कहते हैं कि चीन के थांग राज्य वंश के महान कवि ली पाई को बालावस्था में पढ़ना पसंद नहीं था । वह अकसर स्कूल से भाग जाता था ।
एक दिन एक पाठ का आधा भाग भी नहीं पढ़ पाया था कि उस का मन पढ़ने में उचट हो गया , वह सोचता था कि इतनी मोटी पुस्तक पढ़ने में बहुत सा समय गंवा जा सकता है , तो वह पुस्तक वही छोड़ कर बाहर खेलने चला गया ।
ली पाई बड़ी खुशी के साथ बाहर कूदते फूदते आगे बढ़ रहा था , अचानक कान में छा -छा -छा की आवाज सुनाई पड़ी , उस ने चारों ओर नजर दौड़ी और देखा , सड़क के किनारे बैठी एक वृद्धा पत्थर पर एक लोह डंडा रगते हुए उसे पटली बनाने जा रही थी , ली पाई को बड़ा ताज्जुब हुआ और वह पास बैठ कर वृद्धा की मेहनत पर गौर करने लगा ।
वृद्धा का ध्यान लोहे का डंडा रगने में लगा था , ली पाई पर गौर नहीं गया । थोडी देर ली पाई की जिज्ञासा और बढ़ी , उस ने पूछा , दादी मां , तुम यह क्या कर रही हो .
मैं इस लोहे के डंडे को सुई का रूप दे रही हूं ।
सुई बनाना हो , ली पाई की कोतुहट और बढ़ी , आखिर इस मोटे डंडे को सुई कैसे बनाया जा सकता है .
वृद्धा ने तब सिर उठा कर कहा , बेटा , लोहे का डंडा जितना भी मोटा है , पर मैं रोज उसे रग कर पटला बनाने की कोशिश करती रहूं , कभी अपनी कोशिश नहीं छोड़ूंगी , तो अंत में वह सुई बन जाएगा ।
वृद्धा का तर्क सुनने के बाद ली पाई की बुद्धि खुल गई ।
उस ने मन ही मन में सोचा कि दादी मां की बात बिलकुल ठीक है । जब हम अपनी कोशिश पर बराबर डटे रहेंगे . तो काम जितना भी कठिन हो , उसे अच्छी तरह पूरा किया जा सकता है ।
वह इसी क्षण मुड़ कर घर लौटा , और जमीर पर छोड़ पड़ी पुस्तक उठा कर लगन से पढ़ने लगा । वर्षों की कड़ी मेहनत के फलस्वरूप ली पाई चीन का महान कवि बन गया ।
दोस्तो , लोह डंडे की सुई नामक कहानी चीनी छात्रों को मेहनत से अध्ययन करने के लिए प्रेरित करने वाली लोकप्रिय कहानी है ।
हां , चीन का प्राचीन महा कवि ली पाई एक प्रतीभाशाली व्यक्ति था , लेकिन उस की महान सफलता उस की कड़ी मेहनत पर आधारित थी । इसलिए उस की अध्ययनशीलता चीनी छात्रों के लिए एक आदर्श मिसाल है ।
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