है।
सिंच्यांग वेइगुर स्वायत्त प्रदेश में कुर्ला ज्वालामुखी पर्वत है। यह ज्वालामुखी पर्वत छिंगहै-तिब्बत पठार के उत्तर-पश्चिमी छोर की पश्चिमी खुनलुन पर्वतमाला में स्थित है। इस ज्वालामुखी पर्वत में 10 ज्वालामुखी पहाड़ और उनकी दसियों शाखाएं शामिल हैं। इसमें सबसे ताजा विस्फोट 27 मई 1957 को आशी ज्वालामीखी में हुआ बताया जाता है। रिपोर्टों के अनुसार, इस दिन सुबह 9 बज कर 50 मिनट पर, ज्वालामुखी में पहला विस्फोट हुआ और कुछ मिनट बाद लगातार तीन विस्फोट हुए। विस्फोटों में सिर्फ राख निकली।
चीन के थाइवान द्वीप में ताथुन ज्वालामुखी पर्वत और क्वेइशान द्वीप ज्वालामुखी पहाड़ हैं। ताथुन ज्वालामुखी पर्वत 20 से अधिक ज्वालामुखियों से गठित है। इस ज्वालामुखी पर्वत को सक्रिय ज्वालामुखी बताया जाता है। इस क्षेत्र के चश्मों से गर्म जल या हवा निकलने को लेकर लोगों में ज्वालामुखी में विस्फोट होने को लेकर चिंता है।
थाइवान द्वीप से 20 किलोमीटर दूर समुद्री जल क्षेत्र में स्थित क्वेइशान द्वीप पर भी ज्वालामुखी है और वह भी सक्रिय है।
दक्षिणी चीन के लेइचओ प्रायद्वीप और हैनानताउ के उत्तर में भी ज्वालामुखी पर्वत हैं। इन ज्वालामुखी पर्वतों की संख्या 177 है, और उनका लावा 7300 वर्गकिलोमीटर में फैला है।
अंत में कोआथ, बिहार के विश्व रेडियो श्रोता संघ के सुनील केशरी, डी डी का पत्र लें। उन्होंने पूछा है कि चीन की राजधानी पेइचिंग को राज्य का दर्जा कब मिला।
श्रोता दोस्तो, ईसा पूर्व 1045 में, चीन में हुए तीसरे राजवंश चओ के राजा चीफ़ा ने शांग राजवंश का तख्ता उलटा और ची नामक स्थान में एक छोटे से राज्य का राजा नियुक्त किया। इस तरह पेइचिंग नगर की स्थापना हुई। तब से आज तक पेइचिंग शहर का इतिहास 3050 साल का हो चुका है।
सब से पहले उत्तरी चीन के एक राजवंश ल्याओ ने पेइचिंग को उपराजधानी बनाया। इसके बाद चिन राजवंश के राजा हाईलिंग ने वर्ष 1153 में पेइचिंग को राजधानी बनाया। राजधानी के रूप में पेइचिंग का इतिहास 852 साल पुराना है। इस के बाद य्वान, मिंग और छिंग नामक तीन राजवंशों ने भी बारी-बारी से पेइचिंग को राजधानी बनाया।
उन्होंने यह भी पूछा है कि चीन के सबसे पहले महान कम्युनिस्ट नेता कौन थे।
श्रोता दोस्तो, चीन के सब से पहले महान कम्युनिस्ट नेता श्री ली ता-चाओ थे। 29अक्तूबर 1889 को श्री ली का जन्म उत्तरी चीन के हपेई प्रांत के लाओथिंग जिले में हुआ। वर्ष 1913 में श्री ली पढ़ने के लिए जापान गए। तत्कालीन जापानी साम्राज्यवाद ने चीन को नष्ट करने की 21 सूत्री संधि पेश की तो श्री ली ने जापान के खिलाफ चीन के देशभक्त छात्रों के संघर्ष का नेतृत्व किया। वर्ष 1916 में श्री ली स्वदेश लौटे और चीन के नव संस्कृति आंदोलन में सक्रिय हुए।
रूस में अक्तूबर क्रांति की सफलता ने श्री ली को काफी प्रोत्साहित किया और इस तरह वे मार्क्सवादी बने।
मार्च 1920 में ली ता-चाओ की अध्यक्षता में पेइचिंग विश्वविद्यालय में मार्क्सवाद अध्ययन दल स्थापित हुआ। इस वर्ष अक्तूबर में उन्होंने पेइचिंग कम्युनिस्ट दल की स्थापना भी की।
वर्ष 1921 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। इस के बाद श्री ली ने पार्टी की केन्द्रीय कमेटी की ओर से उत्तरी चीन में पार्टी कार्य का निर्देशन करना शुरू किया।
मार्च 1926 में, श्री ली ने पेइचिंग में जापानी और ब्रिटिश साम्राज्यवाद और सेनापति चांग च्वो-लीन व उ फेई-फ़ऊ के खिलाफ जन संघर्ष का नेतृत्व किया।
6 अप्रैल 1927 को, सेनापति चांग च्वो-लीन ने साम्राज्यवादी शक्ति के समर्थन से चीन स्थित सोवियत दूतावास में शरण ली। ता-चाओ समेत 80 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। 22 दिन बाद 28 अप्रैल को चांग च्वो-लीन ने श्री ली ता-चाओ को फांसी की सजा दी।

|