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(GMT+08:00) 2005-12-23 15:34:57    
ड्रैगन को मार डालने का कौशल

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प्राचीन काल में चु फिन नाम का एक युवा था , वह हर प्रकार का कौशल सीखने का शौकिन था ।

एक दिन उस ने सुना था कि चिली ड्रैगन मारना जानता था , तो उस ने अपना तमाम जायदाद बेच कर पैसा जमा किया और दूर दूर जा कर चिली से ड्रैगन मारने का हुनर सीखने लगा ।

तीन वर्ष बाद चुफिन ड्रेगन मारने का पाठ पूरा कर गांव लौटा । गांव वासियों की कुतुहट को शांत करने के लिए उस ने ड्रैगन को मार डालने के हुनर का सुन्दर प्रदर्शन किया ।

जब वह बड़े उत्साह से ड्रैगन पर सवार होने तथा तलवार मारने के प्रदर्शन में मग्न रहा था , तो एक वृद्ध गांव वासी ने पूछा , बेटा , तुम कहिए , वह ड्रेगन कहां से मिल रहा है . जिसे मारा जा सकता है ।

ओह , यह तो मैं ने कभी नहीं सोचा था । जैसे चुफिन के सिर पर किस ने ढेर सारा ठंडा पानी फेर दिया हो , वह एक दम जाग उठा । ड्रैगन एक काल्पिक जानवार है , वह असली नहीं है । चुफिन का ड्रैगन को मारने का हुनर जितना कुशल क्यों न हो , वह बेकार सिद्ध होगा ।

दोस्तो , इस नीति कथा से हमें सचेत कर दिया गया है कि हम उपयोगी तकनीक सीखें , बेकार की तकनीक न सीखें।

अच्छा, दोस्तो, यह और एक कथा है। प्राचीन काल में छांग यांग नाम का एक युवा गुरू थु लुंग से तीरंदाजी सीखना चाहता था । थु लुंग ने छांग यांग से पूछाः तुम तीरंदाजी का रहस्य जानते हो . तो छांग यांग ने जवाब में कहाः आप के निर्देशन के लिए तैयार हूं ।

गुरू जी ने उसे तीरंदाजी का रहस्य बताने की जगह एक कथा सुनाई --- एक बार , छुन राज्य वंश का राजा युन्न मङ मैदान में शिकारी के लिए निकले , उस के सिपाहियों ने शाही बाड़ों में पालित सभी जानवरों को बाहर छोड़ा , ताकि राजा आसानी से उन का शिकार कर सके । इस तरह क्षणों में ही आकाश में बेशुमार पक्षी और घास मैदान में हजारों जानवर उड़ते दौड़ते भागते नजर आए. कभी हिरण राजा के आगे भाग रहे थे , तो कभी बारंगी राजा के अश्व के पास से दौड़ते गुजर रहे , उन का पीछा करते हुए राजा कभी हिरण को निशाना साध रहे थे , तो कभी बारंगी को । वह अभी तीर दागना चाह रहे थे कि फिर ऊपर से राजहंस उड़ते पास से गुजरती दिखाई पड़ी , तो फिर राजा को राजहंस को मार गिराने का मन आया ।

इसी तरह हिचकते , निशाना बदलते  काफी समय बीता , फिर भी राजा के हाथ से एक भी तीर नहीं छूट पाया . असल में राजा नहीं समझता  था कि आखिरकार किस जानवर का शिकार करना ठीक होगा । तभी यांग सु नाम के एक मंत्री ने राजा से कहा कि मैं भी तीरंदाजी के शौकिन हूं , जब मैं तीरंदाजी के लिए तैयार हो गया , तो सौ कदम दूर आगे पेड़ का एक पत्ता रखा जाता है ,उस पर मार करने में मुझ से  हर बार निशाना अचूक होता है । दस बार निशाना बने ,दस ही बार साध होते हैं ।

अगर एक साथ दस पत्ते रखे गए , तो अकसर निशाना चूक होता है ---  गुरू की बात छांग यांग को समझ में आई , उसे तीरंदाजी का अभ्यास करने में हमेशा एकाग्र मन लगता रहा 

   

दोस्तो , यह कथा हमें बताती है कि किस भी प्रकार का काम करने के समय एकाग्रता और लग्नता की बड़ी आवश्यकता होती है । हिचकने और समय समय लक्ष्य बदलने से काम कभी नहीं बन सकता ।