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(GMT+08:00) 2005-11-04 09:17:30    
काश्गर के मुसमानों का जीवन

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काश्गर शहर सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश के दक्षिणी भाग का एक इस्माली सांस्कृतिक केन्द्र है , जहां अब 34 लाख मुसलमान रहते हैं , जो शहर की कुल जन संख्या का 98 प्रतिशत बनता है ।

काश्गर का इस्लामी स्कूल में विशेष रूप से इस्लाम धर्म के लिए धार्मिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जाता है । स्कूल के कुलपति श्री मेमेतीचांग .अब्दुल ने हमें बताया कि स्कूल में हर साल 50 छात्र दाखिल किये जाते हैं । तीन साल के अध्ययन समय में वे मुख्यतः धार्मिक शिक्षा लेते हैं , इस के अलावा भूगोल व इतिहास जैसी सांस्कृतिक शिक्षा भी लेते हैं । स्कूल से स्नातक होने के बाद वे बहुधा दूर दराज इलाकों में धार्मिक मिशन के लिए जाते हैं , जहां धार्मिक कर्मचारियों की कमी है ।

इस्लाम धर्म दसवी शताब्दी में मध्य एशिया से चीन आया , वर्तमान में काश्गर में करीब दस हजार मस्जिद स्थापित हुए हैं , जिन में दस हजार से ज्यादा धार्मिक कर्मचारी कार्यरत हैं । काश्गर निवासियों की नजर में मस्जिद में धार्मिक मिशन करने की नौकरी एक बहुत गौरवपूर्ण काम है ।

19 वर्षीय वेवूर जाति के युवा अबुलेती .उकुली काश्गर इस्लाम स्कूल के दूसरे वर्ष का छात्र है । वे एक धनी परिवार का बेटा है और माता पिता की अच्छी आय से परिवार के तीनों औलादों को अच्छी शिक्षा मिली है , अबुलेती का बड़ा भाई सिन्चांग कृषि कालेज से स्नातक हुआ और बड़ी बहन अब सिन्चांग मेडिकल कालेज की छात्रा है । हाई स्कूल से स्नातक होने के बाद अबुलैती ने काश्गर इस्लाम स्कूल में पढ़ने का निश्चय किया , क्योंकि उसे धर्म में गहरा दिलचस्पी है । वे कहते हैः

मैं इस स्कूल में पढ़ने का बड़ा इच्छुक हूं , मुझे लगता है कि यहां धार्मिक कार्य में लगे लोगों की संख्या कम है । स्कूल से स्नातक होने के बाद मैं धार्मिक मिशन का काम करूंगा और मेरे विचार में धार्मिक कार्यकर्ता एक अच्छा कैरियर है ।

मक्का की तीर्थ यात्रा हरेक मुसलमान की एक बड़ी तमन्ना है। हर साल कुछ न कुछ काश्गर मुसलमान मक्का जाते हैं । कुछ लोग निजी तौर पर जाते हैं और कुछ लोग स्थानीय इस्लाम संघ के प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के साथ जाते हैं । अब सिन्चांग से सऊदी अरब के बीच सीधा हवाई सेवा खुली है , इसलिए मक्का जाने की बड़ी सुविधा है । तीर्थ यात्रा पर जाने वाले विमानों में विशेष चिकित्सक और दुभाषिया भी भेजे जाते हैं । पिछले साल काश्गर से मक्का गए मुसलमानों की संख्या 1500 से अधिक हो गयी , जिन में बहुत से बुजुर्ग मुसलमान थे ।

65 वर्षीय वेवूर जाति के बुजुर्ग मुसलमान श्री अकमु. मामुती उन मुसलमानों में से एक है , मक्का की तीर्थ यात्रा के बाद उन का नाम अकमु .हाजी रखा गया । अपनी मक्का यात्रा की चर्चा में श्री अकमु .हाजी ने बड़े उत्साह के साथ कहाः

मक्का के लिए रवाना होने से पहले मैं ने अपने सभी परिवार वालों , रिश्तेदारों और पड़ोसियों को घर पर बुलाया था और मुझे विदा देने के लिए घर पर एक भव्य दावत हुई । दरअसल , मैं उस समय सोचता था कि कहीं बड़ी उम्र होने के कारण सऊदी अरब पहुंचने के बाद तपता गर्म मौसम नहीं सह सकने पर वापस तो नहीं आ सकूं । इसलिए सभी परिचितों को पास बुलाया गया था ।

