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(GMT+08:00) 2005-11-18 08:46:10    
सिन्चांग के छाईवोफु झील पर युवा स्वयं सेवकों का योगदान

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20 वीं शताब्दी के साठ वाले दशक में देश के भीतरी इलाके से बड़ी संख्या में युवा शहरी निवासी नए सिन्चांग के निर्माण में हाथ बटाने हैतु इस सरहदी क्षेत्र आ बसे । उन्हों ने सिन्चांग के विभिन्न क्षेत्रों में नई श्रम शक्ति के रूप में वर्षों से काम करते हुए अपने यौवन का न्योछावर किया , जिस के फलस्वरूप सिन्चांग को आज की नई खूबसूरती मिली । 20 सालों के बाद इन स्वयं सेवकों में से कुछ लोग अपने जन्म शहरों में लौट गए और कुछ लोग हमेशा के लिए सिन्चांग में बस गए । इस साल में पूर्व चीन के शांगहाई शहर में लौटे ऐसे 90 स्वयं सेवकों ने फिर से सिन्चांग के ऊरूमुची शहर के पूर्व में स्थित छाईवोफु झील के पास वापस आ कर उन के सिन्चांग आने की 40 वीं वर्षगांठ मनायी ।

40 साल पहले, नए सिन्चांग के निर्माण में मदद देने गए शांगहाई के युवा स्वयं सेवक अब करीब 60 साल के वृद्ध लोग बन गए हैं । सिन्चांग की परिचित भूमि पर पुनः कदम रखने पर उन की पुरानी यादें लहरों की भांति उमड़ उठी । यहां उन्हों ने उस विशेष जमाने में अपने यौवन , पसीने तथा शक्ति अर्पित किए थे , जिस पर वे आज भी बड़ा गर्व महसूस करते हैं । छाईवोफु झील के पास जहां इन लोगों ने खेती और वन्य उद्योग का श्रीगणेष किया था , अब इस का बिलकुल कायापलट हो गया । उन के मेहनती हाथों से रोपे पौधों ने फल पेड़ों का मनमोहक रूप ले लिया , जिन पर फल खचाखच लदे नजर आये , उन के हाथों निर्मित झील में मछलियों के झुंड झुंड तैर रहे हैं । अतीत का निर्जन रेगिस्तान अब लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में बदल गया ।

छाईवोफु सिन्चांग की राजधानी ऊरूमुची शहर के पूर्व में 51 किलोमीटर दूर स्थित रेगिस्तान पर है । वहां अतीत में बड़ी मात्रा में सूखे पेड़ों के ठूंठ मिलते थे , जो खराब प्राकृतिक स्थिति के साक्षी थे । वहां एक खारे पानी की झील है , जिस का रकबा कोई तीस वर्ग किलोमीटर है । 20वीं शताब्दी के साठ वाले दशक से पहले यह एक विरान निर्जन जगह थी , जहां सूखा पड़ा रहता था , वनस्पतियों की कमी थी और भूमि बुरी तरह रेतीली बन गई थी ।

छाईवोफु झील के क्षेत्र के विकास की खबर पूर्व चीन के बड़े शहर शांगहाई पहुंचने के बाद बड़ी संख्या में तत्कालीन युवा निवासियों ने इस विकास कार्य में हिस्सा लेने के लिए नाम दर्ज किए । वर्ष 1966 में शांगहाई के दो सौ 65 युवा स्वयं सेवक बुलंद हौसले के साथ अपने घर से दूर इस अपरिचित छाईवोफु आ पहुंचे । उस साल उन में सब से बड़ा 22 साल का था और सब से छोटा 14 साल का ।

वे दस अक्तूबर को सिन्चांग पहुंचे थे , उस समय शांगहाई में शर्द का सुहावना मौसम था , जबकि सिन्चांग में भारी बर्फ गिरने लगी । सफेद सफेद बर्फ ने इन नव आगंतुकों को आनंद व उमंग प्रदान किया और साथ ही असुविधा भी पहुंचायी । इस साल 55 साल की येन ह्वांगमै उस साल सिर्फ 15 साल की थी , अपने पहले अनुभव की याद में उन्हों ने कहाः

