प्रकाश औऱ छवि को सिनेमा के द्वारा दिखाने की कला चीन में एक सौ वर्ष पूर्व आरम्भ हुई। लेकिन चीन में प्रकाश और छवि में दिलचस्पी कई वर्षों पहले आरम्भ हुई। प्राचीन काल के चीनी ये मानते थे की कोई भी चमकीले वस्तु- वो चाहे टेरा फार्मा में हो या स्वर्ग में हो, को पवित्र मानते थे और उसके छवि और छाया को रहस्यमय मानते थे । थांग काल के विख्यात और महान् कवि लि पाय के विख्यात काव्यांश "मेरे गिलास को ऊपर उठाते हुए, मैं चाँद को निमंत्रण देता हूँ की वह मेरे और मेरे छाया के साथ मदिरा पान का आनंद उठायें", न सिर्फ उनकी कविशैली को दर्शाती बल्कि हमें यह मूल तत्व का याद दिलाता है की आकार और छवि दोनों ही किसी भी शारिरिक तत्व के अभिन्न अंग हैं।
हान काल में 2,000 वर्ष पूर्व 'सोल इवोकेशन' नामक एक छवि नाटख का आयोजन किया गया था। यह नाटख एक सच्ची प्रेमकथा पर आधारित थी और इसे प्रकाश और छाया के छवियों के द्वारा इसे एक खास पहचान दी गई। इस नाटख को बाद में सोउ शन ची, अजीब देवी देवताओं, प्रेत आत्माओं की कहानीयों के रुप में चिन काल के कान पाओ के द्वारा संग्रहित कहानियों में शामिल किया गया।
प्राचीन काल के छाया नाटख
हान काल के राजा वु ति, जिनका नाम लिउ छ था, एक बहुत ही महान् राजा थे पर वे भी दुनिया के मोहमाया से परे न थे। हान काल के राजा अपने ऐशोराम की जिंदगी के लिए प्रसिद्ध थे। तिउ छ के शासन काल में ही उनके दरबार में 18,000 उपपत्नीयाँ थीं। लेकिन इनमें से सिर्फ कुछ ही राजा के सम्पर्क में रहते थे औऱ उनका स्नेह पाती थीं। लेकिन श्रीमती ली एक खास अपवाद थी। राजा के दरबार में प्रवेश करते ही, वे राजा के काफी निकट आ गईं। वे न सिर्फ सुंदर थी बल्कि बरुत तिज और अकलमंद थीं। वह संगीत और नृत्य में भी काफी प्रतिभाशाली थी और राजा के दरबार में अपने द्वारा प्रस्तुत कार्य-क्रमों के द्वारा राजा का मन मोह ली थी।
एक बार दुर्भाग्यवश ली युवास्था में बहुत बीमार पड़ गई और इस अवस्था में राजा कई बार उससे भेंट करना चाहे पर उसने हर एक बार राजा का यह अनुरोध ठुकरा दिया। अंतिम बार फिर राजा जब उससे मिलने गये तब श्रीमती ली ने अपना चेहरा ढकते हुए कहा "राजन् हमें क्षमा कीजिए, मुझ में आपको मेरा चेहरा दिखाने का हिम्मत नहीं है। बीमारी के वजह से मेरा चेहरा देखने लायक नहीं रहा है। मेरी वेशभूषा, मेरे केश, और मेरा चेहरा सभी अव्यवस्थित है। मेरी आप से यह मिन्नती है की आप राजकाज में और ध्यान दें और मेरे प्रति, हमारे पुत्र का और बाकी परिवार के सदस्यों का ध्यान रखकर, स्नेह प्रकट करें।" यह कह कर वे चल बसीं। राजा लिउ छ ने राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया।राजा ने उनकी स्मृति में दरबार में सभी चित्रकारों को उनके आखिरी याद के औधार पर ली की चित्र बनाने की आज्ञा दीं। सारा दरबार को उनके चित्रों द्वारा सुशोभित कर दिया गया। राजा उदासी में अपने खोये हुई पत्नी की याद में खोये रहते थे और कई बार वे अपने खोये हुई पत्नी की चित्रों को देखते हिए सारी रात बिता देते थे। इस वजह से कई बार वे नैतिक दरबारों में अनुपस्थित रहने लगे। राजा के इस अवस्था से उनके मंत्रियाँ काफी चिंतीत रहने लगे। इसी समय शांतुंग प्रांत के एक विख्यात जादूटोना की शक्ति से अवगत लि शाओवंग ने यह दावा किया की वे मैडम ली की आत्मा को और उनकी छवि को फीर से जाग्रीत कर सकते हैं। लि शाओवंग को राजा के दरबार में उपस्थित किया गया। एक खुली जगह में लि ने सफेद पर्दों से दो टैंट खड़े किये और रात में राजा से कहा गया कि वे एक टैंट में रहे