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(GMT+08:00) 2005-09-28 14:30:27    
चीन का आर्कटिक वैज्ञानिक सर्वेक्षण

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आर्कटिक और अंटार्कटिक हमारे जीवन के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले क्षेत्र हैं। इन दो क्षेत्रों में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों का विश्व के दूसरे क्षेत्रों की जनता के जीवन पर भारी प्रभाव पड़ता है। इसलिए इन क्षेत्रों का वैज्ञानिक सर्वेक्षण हमेशा से विभिन्न देशों के सर्वेक्षकों और वैज्ञानिकों को आकर्षित करता आया है।

चीन ने 1980 के दशक से ही आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्र का सर्वेक्षण करना शुरू किया। यों चीनी सर्वेक्षकों का ध्यान मुख्य तौर पर अंटार्कटिक पर रहा। पर इधर के वर्षों में चीनी वैज्ञानिकों की निगाह आर्कटिक क्षेत्र की ओर खिंचनी शुरू हुई। वर्ष 1990 तक शीतयुद्ध के कारण चीन के लिए आर्कटिक में प्रवेश पाना मुश्किल रहा। इसलिए इस क्षेत्र में चीन का वैज्ञानिक सर्वेक्षण शीतयुद्ध की समाप्ति होने से पहले शुरू नहीं हो पाया , लेकिन चीनी वैज्ञानिक आर्कटिक के सर्वेक्षण का विशेष महत्व महसूस करते रहे। चीनी राष्ट्रीय समुद्र ब्यूरो के ध्रुवीय सर्वेक्षण कार्यालय के प्रधान श्री छ्यू थैनचाओ के अनुसार, आर्कटिक के सर्वेक्षण का भारी अर्थ है, क्योंकि वह पृथ्वी का दूसरा सर्द छोर है। इस क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों से मानव की सामाजिक गतिविधियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और मानवीय गतिविधियां इस क्षेत्र को किस तरह प्रभावित करेंगी, इन सवालों पर विश्व भर का ध्यान केंद्रित है। चीन उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है, आर्कटिक के मौसम में होने वाले परिवर्तन से चीन पर भारी प्रभाव पड़ता है। इसलिए चीनी वैज्ञानिक आर्कटिक के वातावरण व जलवायु परिवर्तन पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। जलवायु परिवर्तन चीन के आर्कटिक अनुसंधान का सब से ध्यानाकर्षक बिंदु है।

वर्ष 1999 और 2003 में चीन ने दो बार आर्कटिक का सर्वेक्षण किया। चीनी वैज्ञानिकों ने सर्वेक्षण जहाज श्वेलूंग पर सवार होकर आर्कटिक सागर के अनेक इलाकों में समुद्र, बर्फ, वायुमंडल, जीव और भूतत्व का संयुक्त सर्वेक्षण किया और बड़ी मात्रा में मूल्यवान सूचना और सामग्री प्राप्त की। प्राप्त सामग्री में आर्कटिक सागर की 3000 मीटर की गहराई में जमा चीज़ें तथा 3100 मीटर ऊंचे आकाश का हवा का नमूना भी शामिल रहा। इस सामग्री में 5 मीटर लम्बा संवर्द्धक पत्थर तथा बर्फ , ऊपरी बर्फ का नमूना, समुद्री जल का नमूना तथा खारे पानी में पाये जाने वाली वनस्पति के नमूने आदि भी शामिल रहे। चीनी वैज्ञानिकों ने इस बात का भी पता लगाया कि आर्कटिक क्षेत्र का निम्नवायुदाब वाला क्षेत्र विश्व के दूसरे क्षेत्रों की तुलना में अपेक्षाकृत ऊंचा है और वह चीन में मौसम परिवर्तन की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हो सकता है।

विशेष जहाज़ के अभाव में चीन साल भर आर्कटिक क्षेत्र का सर्वेक्षण करने में असमर्थ है। इसलिए चीन ने वर्ष 2004 में प्रथम बार आर्कटिक वलय के भीतर एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण केंद्र स्थापित किया। इस केंद्र के स्थापक श्री ली च्वानश्यैन के अनुसार चीन का यह प्रथम आर्कटिक सर्वेक्षण केंद्र ह्वांगह वर्ष 20004 में नोर्वे में स्थापित किया गया और अब तक इसने आर्कटिक क्षेत्र में भौतिक भूगोल, वायुमंडल , मानचित्रण, भूतत्वविज्ञान और समुद्रशास्त्र आदि के संदर्भ में बड़ी मात्रा में सूचना सामग्री प्राप्त की है और इस तरह चीन के भावी आर्कटिक सर्वेक्षण की नींव डाली है।

