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(GMT+08:00) 2005-10-17 14:42:05    
कसीदाकार चांग छ्वुन इंग

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म्याओ जाती के कसीदे चीनी लोक कलाकृतियों के रूप में मशहूर हैं, लेकिन समाज के आधुनिकीकरण के साथ म्याओ जाति की कसीदाकारी की प्राचीन तकनीक धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगी है। आज के इस लेख में हम आप को परिचय देंगे, म्याओ जाति की एक कसीदाकार चांग छ्वुन इंग का। वे म्याओ जाति के कसीदे काढ़ने में ही निपुण नहीं हैं, इस तकनीक के विकास व प्रचार की भी अथक कोशिश करती रही हैं।

चांग छ्वुन इंग ने दक्षिणी चीन के क्वांग चो शहर स्थित कपड़े के एक कारखाने में मशीन से कढ़ाई करने वाली मज़दूर की नौकरी की। इस दौरान उन्हें आधुनिक कसीदाकारी की जानकारी हासिल हुई, लेकिन चांग छ्वुन इंग को अब भी अपनी जातीय कसीदाकारी कहीं ज्यादा पसंद थी। इसलिए अवकाश के समय वे अपनी पसंद के जातीय कसीदे काढ़तीं। बाद में चांग छ्वुन इंग की कुछ रचनाएं राजधानी पेइचिंग में प्रदर्शित की गयीं और उन्हों ने पेइचिंग में जातीय वस्त्रों की एक दुकान खोली, जहां वे म्याओ जाति के कसीदे वाले वस्त्र बेचती थीं। राजधानी पेइचिंग में रहने वाले अनेक विदेशियों को चांग छ्वुन इंग की जातीय विशेषता वाली रचनाएं बहुत पसंद आईं। वे म्याओ जाति की लड़कियों द्वारा कपड़ों पर काढ़े गये कसीदों से अपने कमरों को सजाने लगे। यह देख कर चांग छ्वुन इंग के मन में म्याओ जाति की कसीदाकारी के विकास का विचार आया।

राजधानी पेइचिंग में चांग छ्वुन इंग अपना व्यापार अच्छी तरह चला रही थीं, लेकिन अपने मां-बाप और छोटे बच्चे की देखभाल के लिए उन्हें क्वे चो शहर वापस लौटना पड़ा। म्याओ जाति के कसीदे बेचने के दौरान चांग छ्वुन इंग ने पाया कि म्याओ जाति के कसीदे अनेक घरों में कलात्मक वस्तु की तरह सुरक्षित हैं। लेकिन इस बीच म्याओ जाति की लड़कियों ने कसीदा काढ़ना कम कर दिया। वे अब या तो पढ़ती हैं, या बाहर जाकर काम करती हैं। इसलिए म्याओ जाति के कसीदाकारी की तकनीक धीरे-धीरे खोने सी लगी। इसे देखते हुए चांग छ्वुन इंग ने अपने सारी कमाई का प्रयोग अपने जन्मस्थान में एक कसीदा कारखाने की स्थापना करने में किया। इस कारखाने में पचास से ज्यादा मज़दूर हैं। चांग छ्वुन इंग का यह कारखाना में कसीदा किये वस्त्र बेचने के साथ स्थानीय लड़कियों को कसीदाकारी का प्रशिक्षण भी देता है। इस की चर्चा में चांग छ्वुन इंग ने कहा

"वर्तमान में कसीदों की कीमत अगर महंगी होती गई है तो इसलिए कि आज की पीढ़ी की लड़की कसीदा नहीं काढ़ना चाहती। कसीदा करने के लिए शांति की जरूरत होती है। अगर कसीदा करने वाला दिन भर अन्य चीज़ों के बारे में सोचता रहे, तो कोई डिज़ाइन नहीं काढ़ सकता। इसलिए मैं लड़कियों को गठित कर पढ़ाने के साथ कसीदा भी सिखा रही हूँ। मेरा विचार है कि हमें अपनी जाति की कसीदाकारी खोनी नहीं चाहिए। इन लड़कियों को प्रशिक्षित कर कसीदाकारी की बुनियादी तकनीक देने का मेरा उद्देश्य यह भी है कि यदि भविष्य में वे कोई रोज़गार न पा सकीं को कसीदाकारी तो कर ही सकेंगी ।"

चांग छ्वुन इंग का कसीदा कारखाना क्वांग चो शहर के बाज़ार में आधुनिक कसीदों की प्रोसेसिंग करने के साथ म्याओ जाति के परंपरागत कसीदे भी काढ़ता है। म्याओ जाति के कसीदों वाले कपड़े के निर्माण की प्रणाली बहुत जटिल होती है । इसमें आम तौर पर एक व्यक्ति एक साल में दो सेट कपड़े ही बना पाता है। इस तरह के कपड़े के एक सेट का दाम पांच-छै हज़ार अमरीकी डालर होता है।

चांग छ्वुन इंग ने परम्परागत वस्त्रों की प्रोसेसिंग के साथ म्याओ जाति के डिजाइनों में बाज़ार के अनुकूल सुधार भी किया। मसलन म्याओ जाति की परम्परा के अनुसार, म्याओ महिलाएं अलग कपड़े पर डिज़ाइन काढ़ कर उसे कपड़े पर सीती हैं। लेकिन चांग छ्वुन इंग सीधे कपड़े पर डिज़ाइन काढ़ती हैं। वे म्याओ जाति के कसीदों से आधुनिक कपड़ों को सजाती हैं। इस की चर्चा में चांग छ्वुन इंग ने कहा

"हमारी म्याओ जाति के कसीदों को बाज़ार व आधुनिक समय के अनुकूल होना चाहिए। मेरा विचार है कि हर व्यक्ति हमारी म्याओ जाति के कसीदे वाले परम्परागत कपड़े नहीं पहनना चाहता। अगर हान जाति की बहन सिर्फ़ एक फूल के डिज़ाइन का कसीदा पसंद करती हैं, तो हम साधारण कपड़े पर भी यह डिजाइन काढ़ सकते हैं। ऐसा कपड़ा हमारी परम्परागत पोशाक की तुलना में ज्यादा सरल होगा और उस का दाम भी महंगा नहीं होगा। मैं भविष्य में इस क्षेत्र में विकास चाहती हूँ।"

चांग छ्वुन इंग गांव-गांव जाकर म्याओ जाति के कसीदों के प्राचीन लोक डिज़ाइन भी जमा कर रही हैं। परम्परागत तकनीक से बने म्याओ जाति के कसीदों के ये डिज़ाइन सैकड़ों वर्ष बाद भी आज पहले की ही तरह नये और रंगीन लगते हैं और बहुत मूल्यवान हैं। चांग छ्वुन इंग का कहना है कि म्याओ जाति के कसीदे म्याओ जाति की अमूल्य संपत्ति हैं। अगर इन का विकास न किया गया, तो भविष्य में इनकी तकनीक खो जाएगी। चांग छ्वुन इंग ने कहा कि उनका पैसे कमाने का मकसद दूसरों की तरह नहीं है। वे अपने सारी कमाई म्याओ जाति के कसीदों के प्राचीन नमूनों को एकत्र करने और म्याओ जाति की कसीदाकारी के विकास में खर्च करना चाहती हैं।