चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम आपको दक्षिण-पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के मनोहर प्राकृतिक दृश्यों और वहां बसी अल्पसंख्यक जातियों के रहन-सहन और अनोखे रीति-रिवाजों की जानकारी दे चुके हैं। आज के कार्यक्रम में हम इस प्रांत का रत्न कहलाने वाले एक छोटे शहर थंगचुंग में विदेशी वास्तुशैलियों से युक्त आलीशान मकानों के बारे में जानकारी देंगे ।
हम पिछली बार जब चीन के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत युन्नान पहुंचे , मालूम हुआ कि पिछले कोई पांच सौ वर्षों से म्यांमार में उत्पादित रूबी जैसे दुर्लभ मूल्यवान पत्थरों को प्रोसेसिंग के लिए इसी शहर लाया जाता रहा है। यहां इनसे तराशे गये सुंदर आभूषण और विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां विश्व के दूसरे देशों को निर्यात की जाती रहीं। दुर्लभ पत्थरों से तैयार आभूषणों और कलाकृतियों के व्यापार से कई लोग बहुत जल्द मालामाल भी हो गये और आभूषणों व कलाकृतियों के व्यापार के मौके भी बढते गये तो थंगचुंग के अधिकतर पुरुष पत्थरों की प्रोसेसिंग के लिए या उनसे बनी कलाकृतियों के व्यापार के लिए विदेश भी जाने लगे। इस व्यवसाय के विस्तार के लिए स्थानीय लोगों ने ऐसी कलाकृतियों की दुकानें भी खोलीं। दुर्लभ पत्थरों के व्यापार के लिए थंगचुंग के कुछ पुरुषों को दूसरे देशों में लम्बे अरसे तक ठहरना भी पड़ा। इस तरह वे पश्चिमी देशों से प्रभावित होना शुरू हुए। सालों बाद विदेशों से अपने जन्मस्थान वापस लौटने वाले इन लोगों ने अपनी जमा पूंजी से चीनी और पश्चिमी वास्तुशैलियों के मेल वाले आलीशान मकान बनवाये। ये आलीशान मकान थंगचुंग से चार किलोमीटर दूर ह शुन टाउनशिप में आज भी जस के तस खड़े हैं।
पता चला कि इस गांव की आबादी कुछ हजार भर है, पर इसके सभी मकान अलग-अलग रूप लिये हैं। कुछ मकानों के द्वार पश्चिमी शैली के हैं तो अन्य कुछ की छतें इस्लामी शैली की। इन मकानों का रखरखाव भारत, ब्रिटेन तथा पूर्वी एशियाई देशों का सा है। ध्यान देने योग्य बात यह कि इन सभी आलीशान मकानों में पूर्वजों की पूजा के लिए विशेष कमरे निर्मित हैं।
प्रसिद्ध लेखक तूंग फिंग का इन मकानों की चर्चा में कहना है कि ह शुन के व्यापारियों को आम तौर पर विदेशों में अच्छे पैसे कमाने के बाद अपने जन्मस्थान लौटकर ऐसे बड़े मकान बनवाने का शौक था। ह शुन में हमें ली छुन पा नामक एक महिला के घर जाने का मौका मिला। उन्हों ने अपने घर के कोने में सुरक्षित चीजों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये सभी आइने ब्रिटेन के हैं, लोहे का बक्सा जर्मनी का है, तेल का पीपा भी ब्रिटेन का है और यह बाल्टी जापान की है।
दोस्तो , आश्चर्य की बात यह कि इन बड़े मकानों में कोई नहीं रहता। पिछले कई सालों से ये खाली पड़े हैं। इसका कारण पूछने पर मालूम हुआ कि इन के मालिक कब के म्यांमार , अमरीका, कनाडा और थाईलैंड आदि देशों में बस गये हैं और इन मकानों की देखभाल उनके मित्र-रिश्तेदार करते हैं।
चारदीवारी वाले एक पुराने खाली मकान में हमारी ई छुई पन नामक एक बुजुर्ग से मुलाकात हुई। वे इस पुराने मकान की देखभाल करते हैं। हर रोज उन्हें इस के आंगन का कम से कम एक चक्कर लगाना ही पड़ता है। उन्हों ने बताया कि इस मकान के मालिक शिंग श्यांग मेरे चाचा हैं। वे रत्नों का व्यापार करते हैं। आज से कोई 78 वर्ष पहले उन के पूर्वजों ने इस मकान का निर्माण करवाया। बाद में वे अपने परिवार के साथ म्यांमार जा बसे और आज भी सपरिवार वहीं रह रहे हैं। मैं हर रोज इस आंगन में उगे फूल-पौधों को पानी देता हूं और मकान की सफाई करता हूं। उन का कहना है कि आम तौर पर यहां के व्यापारी अपने घर लौटकर एक तरफ अपने बेटों व पोतों के लिए बढ़िया मकान बनवाते तो दूसरी तरफ अपने पूर्वजों की स्मृति में विशेष भवनों और मंदिरों के निर्माण को भी बहुत महत्व देते थे। उन की यही कामना रहती कि भगवान उनके परिवार की रक्षा करें और ईश्वर की कृपा से उनकी संतानें सदा सुखी रहें।
|