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(GMT+08:00) 2005-10-21 09:30:09    
रेगिस्तान में नख्लिस्तान

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पिछले कार्यक्रमों से आप को मालूम हुआ होगा कि चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में कई विशाल मरूभूमि फैली है । लेकिन विश्व में मशहूर इस रेगिस्तान क्षेत्र में जगह जगह नख्लिस्तान देखने को मिलता है । ये नख्लिस्तान सिन्चांग में आबाद विभिन्न जातियों के लोगों द्वारा पीढियों से कड़ी मेहनत की जाने का सुफल हैं , इन नख्लिस्तानों में हवा नगर के नाम से मशहूर थोक्सन नगर रेतीली तूफान पर काबू पा कर निर्मित एक सुन्दर शहर है ।

थोक्सन चीन में हवा नगर से मशहूर है , यहां साल के 365 दिन में तेज हवा चलती है और सौ दिन तक तीव्रता के आठवें दर्जे की हवा उड़ती है , जब तेज रेतीली हवा चल रही है , तो कभी कभी उस के साथ एक मीटर गहरी मिट्टी उड़ा कर ले जायी जाती है । थोक्सन में अब भी हवा द्वारा जमीन की सतह उखाड़ कर बनाये गए गढे देखने को मिलते हैं । वर्ष 1979 में थोकसन में 12 दर्जे की तीव्र हवा चली , जिस से सौ स्थानीय लोग रेतीली टीलों के नीचे दब कर मारे गए ।

हवा पर काबू पाने के लिए थोकसन वासियों ने पीढियों से अथक कोशिश की थी और रेगिस्तान में नख्लिस्तान बनाने का सपना देखते आए । लेकिन उन के तरीकों के ठीक नहीं होने के कारण सफलता बहुत कम मिली । थोकसन काऊंटी के वन्य ब्यूरो के प्रधान श्यु छुनफु ने हमें बतायाः

हवा पर विजय पाने के लिए हमारे पितृक पीढियों में कोई अच्छे तरीके नहीं ढूंढे जा सके थे । रेतीली हवा को नियंत्रण में रखने की कोशिशों में वैज्ञानिक तकनीकी तरीके बहुत कम थे और उन के समय पूंजी का भी अभाव रहा था । इसलिए लम्बे अरसे तक तेज हवा पर काबू नहीं किया जा पाया । जब तेज हवा चली , तो कृत्रिम निर्मित हरित स्थान फिर से हवा तले दब जाता था ।

श्री श्यु के अनुसार हवा पर नियंत्रण रखने में विज्ञान की बड़ी आवश्यकता है । पिछली सदी के अस्सी वाले दशक में थोकसन वासियों ने पारिस्थितिकी को बेहतर निर्मित करने पर प्राथमिकता देना शुरू किया , विशेषज्ञों की मदद से उन्हों ने हवा पर काबू पाने के लिए बहुमुखी निर्माण योजना बनायी और काऊंटी की नेतृत्व संस्था की रहनुमाई में जिला भर में रेतीली भूमि पर नियंत्रण रखने का अभियान चलाया गया ।

उन्हों ने रेतीली टीलों के आगे हवा रोकने के लिए अनेकों लम्बी दीवारें बनायीं , दीवारों के भीतर वृक्षरोपन किया और घास पौधे लगाये , रेगिस्तान व मरूभूमि पर उन्हों ने रेगिस्तान में उगने के काबिले विशेष वनस्पतियों की खेती की , जिस से चलती फिरती रेतों को जड़ित कर स्थिर किया गया और उद्गम स्थलों पर रेतीली भूमि को मजबूत किया गया। उन्हों ने मीटरों ऊंचे रेतीली टीलों को हटा कर वहां वनस्पतियां लगा दीं , परिणामस्वरूप रेतीली भूमि को कम कर दिया गया ।

दर्जनों सालों के अथक प्रयासों से थोक्सन काऊंटी में कृत्रिम वन क्षेत्रों का रकबा 6 हजार हैक्टर हो गया और मरूभूमि में 3 हजार हैक्टर पर वनस्पतियां बिछायी जा चुकी हैं । विशाल जमीन पर बिछी हरियाली से थोकसन काऊंटी का तापमान भी गिर गया और हवा भी कम चली । वन्य ब्यूरो के प्रधान श्यु छुन फु ने गर्व के साथ कहाः

काऊंटी में निर्मित वन्य रक्षा क्षेत्रों की लाइनें बहुत घनी मोटी है , गर्म सूखा हवा कृषि क्षेत्रों तक जा पहुंचने के बाद बहुत कमजोर बन जाती है और मोटी मोटी वन्य रक्षा लाइनों के कारण तापमान भी नीचा आया , पहले हर अगस्त माह में यहां का तापमान 45 --46 डिग्री सेल्यिस होता था , अब 43 डिग्री से नीचे आया है । रेगिस्तान से चली आयी आठ दर्जे की हवा भी यहां पहुंच कर 6 दर्जे की रह जाती है । अब रेतीली हवा भी नहीं आयी ।

रेत नियंत्रण अग्रिम मोर्चे पर आबाद ओईपुलाक गांव जाने के रास्ते में जगह जगह अपार वन पट्टियां दिखाई पड़ी है , वन रक्षा लाइनों के बीच हरी भरी खड़ी फसल लहलहा रही है । गांव के पीछे बलबल बहती छोटी नदी के नजारे ने हमें बहुत प्रभावित कर दिया , स्वच्छ पानी की नदी में बच्चे जल क्रीड़ा खेल रहे हैं , नदी के किनारे किनारे दूर तक रेतीली टीले और रेतिस्तान बढ़ते नजर आये हैं , जिन पर रेगिस्तानी विलो पेड़ जैसे वृक्ष और झाड़ियां उगती हैं ।

