आज के इस कार्यक्रम में हम बिहार के इजराइल कस्तूरी, हलीमा कातून, मिकाइल अंसारी, मऊनाथ भंजन, उत्तर प्रदेश के फैज़ अहमद फैज़, जीशान अहमद अंसारी, नूरुल हसन अंसारी, मुहम्मद शाहीद अंसारी, मऊ, उत्तर प्रदेश के निजाम अंसारी और केसिंगा, उड़ीसा के सुरेश अग्रवाल के पत्र शामिल कर रहे हैं।
पहले बिहार के इजराइल कस्तूरी, हलीमा कातून. मिकाइल अंसारी का पत्र देखें। उन्होंने पूछा है कि चीन के किस स्थान को चीन का स्वर्ग कहा जा सकता है और क्यों।
श्रोता दोस्तो, चीन में सूचओ और हांगचओ शहरों को स्वर्ग कहा जा सकता है।
चीन में प्राचीन काल से ही यह कहावत प्रचलित है कि भगवान स्वर्ग में रहते हैं, तो पृथ्वी पर सूचओ और हांगचओ मानव जाति का स्वर्ग हैं।
थांग राजवंश काल में लोग कविताएं लिखना व पढ़ना पसंद करते थे। उस वक्त पूर्वी चीन शानदार फसलों के कारण बेहद संपन्न था। इसके साथ ही वहां का दृश्य भी बेहद रमणीक था। इसलिए बहुत से कवियों ने अपने कविताओं में पूर्वी चीन का गुणगान किया। सूचओ शहर और हांगचओ शहर दोनों पूर्वी चीन में स्थित हैं।
पाई च्वी-ई थांग राजवंश के एक अधिकारी होने के साथ कवि भी थे। वे पहले हांगचओ और फिर सूचओ के मेयर रहे। पाई ने मेयर का काम करते समय लिखी अनेक कविताओं में हांगचओ व सूचओ का गुणगान किया। बाद में वे अपनी कार्यावधि समाप्त होने के बाद उत्तरी चीन वापस लौटे, पर अक्सर इन दोनों रमणीक स्थानों को याद करते रहे। उन की कविताओं में सूचओ और हांगचओ को स्वर्ग बताया गया है।
सूचओ शहर पूर्वी चीन के च्यांगसू प्रांत के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यहां यांत्सी नदी का डेल्टा है और जल के जाल से यातायात सुविधाजनक है। यहां का दृश्य बहुत सुन्दर है। साल में दो फसलें काटी जाती हैं और मत्स्य-उद्योग भी विकसित है।
छीन व हान राजवंश काल में यह उच्वीन शहर था। वर्ष 589 में श्वेई राजवंश की सरकार ने इसे सूचओ नाम दिया। सूचओ का इतिहास कोई 7000 साल पुराना है।
शहर के दक्षिण-पश्चिम में कूसू नामक पहाड़ स्थित है। इससे सूचओ को कूसू भी कहा जाता है।
यह अपनी उल्लेखनीय सभ्यता गीत,संगीत, नृत्य नाट्य, उत्सव, चित्र और वास्तुकला के लिए मशहूर है। यहां की उद्यान कला विश्वविख्यात है। वर्तमान में सूचओ में 100 से अधिक उद्यान हैं पर उन की शैलियां अलग-अलग हैं, क्योंकि इन का निर्माण भिन्न-भिन्न कालों में हुआ। सूचओ की वस्तुकला भी मशहूर है। शहरी इलाके में ऐसे बहुत से रिहायशी मकान हैं, जिन का इतिहास बहुत पुराना है।ये मकान बड़े सुन्दर हैं और इनके आंगन में बनें उद्यान लोगों को आकर्षित करते हैं।
सूचओ में चार विश्वविख्यात उद्यान हैं। इन में से एक का नाम है च्वोचंग उद्यान। इस का इतिहास 1000 हजार साल पुराना है।
