बहुत पहले की बात थी कि एक व्यक्ति था , जो जन्म से ही नेत्रहीन रहा था ।
उसे रोज अपने शरीर पर सुरज की गर्मी पड़ी महसूस होती थी , लेकिन सुरज का आकार नहीं जानता था ।
उस ने अच्छे नेत्र वाले लोग से सुरज का आकार पूछा , तो एक लोग ने एक कांस्य नगाड़ा बजा कर समझाया कि सुरज गोल आकार का है , वह इस नगाड़े का जैसा है ।
नगाड़े के बजने की आवाज सुन कर नेत्रहीन ने समझने का अंदाज बनाते हुए कहा , मैं समझ गया हूं , समझ गया हूं ।
कुछ दिन बाद , नेत्रहीन को सड़क पर घंटा बजने की आवाज सुनाई दी , उस ने खुशी से कहा, सूरज निकल है , सूरज निकला है ।
सड़क वाले ने उसे बताया , तुम ने गलत कहा है , वह सूरज नहीं है , सूरज रोशनी देता है , जैसा मोमबति जल कर प्रकाश देती है ।
कहते हुए सड़क वाले ने नेत्रहीन के हाथ में एक मोमबति थाम दी , नेत्रहीन ने बड़ी बारीकी से मोमबित को छूना और हामी में कहा कि अच्छा , अब मुझे मालूम हो गया कि सूरज आखिर में इस आकार का है ।
फिर कुछ दिन गुजरा , नेत्रहीन का हाथ एक बार बांसुरी छू गया । वह फिर खुशी के मारे कहने लगा , यह सूरज अवश्य है , हां , यह जरूर सूरज है ।
दोस्तो , यह कथा सुनने के बाद आप को जरूर उस कथा की याद आयी होगी , जिस में कहा गया है कि किस तरह कई नेत्रहीन लोगों ने हाथी के शरीर के भिन्न भिन्न अंगों को छू लेने के बाद हाथी का आकार भिन्न भिन्न रूपों में बताया था ।
खैर , इस प्रकार की नीति कथाओं की शिक्षा सभी लोगों को मालूम है । हमें फिर ज्यादा कहने की आवश्यकता नहीं है ।
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