और दूसरी टैंट में उन्हें मैडम ली की छवि दिखाई दीं। इतना ही नहीं बल्कि उन्हें रानी का उठना-बैठना और चलना भी देखने का आनंनद प्राप्त हुआ। लि शाओवंग ने यह उपलब्धि कैसे हासिल की,इस बारे में कई कहानियाँ हैं पर सर्वाधिक प्रचलित कहानि यह हैं कि लि शाओवंग ने "लाईटिंग" तकनिक के द्वारा एक नारी की छवि को प्रकटित किया और इस तरह छवि कलाकारी का इस्तेमाल किया। छवि कलाकारी हान काल से पहले एक लोक संस्कृति में बहुप्रचलित तकनीक थी। हान काल के ऐतिहासिक रिकार्डों के अनुसार यह साधारण सा खेल राजाओं के दरबार में उनके बच्चों की मनोरंजन के लिए आरम्भ किया जिसके लिए कागज के द्वारा मछलियों के, मनुष्यों के और कई किस्म के अलग-अलग चित्र बनाए जाते थे। इन चित्रों और उनके छवि के द्वारा छवि कलाकारी किया जाने लगा। यही कला बाद में पूर्ण रूप से छवि कलाकारी के रूप में प्रसिद्ध हो गई।
छवि कलाकारी को एक विशेष रूप सुंग काल में दिया गया। इसी समय से छवि कलाकारी लोगों के सांस्कृतिक जीवन का एक खास अंग बन गयी। सुंग काल के ऐतिहासिक रिकार्डों में छवि कलाकारी, इस कला को दर्शाने के तरीके, लोगों का मनोरंजन होने पर उसको सराहने के अलग-अलग तरीके के बारे में विस्तार से जिक्र गया है। उन दिनों कई तरह के नाटक मंडलीयाँ, खास जगहों पर, घरों पर, सड़कों के किनारे कार्य-क्रम प्रस्तुत किये जाते थे। विदेशी सिनेमाटोग्राफी अनुसंधान के अनुसार आधुनिक सिनेमाटोग्राफी की कई सारी तकनीकें चीन की पुरातन काल की छवि नाटक से प्रभावित हुई है। हालांकि यह कला का प्रदर्शन सिर्फ प्रकाश के जरिये ही संभव था और बहुत ही सरल था, इसकी लोकप्र्यता का कारण था इस कला का चीनी लोक संस्कृति में सहजता से अपनाया जाना। इस कला की प्रदर्शन में सर्वाधिक उपयोग छाया कटपुतलियाँ का किया जाता था। इसके अलावा लोक गीत और संगीत भी इसका एक अभिन्न अंग हो गयी थीं।
छवि कलाकारी की लोकप्रियताका कारण थी प्रकाश और आसानी से इसके लिए जरुरत वस्तुएँ का एक जगह से दूसरी जगह तक इसके आयोजन के लिए जरुरत वस्तुओं की गतिशीलता। आम तौर पर प्रत्येक नाटक मंडली में छह से सात लोग एक साथ काम करती थे जिसमें एक मिख्य गायक शामिल था। यह गायक अलग-अलग ध्वनियों में गीत गाता था। प्रदर्शन करने वाले को थिषियेन के नाम से जाना जाता था। कठपुतलियों का इस कलाकारी में भारी उपयोग होता था। कुछ को तो कठपुतलियों को नचाने में इतने महारती थे की वे एक ही समय पर सात-आठ कठपुतलियों को नचाते थे। कठपुतलियाँ,लकड़ी या चमड़े से बनाये जाते थे। उनको बनाने के बाद उन्हें रंगीन कागजों से सजाया जाता था।
छवि कलाकारी आम तौर पर लोक कथाओं पर आधारित होती थीं। कलाकार बच्चों के बीच काफी मशहूर थे। हपेई, शानशी, शानतुंग, कान्सु, पेइचिंग, और लिओनिंग जैसे जगहों में यह कला काफी प्रसिद्ध थी और वहाँ के संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन चुकी थीं। आम तौर पर इन सभी जगहों में कोई विशेष फर्क नहीं होता था पर एक खास बात यह होती थी की हर एक प्रांत में गाने की शैली अलग होती थी।
छवि कलाकारी की प्रदर्शन के लिए जो कठपुतलियाँ उपयोग की जाती थीं काफी अनोखे होते थे। उन्हें बनाने में गाय, भेड़िये, और गधे के चमड़े से बनाये जाते थे और इन्हें बनाने की प्रक्रिया काफी कठिन होती थी। यह कठपुतलियाँ चमड़े की होने के कारण काफी लम्बे समय के लिए उपयोग किये जाते थे। आशचर्य की बात यह है की आज भी कुछ लोगों के पास मिंग और छिंग काल के कठपुतले पाये जाते हैं।
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