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(GMT+08:00) 2005-11-08 16:33:03    
छीतांगयांगचिन और उन की लाडली तिब्बती मुर्गियां

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हर सुबह पौ फटते ही छीतांगयांगचिन बिस्तर से उठती हैं और अपनी 200 से अधिक लाडली तिब्बती मुर्गियों को चारा देने लगती हैं। अपनी इन नन्ही-बड़ी लाडलियों को चारे के लिए छीना-झपटी करते और चारा खाते समय कू-कू की आवाज निकालते देख उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। अपनी पालतू मुर्गियों को दिनोंदिन बढ़ते देख और हर साल उनसे फिर अच्छी कमाई करने की सोच कर उनका मन खुशी से फूल उठता है।

छीतांगयांगचिन इस साल 41 वर्ष की हैं। वे तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा से 270 किलीमीटर दूर कुंगपूच्यांगता काउंटी के चुंगसा गांव में रहती हैं। उनका गांव समुद्र की सतह से 3500 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर एक पठारी नदी के किनारे बसा है। उनके दो बेटे स्कूल में पढ़ते और बड़ा बेटा फू च्येन प्रांत के श्यामन कालेज में है। मुर्गी पालना शुरू करने से पहले उनके पति दो बच्चों की पढ़ाई की फीस तक नहीं भर पाते थे। तब हर साल मई-जून में तिब्बत की कीमती जड़ी-बूटी तुंगछुंग श्याछाओ के उगने के सुनहरे मौसम में वे पूरे परिवार के साथ पहाड़ों में इस जड़ी-बूटी की तलाश में निकल पड़ते और इनको बेच कर मिले पैसों से बच्चों की फीस चुकाने के साथ घर के दूसरे खर्च भी पूरे करते।

पर वर्ष 2002 में स्थानीय सरकार का प्रोत्साहन व मदद पा कर सुश्री छी तांगचयांगचिन ने मुर्गी पालना शुरू किया। उन्होंने गांव की सरकार से प्राप्त 500 य्वेन से दस मुर्गियां खरीदीं, खुद अपने हाथों से उनके लिए बाड़ा तैयार किया और बड़े धीरज से उन्हें पालने में जुट गईं। धीरे-धीरे नन्ही-नन्ही मुर्गियां उनकी धीरज व सावधानी भरी देखरेख से बड़ी होने लगीं और देखते-देखते उनके अंडों की संख्या भी बढ़ने लगी। पिछले दो सालों में उन्होंने केवल मुर्गियों व उनके अंडों से 5000 य्वेन कमाये।इससे उन्हें पहाड़ों में तुंगछुंगश्याछाओ की तलाश में भटकने की जरूरत नहीं रही। आहिस्ता-आहिस्ता उनका जीवन बेहतर होने लगा है।

छीतांगचयांगचिन का परिवार अब एक दुमंजिले मकान में रहता है। जब हम उनके यहां पहुंचे तो उन्होंने हमारा सू यो या एक तरह के घी से बनी महकती चाय से हमारा सत्कार किया। अतिथिकक्ष में दो मीटर ऊंचा एक फ्रिज और 25 इन्च का एक रंगीन टीवी रखा हुआ था और उसके बगल में थे एक वी सी डी मशीन और एक टेलीफोन। छीतांगचयांगचिन इस टेलीफोन से श्यामन शहर में पढ़ने वाले अपने बेटे के संपर्क में रहती हैं।

दो सौ तिब्बती मुर्गियों को पालने के बारे में छीतांगयांगचिन ने कहा "मुर्गीपालन से हमारा जीवन स्तर सचमुच ऊंचा हुआ है। मुर्गियां व अंडे बेच कर हम काफी पैसा कमाते हैं, सो हमारा जीवन दिनोंदिन बेहतर होता जा रहा है।"

गौरतलब है कि कुंगपूच्यांगता में मुर्गी व सुअर पालन तिब्बत के समुद्र की सतह से 3000 मीटर ऊंचे पठारी क्षेत्र के खुले माहौल में होता है। हालांकि इन जानवरों का कद छोटा होता है पर मांस बहुत ही स्वादिष्ट होता है। स्थानीय लोग अक्सर बड़े गर्व से कहते हैं कि उनकी तिब्बती मुर्गियां व सुअर पहाड़ों की कीमती जड़ी-बूटी तुंगछिंगश्याछाओ खाते हैं और ऊंचे पठार का साफ पानी पीते हैं। यही कारण है कि यहां के मुर्गियों व सुअरों के मांस ने पूरे तिब्बत में नाम कमाया है और अब वे जापान तक को निर्यात किए जाने लगे हैं। यों उनका दाम भी ऊंचा है। एक सुअर सात से आठ सौ य्वेन में बिकता है और एक मुर्गी का दाम 40 से 50 य्वेन के बीच होता है, जबकि मुर्गी का एक अंडा एक य्वेन में बेचा जाता है। तिब्बती मुर्गी व तिब्बती सुअर पालन का भविष्य यहां बहुत ही उज्ज्वल है। स्थानीय अधिकारी यांग तो श्यांग ने हमें इसकी जानकारी देते हुए कहा

