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(GMT+08:00) 2006-01-09 12:31:47    
प्राचीन काल में चीन का आविष्कार ज्वालामुखी

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आज के इस कार्यक्रम में हमआजमगढ़, उत्तर प्रदेश के काजी मोहम्मद राइहान, कलेर, बिहार के मोहम्मद असिफ खान, बेगम निकहत प्रवीन, सदफ आरजून, अजफर अकेला, तहमीना मशकुर और कोआथ बिहार के विश्व रेडियो श्रोता संघ के सुनील केशरी, डी डी के पत्र शामिल कर रहे हैं।

पहले आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के काजी मोहम्मद राइहान का पत्र लें। उन्होंने पूछा है कि चीन ने कई आविष्कार किये हैं, कृपया विस्तार से इन आविष्कारों के बारे में बताएं।

अच्छा, दोस्तो अब हम इस बारे में बताने का प्रयास कर रहे हैं। श्री वांग य्वी-शन चीनी विज्ञान एवं तकनीक भवन के निदेशक हैं और प्रसिद्ध विज्ञान व तकनीक इतिहासकार भी। उन्होंने चीन के आविष्कारों की जानकारी देते हुए कहा कि प्राचीन चीन में अनेक महत्वपूर्ण आविष्कार हुए। इन में सबसे प्रमुख बारूद, कुतुबनुमा, कागज और मुद्रण थे। इन आविष्कारों से सारी दुनिया का लाभ हुआ।

उन्होंने कहा कि गणित विद्या में दशमलव प्रणाली,चीनी परम्परागत चिकित्सा पद्धति व औषधि, भूमध्य रेखा निर्देशांक व्यवस्था और काष्ठ मुद्रण भी बहुत महत्वपूर्ण है। इन चार आविष्कारों की तुलना में ये इसलिए अहम हैं कि इन्होंने विश्व संस्कृति को उज्ज्वल किया।

        फिर चीनी मिट्टी के बरतनों, रेशमी कपड़े, धातुशोधन और जुताई की व्यवस्था ने भी विश्व भर की विज्ञान व तकनीक की प्रगति को प्रभावित किया।

प्राचीन चीन के युद्धरत काल में ही चीनी लोगों के पूर्वजों ने प्राकृतिक चुंबकीय पत्थर से दिशा दिखाने के काम में आने वाले चम्मच बनाने में सफलता पा ली थी।

त्रिराज्य काल में मा च्वीन नामक व्यक्ति ने चुंबकीय गोले और दंतचक्र का प्रयोग कर दिक्सूचक गाड़ी बनाई।

बाद में कुतुबनुमा को पहिये से जोड़ कर एक डिब्बा बनाया गया। सुंग राजवंश काल में कुतुबनामा का प्रयोग समुद्री जहाजरानी में शुरू हुआ। कुतुबनुमा के आविष्कार से समुद्री यातायात, अर्थव्यवस्था व संस्कृति के आदान-प्रदान को गति मिली।

     जब तक विश्व में कागज नहीं था, लोगों ने दिमाग खपा-खपा कर लिखने की तरह-तरह की युक्तियां सोचीं। प्राचीन मिस्र में लिखने के लिए एक प्रकार की घास का प्रयोग किया जाता था और भारत में इसके लिए ताड़पत्र का प्रयोग होता था। कैलडेइक ने मिट्टी की ईंटों का प्रयोग किया, प्राचीन रोम में मोम के तख्ते का प्रयोग किया गया और यूरोप में बकरे के चमड़े का प्रयोग हुआ।

प्राचीन चीन में पहले कछुओं के कवच पर और फिर तांबे के बरतनों पर अक्षर उकेरे गये। बाद में तांबे, काष्ठ के तख्ते या रेशमी कपड़े का प्रयोग शुरू हुआ।

ईसा पश्चात 105 में पूर्वी हान राजवंश के एक अधिकारी छाई लुन ने वल्कुट, सन के रेशों या पुराने कपड़ों व मछली पकड़ने वाले जाल का प्रयोग कर कागज बनाने में सफलता पाई। विश्व का यह पहला कागज था। कागज के आविष्कार का सामाजिक इतिहास रचने और संस्कृति व विचार के आदान-प्रदान व प्रसार में अहम योगदान रहा।  