गांव वासियों के साथ जब हमारी बातचीत चली , तो उन्हों ने बड़ी खुशी के साथ हमें रेतीली हवा से संघर्ष की कहानी सुनायी ।

प्राकृतिक विपदाओं से लम्बे समय तक संघर्ष करने से थोकसन निवासियों को यह गहरा अनुभव हुआ है कि प्रकृति का संरक्षण करने से ही प्रकृति लोगों को शांति और सुनहरा जीवन ला सकता है । 66 वर्षीय वेवूर जातीय वृद्ध कदरगाजिती ने बतायाः

मेरे बचपन के समय यहां रेतीली हवा बहुत तेजी से चलती थी , रेतों के जमा रहने से अक्सर हमारे मकानों की दरवाजें और खिड़कियां बाहर से बन्द पड़ती थीं, जिसे अन्दर से खोला नहीं जा सकता , नाचार हो कर हम ने मकान की छत पर निर्मित झरोखे से बहार निकल कर रेतों को हटाया, तभी दरवाजा खोली जा सकती थी । अब रेतों से मकान दब मग्न होने की हालत फिर नहीं हुई है ।

कदरगाजिती ने गांव के पास एक रेतीली दरिता की ओर इशारा करते हुए हमें बताया कि पहले वह एक नदी थी , जिस में स्वच्छ पानी बहता था और बचपन में वे अकसर पानी में तैरने जाते थे । उस समय नदी के किनारों पर घनी हरित वृक्षों और सरपतों की झाड़ियां उगी हुई थी । लेकिन बाद में गांववासियों ने पेड़ों का अंधाधुंध कटाई की . जिस से पारिस्थितिकी को गंभीर क्षति पहुंची ,वह छोटी नदी भी रेतीली आकार में बदल गयी ।

बिगड़ी हुए पारिस्थितिकी का नुकसान जानने के बाद गांववासियों ने पेड़ों को काटने के बदले हर साल वृक्षरोपन आरंभ किया , अब हर साल हर गांववासी औसतः सौ से ज्यादा पेड़ लगाता है । गांववासियों में यह कड़ा निर्धारण तय हुआ है कि किसी को भी मनमानी से पेड़ काटने और हरित घास पर चराने की कतई इजाजत नहीं है । वर्षों से किसी ने गांव के इस निर्धारण का उल्लंघन नहीं किया ।

ओईबुलाक गांव के नजदीक यंगताई नाम का एक गांव है , जो रेतीली हवा से ग्रस्त हुआ करता था । वर्ष 1965 में गांव वासियों को गांव छोड़ कर दूसरी जगह स्थानांतरित होना पड़ा । 20 सालों के बाद स्थानीय सरकार के आह्वान में गांववासियों ने फिर अपने पुराने गांव में लौटकर पुनर्वास का काम शुरू किया ।

यंगताई गांव में हमारी मुलाकात 75 वर्षीय वेवूर जातीय बुजुर्ग श्री अहमेद अब्दुलइमु से हुई , उन का घर आंगन बहुत बड़ा है , घर आंगन के पास एक विशाल फल बाग है । वे गांव में स्थित मस्जिद के मुल्ला हैं , उन्हों ने अनेकों बार अल्लाह से अपने गांव के संरक्षण की प्राथना की है । वे कहते हैः मेरे जीवन काल में हमारा गांव तीन बार रेतों तले दब कर मग्न हुआ था , पहले सपने में भी नहीं देखा था कि रेतों पर काबू किया जा सकता है और गांव की भूमि पर फसलों की खेती हुई है । अब हमारे गांव में हर जगह खुशहाली नजर आयी है ।

अहमेद अब्दुलईमु के फल बगिचा में सेब , नाश्पाती और अंगूर के हरे हरे पेड़ हैं , वे रोज बगिचे में थोड़ी देर के लिए जाना पसंद करते हैं । गांव वासी माहमुती ने मनोद के अंदाज में पूछा कि क्या आप अब रेतीली हवा से डरते हैं , तो अब्दुलईमु ने मुस्कराते हुए जवाब किया कि मैं अब महज मौत से डरता हूं , यदि मर गया , तो आज के सुखमय जीवन के आनंद से छूट जाऊं । उन की इस बातों पर पूरा आंगन कहकहे की आवाज से गूंज उठा ।

श्री अहमेद अब्दुलईमु के साथ बातचीत के दौरान गांव वासियों ने भी पास आकर तत्काल के रेतीली हमलों की याद कीः किसी का कहना है , पहले वहां की तेज हवा बहुत भयानक थी , रेत नदी के जल प्रवाह की तरह उड़ता चलता था । तेज हवा चलते समय बच्चे का विशेष देखभाल करना पड़ता था , डर था कि कहीं रेतों से बच्चे की सांस न अवरूद्ध हो जाए । किसी ने कहा कि अब रेत से डर नहीं है , पेड़ों की जंगल से रेतीली हवा रोकी जा चुकी है , गांववासी आराम से रात सो सकते हैं ।

गांववासियों के आशीर्वाद और हर्षोल्लास के बीच हम यंगताई गांव से बिदा हुए । संध्या काल में विशाल भूमि पर हरित फसलें लहलहा रही है , हल्के हवा के झोंके में गांवों में शीतल व शांत वातावरण छाया रहा । कोन सोच सकता है कि अतीत में यह एक रेतीली भूमि थी । दूर से सुनाई दे रहे लोक गीत से गांव वासियों का सुखमय जीवन अभिव्यक्त हुआ है ।