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(GMT+08:00) 2005-11-08 16:33:03    
च्यांग क्वो ची की बांसुरी धुनें

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चीनी लोक संगीत जगत में बांसुरी वादक च्यांग क्वो ची बहुत मशहूर हैं। बांसुरी बजाने के अलावा वे अन्य वाद्ययंत्र बजाने और संगीत रचने में भी निपुण हैं। इस लेख में हम च्यांग व्को ची की मधुर बांसुरी की दुनिया में चलेंगे।

संगीत---

इस समय आप जो धुन सुन रहे हैं, "आनंद" नामक यह बांसुरी धुन च्यांग क्वो ची की स्वरचित धुन है और उसे बजाया भी उन्होंने ही है। यह धुन दक्षिणी चीन के च च्यांग प्रांत के स्थानीय ऑपेरा के संगीत पर आधारित और इसमें बांसुरी वादन के विभिन्न तरीकों से दिन ब दिन समृद्ध हो रहे चीनी किसानों की खुशी व्यक्त की गयी है।

चीनी संगीतकार च्यांग क्वो ची द्वारा बजायी गयी बांसुरी धुन "आनंद" में चीनी किसानों के सुखमय जीवन का वर्णन किया गया है और किसानों का हर्षोल्लास व्यक्त किया गया है।

पचपन वर्षीय च्यांग क्वो ची का जन्म दक्षिणी चीन के शांग हाई शहर में हुआ। परिवार बड़ा होने के कारण उनका जीवन बहुत कठिन था । दस वर्ष की उम्र में च्यांग क्वो ची ने छाया नाटक की कक्षा में संबंधित तकनीक सीखने के लिए प्रवेश किया। छाया नाटक चीनी लोक ऑपेराओं में से एक है।

छाया नाटक सीखने में च्यांग क्वो ची को बहुत रुचि नहीं थी, लेकिन छाया नाटक के प्रदर्शन के वाद्यों विशेष कर बांसुरी में उनकी दिलचस्पी जगी और इस तरह वे एक बांसुरी खरीद कर उसे खुद बजाने लगे। वर्ष 1972 में च्यांग क्वो ची सुप्रसिद्ध चीनी बांसुरी वादक चाओ सोंग थिंग के शिष्य बने और उन्होंने तभी सच्चे माइने में बांसुरी कला के द्वार में प्रवेश पाया।

वर्ष 1976 में च्यांग क्वो ची ने राजधानी पेइचिंग में आयोजित एक संगीत प्रतियोगिता में भाग लिया। उन्होंने स्वरचित बांसुरी धुन "जल क्षेत्र के लोगों की खुशी" के साथ इस प्रतियोगिता में भाग लिया और इसका सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार हासिल किया । इस के बाद उन्होंने विभिन्न लोक संगीत प्रतियोगिताओं में चैंपियनशिप प्राप्त की। इस तरह च्यांग क्वो ची चीनी संगीत जगत के सर्वश्रेष्ठ बांसुरी वादक के नाम से जाने लगे। लीजिए अब सुनिए उन की बांसुरी धुन "जल क्षेत्र के लोगों की खुशी"। झील और नदियों की अधिकता के कारण दक्षिणी चीन के च च्यांग प्रांत को चीन का जल क्षेत्र कहा जाता है। "जल क्षेत्र के लोगों की खुशी"नामक धुन में च च्यांग प्रांत के लोक गीत के तत्वों के आधार पर दक्षिणी चीन के सुन्दर दृश्य और स्थानीय रीति-रिवाज़ का वर्णन किया गया है।

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च्यांग क्वो ची ने अपने गुरु से बांसुरी बजानी ही नहीं सीखी, बांसुरी बनाने का तकनीक भी हासिल की। अनेक बार के अनुसंधान व कोशिशों के बाद वर्ष 1996 में च्यांग क्वो ची ने अपने मित्रों के सहयोग से विश्व की सब से बड़ी बांसुरी बनाई जिस का नाम "च्वू डी" रखा। चीनी भाषा में च्वू का मतलब है बहुत बड़ा और डी का मतलब है बांसुरी। इस बांसुरी की लम्बाई तीन मीटर से ज्यादा है और इसे बजाने के लिए तीन व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। च्वू डी बांसुरी की आवाज़ बहुत गहरी होती है। इस का चीनी जातीय वाद्यों में गहरी आवाज़ के विकास में भारी महत्व है।

च्वू डी को विश्व की सब से बड़े बांसुरी के रूप में गिनेस बुक में दर्ज किया गया। अब सुनिए च्वू डी बांसुरी पर बजायी गयी एक धुन, नाम है"चमेली का फूल"। इस धुन को दक्षिणी चीन के च्यांग सू प्रांत के इसी नाम के लोकगीत के आधार पर रचा गया है। विश्व की सब से बड़ी बांसुरी पर बजायी गयी यह धुन साधारण बांसुरी पर बजने वाली धुन की तुलना में एक विशेष अनभव देती है।

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अभी आप ने सुनी विश्व की सब से बड़े बांसुरी च्वू डी पर बजायी गयी एक धुन । अब सुनिए संगीतकार च्यांग क्वो ची द्वारा विश्व की सब से छोटी बांसुरी ख्व डी पर बजायी गयी एक धुन। ख्व का चीनी भाषा में अर्थ है मुंह। ख्व डी की लम्बाई लगभग तीन सेंटीमीटर होती है। इस पर सिर्फ़ एक छेद होता है और इसे बजाने में दोनों हाथों को मुंह के नज़दीक रखना पड़ता है। साधारण बांसुरी की आवाज़ की तुलना में ख्व डी की आवाज़ ज्यादा ऊंची होती है। अब सुनिए च्यांग क्वो ची द्वारा ख्व डी पर बजायी गयी रोमानियाई लोकधुन, नाम है"लेवरोक"। इस धुन में ख्व डी की विशेष आवाज़ से आकाश में स्वतंत्रता से उड़ने वाले पक्षी लेवरोक को सजीव रूप में दर्शाया गया है।

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लम्बे समय के अभ्यास से च्यांग क्वो ची ने बांसुरी बजाने की अपनी विशेष शैली विकसित की। आज का कार्यक्रम समाप्त होने से पहले सुनिए उनकी एक और धुन, नाम है"गांव का जीवन" । इस में चीन के गांव के किसानों का सुखमय जीवन व्यक्त हुआ है।

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