सूचओ के उद्यान इतने सुन्दर हैं कि अमेरिका व कनाडा में भी सूचओ के उद्यानों की शैली में अनेक उद्यानों का निर्माण किया जा चुका है।
सूचओ शहर के पास एक पहाड़ी चोटी है, जिसे फेईलाई चोटी नाम दिया गया है। कहा जाता है कि एक भारतीय भिक्षु ने सूचओ का दौरा किया था। जब उसने फेईलाई चोटी देखी तो उसे बेहद आश्चर्य हुआ। उसने इसे भारत का गृध्रकूट माना, जो उसके अनुसार भारत से उड़ कर चीन आया होगा। इस चोटी पर एक बंदर की पहचान भी उस ने की।
हांगचओ शहर पूर्वी चीन के च्येच्यांग प्रांत की राजधानी है। यह शहर छ्यानथांग नदीक्षेत्र के जलोढ़ मैदान पर स्थित है। इस का इतिहास 2200 साल पुराना है। पहले इसे छ्यानथांग, लीनआन, उय्वे कहा जाता था। यहां भी अनेक राजवंशों की राजधानी रही। 13 वीं शताब्दी में इटली के विश्वविख्यात यात्री मार्कोपोलो ने हांगचओ का दौरा किया और इसकी सुन्दरता को देख कर इसे विश्व के पूर्व का देवनगर बताया। एक महानहर के जरिए हांगचओ पेइचिंग से जुड़ा। जल-जाल के कारण इसका यातायात भी बहुत सुविधाजनक है।
यहां का दृश्य भी रमणीक है और यहां भी शानदार फसलें काटी जाती हैं और मत्स्य उत्पादन विकसित है।
हांगचओ शहर पश्चिमी झील के पास है। इसके जल को दो बांधों से विभाजित किया गया है। झील में तीन रमणीक टापू भी हैं।
हांगचओ अपनी पश्चिमी झील के लिए मशहूर है। चीन में पश्चिमी झील जैसी शायद दस से अधिक झीलें है, पर हांगचओ की पश्चिमी झील इतनी मशहूर इसलिए है क्योंकि तीन ओर पहाड़ों से घिरी है। ये पहाड़ हरे-भरे हैं और झील का जल बहुत स्वच्छ है। पहाड़ व झील का क्षेत्रफल 60 वर्गकिलोमीटर है और जलक्षेत्र का रकबा करीब 6 किलोमीटर।
पश्चिमी झील के बारे में एक बहुत सुंदर कहानी भी है।
कहा जाता है कि पश्चिमी झील के निकट के पहाड़ में एक श्वेत नागिन रहती थी। बौद्धतम का ज्ञान प्राप्त कर उसने सुन्दरी का रूप धारण किया और उसे पाईन्यांगत्सी नाम दिया गया। पश्चिमी झील के एक पुल के पास इस श्वेत नागिन ने एक बार श्वी श्यान नामक युवक को देखा और उससे प्रेम करने लगी। उसने इस युवक के साथ शादी भी की। इस दंपति ने पश्चिमी झील के पास घर बसाया और दवाओं की दुकान भी चलानी शुरू की।
पश्चिमी झील के निकट चिनशान नामक बौद्धमठ था। मठ के धर्माचार्य फाहाई को भी बौद्धमत का ज्ञान प्राप्त था। फाहाई ने श्वेत नागिन का पता लगाया। उन्हें आशंका हुई कि यह नागिन मानव जाति के लिए हानिकर हो सकती है। सो फाहाई ने इस श्वेत नागिन को पकड़ कर लेईफंग नामक पगोडे के नीचे रख दिया। पर श्वेत नागिन व श्वी श्यान के बीच का गहरा प्यार कभी नहीं मिट सका। पत्नी के खो जाने पर श्वी श्यान बेहद दुखी हुआ। दंपति के प्यार को भगवान ने महसूस किया। और आखिरकार भगवान ने अपने वज्र से पगोडे को तबाह कर श्वेत नागिन को बचाया। दंपति फिर एक-दूसरे से जा मिले।
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