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(GMT+08:00) 2005-09-19 11:20:47    
नेत्रहीन संगीतकार गाओ ची फङ

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चीन के एक संगीतकार गीत लिखने, उनकी धुन बनाने, गाने और अनेक वाद्य बजाने में निपुण हैं। उन का नाम है गाओ ची फङ , लेकिन शायद आप न जानते हों कि वे नेत्रहीन हैं?वे लम्बे समय से संगीत के प्रेम में डूबे रहे हैं और जीवन की चुनौतियों के सामने उन्होंने कभी भी सिर नहीं झुकाया है। कला के रास्ते पर वे बड़ी मुश्किल से आगे बढ़े हैं। इस लेख में हम आप को सुनाएंगे, इस संगीतकार की कहानी।

गाओ ची फङ का जन्म वर्ष 1974 में उत्तरी चीन के शान शी प्रांत के एक गांव में हुआ। छै साल की उम्र में नन्हे गाओ ची फङ ने दृष्टि खो दी। गांव में नेत्रहीनों का स्कूल न होने के कारण गाओ ची फङ पढ़ नहीं सकते थे। इसलिए नौ वर्ष की उम्र में अपने पिता से चीनी परम्परागत वाद्य अर्हू सीखने लगे। शाम को पिता खेती करने के बाद घर वापस लौटते, तो गाओ ची फङ पिता के पास बैठ जाते। पिता गीत की एक पंक्ति गाते, तो बेटा अर्हू पर उसकी धुन बजाता। इस तरह गाओ ची फङ ने लोक संगीत सीखा और इससे प्रेरणा पा कर और मेहनत से अर्हू बजाना सीखने लगे। शीघ्र ही गाओ ची फङ अपने पिता से आगे निकल गये।

13 वर्ष की उम्र पर पहुंचने पर गाओ ची फङ को स्थानीय लोक ढोल संगीत दल पहुंचाया गया। यहां एक ही साल में गाओ ची फङ को सुरना, शङ, और बांसुरी आदि चीनी परम्परागत वाद्य बजाने आ गये। 16 वर्ष की उम्र में गाओ ची फङ ने खुद एक ढोल संगीत दल की स्थापना की और घर-घर जाकर कार्यक्रम देने लगे। इस ढोल संगीत दल का स्थानीय लोगों ने बड़ा स्वागत किया और गाओ ची फङ ने इस से खासे पैसे कमाये। इन पैसों के प्रयोग से उन के घर की नयी इमारत का निर्माण हुआ, दो बड़े भाइयों की शादी हुई और छोटी बहन ने मिडिल स्कूल पास किया।

गाओ ची फङ का ढोल संगीत दल लोगों में मशहूर हुआ तभी उन्हें खबर मिली कि शान शी प्रांत की राजधानी थाई य्वान में नेत्रहीनों के लिए एक विशेष स्कूल है। गाओ ची फह ने बिना झिझके ढोल संगीत दल छोड़ कर इस स्कूल का रुख किया। इस तरह उन का स्कूली जीवन शुरू हुआ जो बहुत कठिन था। इस की चर्चा में गाओ ची फङ ने कहा

"मैं घर से क्यों बाहर आया? इसलिए क्योंकि छोटी उम्र से ही मेरा एक स्वप्न था। अपने जन्मस्थान में जीने भर के लिए ढोल संगीत दल के जरिए कुछ पैसे कमाना मेरी इच्छा नहीं थी। मुझे लगता था कि मैं जरूर और बड़ा कार्य कर सकता हूँ। मेरी एक बड़ा संगीतकार बनने की अभिलाषा थी। "