जब रेलवे स्टोशन पहुंचे , तो बाहर बर्फ गिर रही थी , हर तरफ अंधेरा छाया रहा । हमारे शरीर पर पहने कपड़े कम थे , सो बहुत ठंड लगती थी ।

कड़ाके की सर्दी ने असीम उत्साह में डूबे इन युवाओं के हौसले को तुरंत ठंडा कर दिया । कुछ छोटी लड़कियों की आंखों में आंसू उमड़ आयी । लेकिन अल्प समय में ही उन्हों ने अपनी भावना को सही दिशा में लायी और वे बड़े उत्साह के साथ छाईवोफु के आर्थिक निर्माण में ध्यान लगाया । वे वन रोपण , पौधा उगाई तथा आधारभूत संरचनाओं के निर्माण दलों में बांटे और विरान रेगिस्तान को नख्लिस्तान के शक्ल में बदलने के कठोर परिश्रम में जुट गए ।यह उन के नए जीवन का शुभारंभ था ।

वृक्षरोपन दल के नेता ह युनयंग उस साल 16 साल की थी , इस साल 57 वर्षीय ह ने तत्कालीन वन फार्म की याद करते हुए कहाः

सिन्चांग आने से पहले मेरी कल्पना में वन फार्म में पेड़ों की घनी जंगल फैली दिखती थी । लेकिन यहां आने के बाद देखा , तो जो बड़ी निराशा पड़ी , उसे शब्दों में बताना मुश्किल है । वह तो काहा वन फार्म था , जहां एक पेड़ भी देखने को नहीं मिलता थी । और तो और रेतीली हवा भी रूकने का नाम भी नहीं लेती थी। पुराने दल नेता की रहनुमाई में हम ने पेड़ लगाने के लिए गड्ढ खोदने का काम शुरू किया , रेतीली हवा बहुत तेज थी , हम ने अभी एक गड्ढ खोद लिया , जब दूसरा खोदने लगे , तो रेत ने पहले गड्ढ को भर कर पाटा । लाचार हो कर हम को फावड़े से गहरा गड़ढ खोदना पड़ा।

वह कठोर जमाना था , युवा स्वयं सेवकों ने साधारण कृषि औजारों के सहारे रेतीली हवा , कड़ाके की सर्दी , तपती गर्मी तथा भूख थकान जैसी तरह तरह की कठिनायों पर विजय पा कर अपने पसीनों से इस मरूभूमि को अंत में नख्लिस्तान की सूरत में परिवर्तित किया , उन के हाथों से रोपी पेड़ पौधों पर फल उगे । छाईवोफु झील के पास उन्हों ने 57 हैक्टर की जंगल खड़ी कर दी ।

यहां का सभी काम भारी शारीरिक श्रम का था , जो शहरों से आए नौजवानों के लिए बहुत कठोर जान पड़ता था । दिन प्रति दिन की कड़ी मेहनत का यह नदीजा निकला कि उन के मुलायम हथेलियों पर कड़ा घट्ठा पड़ गया । खाने के लिए चावल और गैहूं का आटा और तेल कम मिलता था , वे ज्यादा मक्कई के आटा से बनी रोटी और सादा पानी में पकायी गई तरकारी खाते थे । वे कम उम्र वाले युवा थे , घर की याद हमेशा उन्हें सताती थी । तत्कालीन युवा स्वयं सेवक श्री चु ता मिंग ने कहाः

हमारे आने से पहले , वन फार्म के डाक घर में पत्र बहुत कम आते थे , लेकिन जब हम आए , तो रोज डाक घर में बहुत सारे पत्र आने लगे , हम बहुत जवान थे , घर का पत्र मिलने पर हम जरूर रो पड़ते थे ।

