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(GMT+08:00) 2005-09-09 09:59:36    
कजाख अध्यापिका कुलिमहम

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आज हम उत्तर पश्चिम चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में बसी कजाख जाति की महिला अध्यापिका कुलिमहम के बारे में कुछ बताने जा रहे हैं ।

यह कजाख जाति के स्कूली छात्रों की कक्षा चल रही है , कक्षा में पाठ पढ़ने में लगे छात्र सभी दूर दराज पहाड़ी क्षेत्र से आए हैं , चरवाही जीवन के कारण वे अकसर बड़े लोगों के साथ घास मैदानों में घूमते फिरते हैं । लेकिन उन के दिल में ज्ञान पढ़ने तथा बाह्य दुनिया जानने की तीव्र इच्छा दबी हुई है । उन के इस सपना को मूर्त रूप देने के लिए कजाख अध्यापिका कुलिमहम ने उन्हें मां के प्यार के साथ अपनी जिन्दगी समर्पित की ।

सिन्चांग की राजधानी ऊरूमुची से दूर पहाड़ी क्षेत्रों में कजाख चरवाहों के आबादी स्थान है , कुलिमहम का प्राइमरी स्कूल कजाख आबादी क्षेत्र के सब से दूर दराज पहाड़ी वादी में स्थित है । ऊबड़ खाबड़ पहाड़ी रास्ते पर एक घंटा चलने के बाद उन के स्कूल तक जा पहुंचे , स्कूल के मकान सरल और सादे नजर आते हैं , पहाड़ी तलहती में एक छोटी नदी बल खाती हुई बहती है , दूर निकट मरूभूमि है और कजाख चरवाहों के ग्रीष्मकालीन तंबू स्कूल के आसपास बिखरे खड़े रहे है ।

इस साल 42 वर्षीय कुलिमहम वर्ष 1982 में हाई स्कूल से सनातक होने के बाद ही वहां पढाने आई । उस समय स्कूल की स्थिति आज से भी ज्यादा कठिन थी ।

जब मैं पहली बार यहां आयी , तो उस समय स्कूल की केवल दो कक्षाएं थी और पांच क्लासों के बच्चे पढ़ते थे , शिक्षकों के लिए होस्टल नहीं था . मैं ने अपना सामान क्लासरूम के एक कोने में रख कर रहने का स्थान बनाया , क्लासरूम मेरी कक्षा भी है और घर भी ।

घनी पहाड़ी क्षेत्र में जीवन काफी कठोर है , गर्मियों में लोग नदी का पानी पीते हैं और सर्दियों में नदी में ठंड से जमी बर्फ तोड़ तोड़ कर घर लाते हैं , वसंत और गर्मियों के मौसम में बैल गाड़ी पर पहाड़ से बाहर तो जा सकते हैं , लेकिन जाड़ों के दिन भारी बर्फबारी से पहाड़ी रास्ता बन्द होता है , पहाड़ी वादी में रहने वाले लोगों को बाहर जाने के लिए पैदल चलना पड़ता है । लेकिन इतनी कठिन स्थिति में भी कुलिमहम को पढ़ाते हुए बिना बीच रूके 23 साल हो गए , इस का क्या कारण है.

मैं नव यौवन की उम्र में आयी थी , शुरू शुरू में कुछ पछ्ताछ भी हुई थी , लेकिन यहां के चरवाहों के बच्चों को शिक्षक की जरूरत है , मैं ने उन्हें पढ़ाने रह जाने का विकल्प किया । बच्चों के साथ रहते हुए मुझे उन से गहरा प्यार हुआ और इस तरही जिन्दगी भर आध्यापन का जीवन आरंभ हो गया।

घनी पहाड़ी वादी में स्कूल की कोई खास शिक्षा व मनोरंजन की सुविधाएं नहीं है , न कोई आधुनिक शिक्षा साधन है , न ही खेलकूद का श्रेष्ठ साज सामान । छात्रों के अवकाशकालीवन जीवन को रंगबिरंगा बनाने के लिए कुलिमहम अकसर बच्चों के साथ खेल क्रीड़ा करती है, उन्हें कहानी सुनाती है और पहाड़ पर आरोपन व फुटबाल खेलने का आयोजन करती हैं और उन्हें एकता व सहयोग के साथ काम करने व दूसरों की मदद करने की शिक्षा देती है ।