        प्राचीन चीन ने रासायनिक दवा तैयार करने की प्रक्रिया में बारूद का आविष्कार किया। यह मानवजाति द्वारा हासिल प्रथम विस्फोटक पदार्थ माना जाता है। कहा जाता है कि हान राजवंश काल में चीन के ताओपंथी भिक्षुओं ने अमृत दवा तैयार करने में रासायनिक वस्तुओं का प्रयोग करना शुरू कर दिया था। इन वस्तुओं में शोरा व गंधक शामिल थे। थांग राजवंश काल में इन लोगों ने शोरे, गंधक व चारकोल से पहली बार सफलतापूर्वक बारूद तैयार किया। बाद में युद्ध में भी बारूद का प्रयोग शुरू किया गया।

    छपाई का प्रयोग संभवतः सातवीं शताब्दी के आसपास थांग राजवंश काल में ही नजर आने लगा था। उस वक्त तक काष्ठ छपाई का प्रयोग किया जाता था। इधर चीन में एक बौद्ध सूत्र का पता लगा है, जिसे विश्व की काष्ठ छापे से छपी प्रथम पुस्तक माना गया है।

सुंग राजवंश में हुए एक नागरिक पी शंग ने काष्ठ छापे के आधार पर टाइप का आविष्कार किया। ये टाइप मिट्टी को अग्नि में पका कर बनाये जाते थे। इन्हें लोहे के तख्ते पर रख कर छापा तैयार किया जाता था। ऐसे छापे से पुस्तक छापना काफी सरल था।

अब कलेर, बिहार के मोहम्मद असिफ खान, बेगम निकहत प्रवीन, सदफ आरजून, अजफर अकेला और तहमीना मशकुर का पत्र देखें। उन्होंने पूछा है कि क्या चीन में भी ज्वालामुखी पर्वत हैं। 

हमारा जवाब है हां और हम आपको इसकी विस्तृत जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं।

अब तक प्राप्त ग्रंथों या भौगोलिक सर्वेक्षणों के अनुसार चीन में कई ज्वालामुखी पहाड़ हैं जो सक्रिय हैं। 15 हजार वर्ष पूर्व चीन में कई सक्रिय ज्वालामुखी पहाड़ पाए गए। फिलहाल चीन के ज्वालामुखियों में विस्फोट होने की रिपोर्टें तो नहीं है, पर ऐतिहासिक ग्रंथों में पिछले 300 वर्षों में ऊताल्येनछीछांगबाई पर्वत, थंगछूंग और हैनान जैसे पर्वतों में विस्फोटों के उल्लेख मिलते हैं। सौभाग्यवश उस वक्त वहां सुनसान जगह थी, इसलिए विस्फोटों से जान-माल की क्षति नहीं हुई। आज वहां शहर या रमणीक पर्यटन स्थल हैं और ज्वालामुखी निष्क्रिय हैं, फिर भी लोगों को आशंका रहती है, इसलिए इन ज्वालामुखियों की निगरानी रखी जाती है। 

ऊताल्येनछी ज्वालामुखी पर्वत उत्तर-पूर्वी चीन के हैलूंगच्यांग प्रांत में है। माना जाता है कि इस ज्वालामुखी में 15 ऐसे पहाड़ शामिल हैं। ज्वालामुखी का लावा 800 वर्गकिलोमीटर जमीन पर फैला है। लाउहैशान पहाड़ और ह्वोशाओशान पहाड़ में वर्ष 1719 और 1721 के बीच विस्फोट हुआ था। चीन के ऐतिहासिक ग्रंथों में इन विस्फोटों का उल्लेख है। आज वहां सुंदर पर्यटन स्थल हैं, और ज्वालामुखी के लावे का प्रयोग खास रोगों के उपचार में किया जाता है। 

हैलूंगच्यांग प्रांत का एक अन्य ज्वालामुखी पर्वत चिंगबोहू झील ज्वालामुखी कहलाता है। इस में कुल 13 ज्वालामुखी हैं और सब युगल हैं। कहा जाता है कि 1000 वर्ष पूर्व यहां अंतिम बार विस्फोट हुआ।