हारपीन शहर पहले सिर्फ एक छोटा कस्बा था और जहां की अधिकांश आबादी अल्पसंख्यक जाति मान जाति की थी । बाद में भीतरी चीन के अकाल संकट पड़ने से हपेह व शानतुंग प्रातों में रहने वाले लोग जीविका के लिये लम्बे रास्ते तय कर हारपीन शहर पहुंचकर बसने लगे । फिर इस शहर के धीरे धीरे विकास के चलते पूर्व सोवियत संघ और अन्य पश्चिमी देशों की बड़ी संख्या में नागरिक भी यहां आकर बस गये और बहुत से पश्चिमी वास्तुशैलियों से युक्त निवास भवन , गिरजाघर और डिपार्टमेंट स्टोर भी स्थापित कर चुके हैं
प्रिय मित्रों , उत्तर पूर्वी चीन के हेलुंगच्यांग प्रांत की राजधानी हारपीन का मनमोहक प्राकृतिक दृ्श्य देखने के बाद इस शहर में सुरक्षी विदेशी शैलियों में निर्मित शानदार इमारतें भी बहुत लुभावना है । पर क्या आप जानते हैं कि हारपीन शहर पहले सिर्फ एक छोटा कस्बा था और जहां की अधिकांश आबादी अल्पसंख्यक जाति मान जाति की थी । बाद में भीतरी चीन के अकाल संकट पड़ने से हपेह व शानतुंग प्रातों में रहने वाले लोग जीविका के लिये लम्बे रास्ते तय कर हारपीन शहर पहुंचकर बसने लगे । फिर इस शहर के धीरे धीरे विकास के चलते पूर्व सोवियत संघ और अन्य पश्चिमी देशों की बड़ी संख्या में नागरिक भी यहां आकर बस गये और बहुत से पश्चिमी वास्तुशैलियों से युक्त निवास भवन , गिरजाघर और डिपार्टमेंट स्टोर भी स्थापित कर चुके हैं , शहर के मरकजी इलाके में स्थित केंद्रीय सड़क इस शहर की स्वर्ण सड़क के नाम से जानी जाती है ।
गाइट सुश्री काउ ने कहा कि हारपीन शहर में 1905 में ही चार शहरी डिस्ट्रिकट क्षेत्रों का बटवारा हुआ था उन का नाम था ताउ न्यी , नान कांग और ताउ वाइ व शिंगफान है । नानकांग व ताउ न्यी क्षेत्रों में अधिकतर अमीर लोग व पश्चिमी लोग रहते थे , जिन में यहूदी लोग भी बहुत ज्यादा थे । जब कि ताउ वाइ व शिंगफान क्षेत्रों में गरीब लोग और चीन के दूसरे प्रांतों से आये श्रमिक रहते थे । इसलिये हारपीन शहर को एक उत्प्रवासिय शहर भी कहा जा सकता है ।
अतीत में हारपीन शहर पश्चिम के देशों के अनेक प्रवासियों का निवास स्थल रहा। इसीलिए शहर में अब भी विविधतापूर्ण पश्चिमी वास्तु शैलियों में निर्मित भवन औऱ गिरजे देखने को मिलते हैं।
शहर में आज भी बारोक , बाइजैंटिन आदि दसेक पश्चिमी वास्तुशैलियों वाली इमारतें सुरक्षित हैं। इन पश्चिमी भवनों के साथ चीनी इमारतों को अपने में समेट कर हारपीन ने बहुत सुंदर रूप धारण कर लिया है। शहर की इमारतों की कतारों के बीच घूमते-टहलते हुए आपको रूसी शास्त्रीय संगीत की स्वर लहरी सुनाई पड़ेगी और आप अपने आसपास ब्राजीली काँफी की सुगंध बिखरी पायेंगे।
हारपीन की सड़कों के किनारे या शहर के विभिन्न भवन समूहों के बीच अगर आपको बाइजैंटिन शैली में निर्मित रूढ़िवादी सेंट सोफिया गिरजा और गोथिक शैली का कैथोलिक गिरजा मिलेगा तो नीले व सफेद रंगों वाली मसजिद और अन्य शैलियों में निर्मित गिरजे भी आप पायेंगे।
एक सदी पुरानी हारपीन की केंद्रीय सड़क का निर्माण 1898 में हुआ। उस समय यह चीन सड़क कहलाती थी पर 1925 से केंद्रीय सड़क के नाम से जानी जाने लगी। आज इस के दोनों किनारों पर जो 71 विशेष इमारतें दिखाई देती हैं , उन में से अधिकांश का निर्माण 1903 से 1927 के बीच किया गया । बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक दौर में ही यह सड़क अपनी रौनक से विश्वविख्यात हो गई थी। तब यहां रूसी चमड़े से बनी वस्तुएं, फ्रांसीसी इत्र, जर्मन मदिरा, अमरीकी मिट्टी तेल और स्विटजरलैंड की घड़ियां इत्यादि वस्तुएं बिकती थीं । धीरे-धीरे रूस , फ्रांस और जर्मनी के लोग यहां बसने लगे और उन्हों ने शहर में रहते हुए अपनी अलग जीवनशैली व रीति की छाप भी छोड़ी।
हालांकि आज शहर की केंद्रीय सड़क पर पहले से कहीं अधिक चहल-पहल नजर आती है , पर पश्चिमी वास्तु शैलियों वाली पुरानी इमारतें अब भी इस रौनक भरी जगह में ज्यों की त्यों खड़ी दिखती हैं और वे यदा-कदा लोगों को अपने समय की यादें दिलाती रहती हैं। शहर में उन की मौजूदगी से यही साबित होता है कि शहर अपनी स्थापना से लेकर आज तक कैसे बाहरी संस्कृतियों से प्रभावित रहा है ।
उल्लेखनीय है कि हारपीन शहर में 1902में ही चीनी प्रथम सिनेमाघर निर्मित हुआ , 1920 में चीन में प्रथम फूटबोल टीम व 1930 में प्रथम फिल्म कम्पनी का जन्म हुआ । ये सब चीन के अन्य शहरों में बहुत कम देखने को मिलते हैं । इतना ही नहीं , इस शहर में भारत सड़क , कोरिया सड़क , रूसी सड़क और मकाओ सड़क आदि जगह बहुत मनमोहक व दिलचस्प हैं , आइंदे हम चीन का भ्रमण के इसी कार्यक्रम में आप को वहां देखने ले जायेंगे .
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