कहा जाता है कि प्राचीन सोंङ राज्य वंश के समय एक किसान अपने खेत को जोत रहा था , अचानक खेत के पास झाड़ियों में से एक खरगोश बेताहास बाहर भाग निकला ।
जल्दबाजी में वह खेत के मेंढ पर खड़े एक पेड़ से टक्कर गया और वहीं ढेर हो कर बेहोश पड़ा ।
किसान ने पास जा कर देखा कि वह खरगोश मर गया है , दरअसल खरगोश की दौड़ने की गति अत्यन्त तेज थी , इसलिए पेड़ पर टक्कर होने से उस ने दम तोड़ा था ।
किसान की खुशी का ठिकाना नहीं रहा , जरा भी मेहनत नहीं करने से ही उसे एक मोटा हष्टपुष्ट खरगोश हाथ लगा ।
वह सोच रहा था कि यदि आने वाले हर दिन में एक न एक खरगोश इस तरह मिलता रहेगा , तो मेहनत करने की क्या जरूरत होगी ।
उस दिन से उस ने खेतीबारी का काम छोड़ दिया और रोज वह पेड़ के नीचे बैठे इस की प्रतीक्षा कर रहा था कि कोई दूसरा खरगोश पेड़ पर टक्करने आ पहुंचेगा ।
दोस्तो , कहानी का आगे का विषय आप को जरूर मालूम हुआ होगा , जो वह है कि इस तरह रोज पेड़ के नीचे बैठे इंतजार करते करते किसान का खेत बंजर पड़ गया , पर उसे कभी दूसरा खरगोश हाथ में नहीं आया ।
किसान क्या समझता था कि क्या खरगोश भी बुद्धु हो , वे रोज स्वेच्छा से किसान को आत्मसमर्पित करने आएं ।
बिना मेहनत का फल सुखद नहीं होता है ।
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