कुलिमहम अपने सभी स्कूली बच्चों से अपने बच्चे की भांति प्यार करती है और उन का निस्वार्थ ख्याल रखती है । जब कोई बच्चा पढ़ने की फीस जमा करने में असमर्थ हुआ , तो वे अपने कम वेतन में से पैसा निकाल कर देती है । गुलमिल्ला उन से मदद मिलने वाले बच्चों में से एक है , उस का कहना हैः

वर्ष 2004 में घर में पैसे की कमी होने की वजह से मैं स्कूल नहीं जा पायी, मेरी हालत जानने के बाद आध्यापिका कुलिमहम खुद मेरे घर आ कर मुझे स्कूल ले गई और उन्हों ने मेरे लिए फीस जमा की और पढ़ने के साधन भी खरीदे , मैं कुलिमहम की विशेष आभारी हूं ।

गुलमिल्ला की तरह कुलिमहम से आर्थिक सहायता मिलने वाले बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है , पिछले साल के शर्दकालीन सत्र में ही कुलिमहम ने तीन छात्रों के लिए छै सौ यवान की रकम फीस के रूप में जमा की थी , यह राशि उन के मासिक वेतन का आधा भाग थी । आम समय में भी वे अकसर गरीब बच्चों को कापि व पेंसिल जैसा पढ़ने वाला साधन खरीद देती है। उन के निस्वार्थ प्यार से उन के छात्र बहुत प्रभावित हुए है . छात्र जाजिला ने कहाः

हम आध्यापिका कुलिमहम को बहुत बहुत प्यार और पसंद करते हैं , वे पढ़ाई व जीवन में हमें बहुत ज्यादा मदद देती है ,वे अकसर अवकाश समय निकाल कर पढ़ाई में पिछड़े हुए छात्रों को अलग पढ़ाती है । स्कूल में दोपहर के समय जब हम घर वापस नहीं लौट सके , तो वे हमें अपने घर में खिलाती है और हमारे कपड़े फट पड़े , तो वे हमारे लिए कपड़ों की सिलाई करती है । आध्यापिका कुलिमहम हमारी निस्वार्थ भावना से मदद करती है , हम उन की मेहरबानी कभी नहीं भूलेंगे और बड़े होने के बाद हम भी उन की भांति नेक व श्रेष्ठ व्यक्ति बनेंगे ।

कुलिमहम का एक सुखमय परिवार था , उन का पति शाहतबेक उन का हाई स्कूल का सहपाठी था , दोनों में गहरा प्रेम और लगाव था , दोनों के एक बेटा और एक बेटी है , जो बहुत प्यारे और अच्चे हैं । कुलिमहम के कैरियर का समर्थन करने के लिए पति शाहटबेक स्वच्छे से सुविधाजनक शहरी जीवन छोड़ कर पहाड़ी क्षेत्र में आ कर शिक्षक का काम भी करने लगा । पहाड़ी इलाके की जीवन स्थिति खराब हुई होगी , बाद में शाहटबेक को हृद्य रोग लगा और 41 साल की अल्प उम्र में कुलिमहम और दोनों बच्चों को पीछे छोड़ कर इस दुनिया से चल बसा । कुलिमहम को पति की याद बराबर सताती रही है ।

वे मेरे आध्यापन काम में मेरा सब से बड़ा समर्थन करते थे , वे घर के तमात कामकाज अपने हाथ में ले लेते थे , ताकि मुझ पर घर का बोझ हल्का हो और मैं लगन से पढ़ाने के काम में जुट सकूं । वे खुद बच्चों की देखभाल करते थे और गृहस्थ काम करते थे । उन की मदद से मुझे उच्च शिक्षा की स्नातक उपाधि तथा कम्प्युटर संचालन प्रमाण पत्र भी मिला ।

कुलिमहम की कहानियों से बहुत से लोग बहुत प्रभावित हो गए , उन की ही तरह अब बहुत से ज्यादा शिक्षक पहाड़ी क्षेत्रों में पढ़ाने जाने को तैयार हो गए । कुलिमहम के स्कूल के कुलपति श्री सिहाम ने कहाः

कुलिमहम एक आदर्श मिसाल बन गयी है , उन की निस्वार्थ भावना से लोगों को विश्वास व साहस उपलब्ध हुआ है , सभी लोग उन का सम्मान करते है ।

कुलिमहम की दिल्ली उम्मीद है कि वे हमेशा बच्चों को पढ़ा सकेंगी और कजाख जाति के किसानों व चरवाहों के बच्चों को ज्ञान और संस्कति सिखाती रहेंगी । उन का कहना है कि बच्चों के साथ रहना उन की सब से बड़ी खुशी है ।