"किसानों व चरवाहों की नकद आमदनी बढ़ाने के लिए, हमारी कुंगपूच्यांगता काउंटी ने पशुपालन के विकास की विशेष नीति निर्धारित की है। मुर्गियों व सुअरों के पालन के अलावा, हमने यहां सब्जी उगाने के लिए ग्रीन हाउस के विकास को भी बढ़ावा दिया है। इसके लिए हमने कम्पनी और किसानों के गठबन्धन का तरीका अपनाया है। इधर हमने सफलतापूर्वक छुंगछिंग शहर की सी छुआन कम्पनी को यहां आकर्षित किया। इस कम्पनी ने हमारे यहां कारखाना खोला और हमसे तिब्बती मुर्गियों व सुअरों की सीधी खरीद कर किसानों व चरवाहों को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाया है। इस कारखाने में निर्मित मुर्गी व सुअर के मांस के उत्पाद जापान को निर्यात होने लगे हैं। गत वर्ष इस कारखाने का निर्माण पूरा होने के बाद कुछ महीनों में ही हमारी काउंटी ने 1 लाख 75 हजार अमरीकी डालर कमाये।"

चुंग सा गांव के प्रभारी काओ को छुअन ने बताया कि छीतांगयांगचिन अब इस गांव में धनी होने के रास्ते पर चलने वालों के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं। गांव की सरकार अनेक किसानों के पशु पालन से धनी बनने के रास्ते पर चल निकलने को समर्थन दे रही है। वह उन्हें केवल भत्ते के रूप में ही नहीं तकनीकी समर्थन भी देती है। उन्होंने कहा

"हमारी काउंटी के पशु पालन विभाग ने किसानों को प्रत्यक्ष तकनीकी समर्थन दिया है। जब भी मुर्गी पालन में लगे किसानों को मुर्गियों के किसी तरह के संक्रामक रोग से जूझना पड़े, वे सीधे गांव की सरकार को इसकी सूचना दे सकते हैं। हम काउंटी के विज्ञान व तकनीक विभागों को इन रोगों के इलाज में मदद देने के लिए भेजते हैं। "

कुंगपूच्यांगता काउंटी के अधिकारी यांग तो श्यांग ने कहा, वर्तमान में हमारी काउंटी का विशेष पशु पालन प्रारम्भिक दौर में है। पूरी काउंटी में तिब्बती सुअर और तिब्बती मुर्गी पालने वाले परिवारों की संख्या 300 भी नहीं है। अधिकतर किसान व चरवाहे अब भी पहाड़ों से छुंग छाओ जैसी जड़ी-बूटी और कवक की खोज के माध्यम से ही रोजी कमाते हैं। इसलिए स्थानीय सरकार ने समर्थन व इनाम की व्यवस्था को अमल में लाकर विशेष पशुपालन में लगे अनेक परिवारों को सहायता दी है। "हमारी कुंगपूच्यांगता काउंटी ने पूरी सक्रियता से किसानों व चरवाहों के परिवारों को पशुपालन में भारी सहायता प्रदान की है। हमारी नयी नीति के तहत, 50 से अधिक तिब्बती सुअर पालने वाले परिवारों को एक सुअर बेचने पर काउंटी के वित्त विभाग की ओर से 50 य्वेन का अतिरिक्त इनाम मिलता है और तिब्बती मुर्गी पालने वाले परिवारों को हरेक मुर्गी बेचने पर पांच य्वेन का।"

 जब हमने उनसे विदा ली तो उन्होंने बताया कि भविष्य में वे एक मुर्गीपालन फार्म का निर्माण करेंगी और पशुपालन के दायरे को अधिक विस्तृत करेंगी। इसके आगे उनकी एक मुर्गी प्रोसेसिंग कारखाने की स्थापना करने की भी योजना है, ताकि तिब्बती मुर्गी तिब्बत से बाहर निकल कर दुनिया के बाजार में प्रवेश कर सके।

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