वर्ष 1992 में अठारह वर्षीय गाओ ची फङ अपने अर्हू वाद्य के साथ माता पिता बताये बगैर शान शी प्रांत की राजधानी थाई य्वान आए और वहां के नेत्रहीन बाल स्कूल के बड़ी उम्र वाले छात्र बन गये। वहां हर रविवार को गाओ ची फङ अपने अर्हू के साथ थाई य्वान की सब से समृद्ध सड़क व रेल स्टेशन पर गाते थे। अर्हू बजाने की उनकी तकनीक और मधुर आवाज़ ने अनेक दर्शकों को आकृष्ट किया और वे गाने की कमाई से स्कूल का खर्चा जुटाते रहे। थाई य्वान के इस स्कूल में गाओ ची फङ की प्रधानाचार्या मां कहलाने वाली सुन चिन यान से मुलाकात हुई। सुश्री सुन ने गाओ ची फङ की प्रतिभा देख कर उन्हें संगीत रचने को प्रेरित किया। वर्ष 1994 में गाओ ची फङ ने अपनी आपबीती पर गीत रचे। "आकाश के सारे तारे हैं तुम्हारे पास" और "दिल की बात"आदि उनके गीतों ने चीन की अनेक संगीत प्रतियोगिताओं में पुरस्कार हासिल किये।

विश्वविद्यालय में आगे पढ़ना और संगीत के माध्यम से अपनी भावना व्यक्त करना गाओ ची फङ की अभिलाषा थी ही। स्कूल से निकल कर विश्वविद्यालय जाने के लिए गाओ ची फङ सड़क पर गीत गा-गा कर कुछ न कुछ सीखते रहे और मुश्किलों के बाद भी संगीत को नहीं छोड़ा। अंत में वर्ष 2000 में 26 वर्षीय गाओ ची फङ राजधानी पेइचिंग स्थित चीनी ऑपेरा कॉलेज के संगीत विभाग में दाखिल हुए और इस विश्वविद्यालय के एक विशेष विद्यार्थी बने।

विश्वविद्यालय के अपने समय को गाओ ची फङ ने बहुत मूल्यवान समझा। वहां वे हर रोज़ सोने के अलावा सारा समय पढ़ाई में लगाते और बहुत मेहनत से पढ़ते थे।अन्य सहपाठियों पर कोई प्रभाव न पड़े इस कारण वे ब्रेल मशीन के प्रयोग के बिना अध्यापकों की बात याद रखने की कोशिश करते और कक्षा के बाद ही ब्रेल मशीन पर लिखते थे।

गाओ ची फङ पियानो के स्वर मिलाने और उसमें सुधार लाने की तकनीक सीखना चाहते थे, लेकिन इस में बड़ी मुश्किल थी। वे ब्रेल में पियानो से संबंधित लिखी किताब से पियानो की जानकारी पाने लगे। कभी-कभी तो वे पूरी रात पियानो के साथ बिताते और नींद आने पर पियानो के पास ही थोड़े समय के लिए सो जाते थे। इस तरह गाओ ची फङ ने एक ही साल में पियानो से संबंधित तकनीक हासिल कर ली। गाओ ची फङ का कहना है कि उनके लिए दिन और रात का कोई फर्क नहीं है। विश्वविद्यालय में पढ़ाई के चार साल बहुत कम थे, इसलिए उन्होंने हर मिनट को मूल्यवान समझा। गाओ ची फङ ने कहा

"संगीत संबंधी पेशेवर तकनीक व सांस्कृतिक जानकारी पाने के अलावा, मैं कोई बड़ा कार्य करना चाहता था। मुझे मालूम था कि ऐसा करना आसान नहीं होगा, लेकिन मैंने इस की पूरी तैयारी की। पियानो के स्वर मिलाने और उसमें सुधार लाने की तकनीक से मैं अपने सहपाठियों की सेवा कर सका। इस से वे और अच्छी तरह पियानो बजा सके। इस के अलावा, मेरी आशा भविष्य में एक संगीतकार बनने की थी। यह स्वप्न साकार करना भी मेरे लिए मुश्किल था। खैर पियानो के स्वर मिलाने की तकनीक सीखने के बाद मैंने जीवन यापन का एक और उपाय हासिल किया।"