श्री अकमु .हाजी की विनोदपूर्ण बातों से सब लोग हंस पड़े । वे मिलनसार , खुली मिजाजी और चुस्त स्वस्थ हैं । उन्हों ने बताया कि मक्का से लौटने के बाद उन्हों ने फिर एक बार रिश्तेदारों व पड़ोसियों को घर पर बुलाया था और खुशी मनाने के लिए अच्छी दावत भी हुई । वे मक्का से सऊदी अरब के खजूर और मक्का का पवित्र जल लाये थे और उपस्थित हरेक लोग ने पानी की एक चुसकी ली , वे कहते थे कि पवित्र जल पीने के बाद हमें लगता है कि हम भी मक्का गए हैं , यह हाजी अकमु का वरदान है , जिस पर श्री अकमु .हाजी को खुशी से फुल नहीं समाया ।

मक्का की यात्रा पर उन का अनुभव पूछने पर जो जवाब मिला है , वह सभी लोगों की सोच कल्पना से बाहर हो गया ।

वे कहते हैं कि मुझे सब से बड़ा अनुभव यह हुआ है कि मैं विदेशी भाषा नहीं जानता हूं । सऊदी अरब के लोग या तो अरबी बोलते हैं या अंग्रेजी , कुछ लोग उर्दू भी जानते हैं । लेकिन मैं मात्र वेवूर भाषा जानता हूं । मैं उन के साथ विचारों का आदान प्रदान करने में असमर्थ था , थोड़ा थोड़ा मनहूस भी हुआ था । घर लौटने के बाद वे हर युवा लोग से कहते हैं कि तुम लोग अवश्य अच्छी तरह अध्ययन करें और ज्यादा से ज्यादा ज्ञान संजोए रखें । मक्का से लौटने के बाद उन्हें सब से बड़ा संतोष इस पर हुआ है कि सभी परिचित लोग आदर के साथ उन्हें हाजी संबोधित करने लगे हैं ।

मक्का की तीर्थ यात्रा के लिए बड़ा खर्च होता है , इसलिए काश्गर में जो मुसलमान मक्का गए है , वे अधिकांश अमीर लोग हैं । 63 वर्षीय अब्दुर्रहमान . कारी .हाजी उन में से एक है ।

श्री अब्दुर्रहमान काश्गर के एक मस्जिद के इमाम हैं , वर्षों पहले ही वे मक्का की तीर्थ यात्रा कर चुके थे । उन के घर आंगन में प्रवेश के बाद हमें बड़ा आश्चर्य हुआ । उन का यह 600 वर्गमीटर वाला बड़ा आंगन फल बगिचा सा लगता है । आंगन की क्यारी में गुलाब के फुल खिले हैं , मकानों की दीवारों व बाड़ों पर हरे भरे अंगूर की बेलियां लपेटी हुई हैं , बादाम , अनाड़ और आड़ू के पेड़ पौधे तो आंगन मकान को शीतल छाया देते हैं । श्री अब्दुर्रहमान ने हमें बताया कि यह उन का पैतृक जायदाद है । अब उन के परिवार को अनेक स्रोतों से आय मिलती है ।

मस्जिद के इमाम होने के रूप में मैं हर माह सरकार से जीवन के लिए वेतन पाता हूं , इस के अलावा मैं काश्गर इस्लाम धर्म स्कूल का शिक्षक हूं , वहां से चार पांच सौ य्वान का मासिक वेतन मिलता है । हमारे परिवार की मुख्य आय होटल के संचालन से आती है । हमारे होटल का किराया कम है और सेवा अच्छी है । इसलिए व्यापार हमेशा उम्दा रहा है । मेरे बेटे बेटी भी व्यापार करते हैं या नौकरी करते हैं , सो परिवार को अच्छी अच्छी आमदनी प्राप्त होती है ।

श्री अब्दुर्रहमान का कहना है कि उन की संपत्ति अल्लाह का वरदान है , यदि किसी को मदद सहायता की जरूरत हुई , तो वे बिना संकोच के साथ अपना पैसा निकाल कर उसे मदद देने आते हैं । दयालु और परोपकारी चरित्र सभी मुसलमानों का आदर्श आचार है ।