आर्कटिक सर्वेक्षण केंद्र की स्थापना चीन के आर्कटिक सर्वेक्षण इतिहास में प्राप्त भारी प्रगति है। चीनी वैज्ञानिकों को इस तरह आर्कटिक क्षेत्र में अपना दीर्घकालिक केंद्र प्राप्त हुआ है। इस केंद्र के निर्माण के बाद दसेक चीनी वैज्ञानिकों ने यहां वैज्ञानिक सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण केंद्र के पास बर्फ पर चलने वाली अपनी उपयोगी गाड़ियां और हेलिकाप्टर हैं और यह उपग्रहों से सूचना ग्रहण करने वाले संयंत्रों से भी लैस है।

चीन का ह्वांगह सर्वेक्षण केंद्र एक युवा सर्वेक्षण केंद्र है, लेकिन यह अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति प्राप्त कर चुका है। इस के प्रमुख वैज्ञानिक डाक्टर यांग ह्वेइ गन का कहना है कि चीनी वैज्ञानिक आर्कटिक क्षेत्र पर मानवीय गतिविधियों के कुप्रभाव का पता लगा चुके हैं। उनके अनुसार ह्वांगह केंद्र में किये गये पर्यावरण परिवर्तन संबंधी परीक्षणों के दिलचस्प परिणाम सामने आये हैं। ह्वांगह जहां स्थित है, वहां पहले एक कोयला खान थी, जहां वर्ष 1960 के दशक तक खनिज उत्पादन होता रहा था। चीनी वैज्ञानिकों ने अपने सर्वेक्षण के जरिए पता लगाया कि पिछले सौ वर्षों से इस क्षेत्र में हुए खनिज उत्पादन से समुद्री पक्षियों की संख्या में बहुत कमी आई।

चीनी वैज्ञानिकों ने ह्वांगह सर्वेक्षण केंद्र में लेसर सर्वेक्षक यंत्रों के जरिये आर्कटिक के आकाश का सर्वेक्षण किया और अरूणोदय का भी एक हजार घंटों तक सर्वेक्षण किया। इससे भी उसे बहुत सी मूल्यवान ,सूचना सामग्री प्राप्त हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में चीनी वैज्ञानिक मुख्य तौर पर आर्कटिक क्षेत्र के जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव का अनुसंधान करेंगे और आर्कटिक क्षेत्र में समुद्र व मौसम के सर्वेक्षण की व्यवस्था करेंगे। इसके साथ ही वे आर्कटिक क्षेत्र के मौसम परिवर्तन से चीन के मौसम पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी ध्यान देंगे।

आर्कटिक क्षेत्र के सर्वेक्षण पर जोर देने के लिए चीन भविष्य में आर्कटिक वैज्ञानिक सर्वेक्षण केंद्र में स्थापित उपकरणों में सुधार लायेगा। इनमें आर्कटिक क्षेत्र में प्रयोग में आने वाली विशेष गाड़ी, मोटर ब्लोमोबाइल तथा बर्फीले समुद्र पर चलने वाली नौकाएं आदि शामिल हैं। इस के साथ ह्वांगह केंद्र में सूचना, जीवन और कामकाज आदि से संबंधित उपकरण भी सुधारे जायेंगे।

चीनी राष्ट्रीय समुद्र ब्यूरो के ध्रुवीय सर्वेक्षण कार्यालय के प्रधान श्री छ्यू थैनचाओ के अनुसार,ह्वांगह में अनुसंधान की स्थिति में सुधार ला कर चीन आर्कटिक क्षेत्र में साल भर वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर सकेगा। उनका कहना है कि वैज्ञानिक सर्वेक्षक जहाज श्वेलूंग की मदद से ह्वांगह केंद्र की वैज्ञानिक सर्वेक्षण क्षमता बढ़ी है। भविष्य में हम आर्कटिक क्षेत्र में जहाज़ के जरिये वैज्ञानिक सर्वेक्षण करेंगे। चीन व्यापक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कर भी इस क्षेत्र में अपना वैज्ञानिक स्तर उन्नत कर सकेगा । उन्हों ने बताया कि पहले चीन का वैज्ञानिक सर्वेक्षक जहाज श्वेलूंग कुछ समय के लिए आर्कटिक क्षेत्र जाकर वहां सर्वेक्षण किया करता था,भविष्य में वह हर साल वहां सर्वेक्षण करने जा सकेगा।