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(GMT+08:00) 2005-10-12 18:37:09    
म्याओ जाति की कसीदाकार

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दक्षिण-पश्चिमी चीन के क्वेचो प्रांत की म्याओ जाति की महिलाओं में कसीदाकारी पीढ़ी दर पीढ़ी फलती-फूलती आई है। म्याओ जाती के कसीदे चीनी लोक कलाकृतियों के रूप में मशहूर हैं, लेकिन समाज के आधुनिकीकरण के साथ म्याओ जाति की कसीदाकारी की प्राचीन तकनीक धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगी है। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को परिचय देंगे, म्याओ जाति की एक कसीदाकार चांग छ्वुन इंग का। वे म्याओ जाति के कसीदे काढ़ने में ही निपुण नहीं हैं, इस तकनीक के विकास व प्रचार की भी अथक कोशिश करती रही हैं।

म्याओ जाति दक्षिण-पश्चिमी चीन के क्वेचो प्रांत में बसी हुई अल्पसंख्यक जाति है। म्याओ जाति के लिए कसीदाकारी बहुत साधारण चीज है। दस वर्ष की उम्र की लड़की से बूढ़ी औरतें तक इस कला में निपुण हैं। वे अपने रोजाना पहने जाने वाले वस्त्रों, त्योहार के वस्त्रों, यहां तक कि अन्य साधारण वस्तुओं पर भी सुन्दर डिज़ाइन काढ़ती हैं। म्याओ जाति की महिलाओं में प्रचलित एक कहावत व्यक्ति की तुलना व्यक्ति से और फूल की तुलना फूल से करती है। व्यक्ति की तुलना व्यक्ति से करने का मतलब है लोगों के गाने व नाच तुलना करना और फूल की तुलना फूल से करने का मतलब है महिलाओं का वस्त्रों पर काढ़े गये कसीदों के डिज़ाइन की तुलना करना। म्याओ जाति की लड़किआं सात-आठ वर्ष की उम्र से ही कसीदाकारी सीखने लगता हैं और चौदह-पंद्रह वर्ष की आयु में वे कसीदाकारी की तकनीक में निपुण हो जाती हैं। तकनीक का प्रशिक्षण मां से बेटी या बड़ी बहन से छोटी बहन में चलता है। म्याओ जाति की कसीदाकार चांग छ्वुन इंग ने हमारे संवाददाता को इस परम्परागत तकनीक का परिचय देते हुए कहा

" म्याओ जाति की लड़कियां बचपन से ही अपने आप काढ़े गए वस्त्र पहनने लगती हैं। म्याओ जाति में निरक्षर पुरुष को कोई स्थान नहीं दिया जाता और जिस लड़की को कसीदाकारी नहीं आती, उस की शादी नहीं हो पाती है। अगर लड़की काढ़ने में निपुण हो, तो सभी उसे प्यार करते हैं और उस से यह कला सीखना भी चाहते हैं । इस तरह हमारी लड़कियों को छुटपन से ही कढ़ाई का शौक हो जाता है।"

36 वर्षीय चांग छ्वुन इंग का जन्मस्थान क्वे चो प्रांत के दक्षिण- पूर्वी भाग के म्याओ जाति बहुल क्षेत्र में स्थित है। उसकी क्वे चो की राजधानी क्वे यांग में एक दुकान है, जहां वह म्याओ जाति के कसीदे वाले वस्त्र बेचती है। हमारे संवाददाता के साथ साक्षात्कार के समय चांग छ्वुन इंग ने विशेष तौर पर त्योहार के दिनों में पहने जाने वाले शानदार वस्त्र पहन रखे थ, जिस से हमारे संवाददाता बहुत आकृष्ट हुए। इन काले रंग के कपड़ों पर भिन्न-भिन्न डिज़ाइनों वाले रंगीन कसीदे काढ़े गये थे। इन सुन्दर कपड़ों के बीच उन के हाथ, गर्दन और सिर पर सजा आभूषण भी एक खास चमक पैदा करता था।

चांग छ्वुन इंग ने बताया कि यह कपड़ा उसने अपनी छोटी बहन के साथ मिल कर काढ़ा।

म्याओ जाति के कसीदे विविधता लिये होते हैं। उनकी कढ़ाई के लगभग तीस तरीके हैं। कढ़ाई के कई बहुत कठिन तरीके अधिक लोगों को नहीं आते। वे उन्हें दूसरों से सीखने पड़ते हैं। चांग छ्वुन इंग ने बचपन में ही कसीदाकारी में अपनी प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी थी। उन्हें कढ़ाई की सभी तकनीकें आती हैं। हमारे संवाददाता के साथ साक्षात्कार के समय उन्हों ने अपनी कढ़ाई का प्रदर्शन भी किया। इसमें बहुत थोड़े ही समय में उन्हों सुई से कपड़े पर एक सुन्दर फूल का डिज़ाइन काढ़ा, जो देखने में बहुत सजीव था।

म्याओ जाति की परम्परागत रीति के अनुसार महिलाएं घर से बाहर नहीं जा सकतीं और सिर्फ़ घर का काम करती हैं। लेकिन चांग छ्वुन इंग 20 वर्ष की उम्र में अपने जन्मस्थान से बाहर आकर काम करने लगीं। उन्होंने दक्षिणी चीन के क्वांग चो शहर स्थित कपड़े के एक कारखाने में मशीन से कढ़ाई करने वाली मज़दूर की नौकरी की। इस दौरान उन्हें आधुनिक कसीदाकारी की जानकारी हासिल हुई, लेकिन चांग छ्वुन इंग को अब भी अपनी जातीय कसीदाकारी कहीं ज्यादा पसंद थी। इसलिए अवकाश के समय वे अपनी पसंद के जातीय कसीदे काढ़तीं। बाद में चांग छ्वुन इंग की कुछ रचनाएं राजधानी पेइचिंग में प्रदर्शित की गयीं और उन्हों ने पेइचिंग में जातीय वस्त्रों की एक दुकान खोली, जहां वे म्याओ जाति के कसीदे वाले वस्त्र बेचती थीं। राजधानी पेइचिंग में रहने वाले अनेक विदेशियों को चांग छ्वुन इंग की जातीय विशेषता वाली रचनाएं बहुत पसंद आईं। वे म्याओ जाति की लड़कियों द्वारा कपड़ों पर काढ़े गये कसीदों से अपने कमरों को सजाने लगे। यह देख कर चांग छ्वुन इंग के मन में म्याओ जाति की कसीदाकारी के विकास का विचार आया।

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