सच कहिए , उस जमाने का कठिन जीवन शांगहाई महा नगर से आए सुविधापूर्ण जीवन से पले बढे इन नौजवानों के लिए आसानी से सहने वाला नहीं था । लेकिन उन्हें इस कठोर जीलन से अपने को परिपक्कव करना पड़ा ।

वर्षों की कड़ी मेहनत और कठिन जीवन से तप कर वे धीरे धीरे परवान चढे , उन के दिल में सिन्चांग से प्यार परिपूर्ण हो गया , अपने हाथों से नव सूरत में बदले गए छाईवोफु झील क्षेत्र पर उन का असमीम प्यार व स्नेह उडेला हुआ था । अपने इस नए घर को अच्छा विकसित करने के लिए शांगहाई से आए युवाओं ने वृक्षरोपन के साथ साथ पर्यटन व पशुपालन उद्योग का विकास करने की योजना बनायी , जिस ने जल्दी ही संतोषजनक रूप धारण किया है । छाईवोफु में हमेशा के लिए घर बसाए श्री छो श्यांगछे ने कहा कि छाईवोफु झील क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति बदलने के आरंभिक काम में उन्हों ने इस विराट जल राशि वाली झील में मछली पालने का सपना देखा । लेकिन स्थानीय मूल लोगों का कहना था कि यह एक खारे पाना की झील है , इस का कोई आर्थिक मूल्य नहीं है , झील में मछली पालना तो दिवास्वपन है । किन्तु श्री छो श्यांगछे इस मान्यता से जरा प्रभावित नहीं हुआ . वे अपने सपने को मूत रूप देने पर अमल शुरू किया और इस झील को मानव के लिए लाभ लाने वाला तालाब बनाने का पक्का संकल्प किया । झील के सुधार की अपनी योजना ले कर श्री छो ने काफी दौड़ धूप किया , अंत में ऊपरी स्तर के नेताओं को समझाने बुझाने में सफलता पायी । अनुमति ले कर उन्हों ने सौ लोगों का नेतृत्व कर झील के पास बसाया और अपनी शक्ति के बूते मिट्टी व लकड़ी के मकान बनाए और मछली पालन के बारे में संदर्भ सामग्री जुटाने की कोशिश की ।

वर्ष 1977 में उन्हों ने झील में तीन लाख मछली के बच्चे डाले , चंद कुछ साल होने के बाद स्थानीय लोग इस पर बड़े आश्चर्यचकित हुए थे कि श्री छो श्यांगछे मछली पालन में कामयाब हो गए है , इस से प्रेरित हो कर उन्हों ने जापान व अमरीका से नए नस्ल की मछली भी पालने के लिए लाई । अब छाईवोफु झील क्षेत्र एक हरियाली से आच्छादित सुन्दर जगह बन गया और पर्यटन , विश्राम और रेस्ट्रां युक्त पर्यटन क्षेत्र का रूप लिया गया । श्री छो कहते हैः

अब हमारे पर्यटन क्षेत्र में भोजन , आवास , मछली पकड़ने तथा मनोरंजन की बहुमुखी व्यवस्था कायम हुई है ,हम देश विदेश के लोगों का सिन्चांग तथा हमारे छाईवोफु में घूमने आने के लिए स्वागत करते हैं।

40 साल पहले के युवा लड़के और लड़कियां आज व्यस्क वृद्ध लोग हो गए हैं, लेकिन जहां उन्हों ने जीवन गुजारे थे और अपने मेहनत हाथों से उस की सूरत बदली थी , उसे वे कभी नहीं भूल सकते । उन का यौवन काल अविस्मर्णीय है और उन के कठोर संघर्ष का इतिहास अमर है । उन के योगदान की याद में छाईवोफु झील क्षेत्र ने एक विशेष स्मारक भवन निर्मित किया,जिस में प्रदर्शित वस्तुएं दर्शकों को उन के तत्कालीन जीवन मूर्त रूप में बताएंगी ।