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(GMT+08:00) 2005-09-06 14:24:08    
पुराने जमाने में भूदासों का जीवन

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फाला जागिर दो भागों में बंटा हुआ है, मुख्य भाग में जागिर के मालिक रहते थे और दूसरा भाग जागिर के भूदासों का निवास स्थल था । फाला जागिर के भूदान के निवास स्थल को लांग शङ आंगन कहा जाता था । जहां जागिर के मालिक भोग विलास का जीवन बिताते थे, वहां लांग शङ आंगन के भूदास बैल घोड़े का जैसा जीवन बिताते थे।

फाला जागिर के लांघ शङ आंगन में विशेष तौर पर मालिकों की सेवा करने वाले भूदास रहते थे । वर्ष 1959 में तिब्बत के लोकतांत्रिक सुधार से पूर्व फाला बान ज्यू लुन बू जागिर के लांग शङ आंगन में कुल 14 परिवारों के 60 से ज्यादा भूदास रहते थे, लांग शङ आंगन के भूदास आम तौर पर कार्बेट बनाने, घोड़ों की देखभाल, शराब बनाने, कपड़ों की बुनाई सिलाई और रक्षक आदि कठोर कामों के जिम्मेदार थे । काम ज्यादा कठोर होने पर भी उन की आमदनी बहुत कम थी । जागिर में सब से ज्यादा सालाना आमदनी वाला भूदास एक साल में सिर्फ़ 192 किलो खाद्यान्न पाता था , अन्य भूदासों की सालाना आमदनी सिर्फ़ 156 किलो का खाद्यान्न होता था, यहां तक कि कुछ भूदासों को हर दिन सिर्फ़ एक चमची का जानबा नामक आटा मिलता था । इतनी कम आमदनी से एक भूदास को अपने सारे परिवार के सदस्यों को खिलाना पड़ता था । इस लिए फाला जागिर के लांग शङ आंगन के भूदासों का जीवन बहुत दुभर था । इस के साथ ही उन के रहने की स्थिति भी अत्यन्त खराब थी । लांग शङ आंगन का कुल क्षेत्रफल 150.66 वर्गमीटर था, 14 परिवारों के 60 से ज्यादा भूदास इस प्रकार के छोटे आंगन में रहते थे , जिस से हरेक व्यक्ति के लिए औसत क्षेत्रफल 2.5 वर्गमीटर से भी कम था । इन 14 परिवारों में सब से बड़े कमरे का क्षेत्रफल 14.58 वर्गमीटर था और सब से छोटा कमरा सिर्फ़ 4.05 वर्गमीटर का था । फाला जागिर के भूदास पीढ़ी दर पीढ़ी लांग शङ आंगन के तंग , नीचे और खस्ते कमरों में रहते थे ।

लांग शङ आंगन के भूदासों की जानकारी देते हुए तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की च्यांग जी कांउटी के पर्यटन ब्यूरो की फाला जागिर संरक्षण शाखा के निदेशक बाई मा त्वो ची ने कहा

"फाला जागिर के भूदास आंगन में कुल 14 परिवार एक साथ रहते थे, तत्काल में फाला उद्यान में कुल 100 से ज्यादा भूदास थे , और 67 भूदास लांग शङ आंगन में रहते थे । भूदास फ्येन तो के परिवार का कमरा सब से बड़ा था, वह भी परिवार के सात सदस्यों के लिए सिर्फ 14.58 वर्गमीटर बड़ा था ।"

कमरे तंग होने के कारण ठंडी सर्दियों के दिनों को छोड़ कर भूदास हर साल के अधिकांश समय कमरे के बाहर आंगन में सोते थे । समाज के निचलेतम स्तर पर जीवित भूदासों का जीवन बहुत शोचनीय था । उन के पास सरल भद्दा जीवन साधन के अलावा कुछ भी नहीं था । अगर कोई भूदास बुढ़े होकर श्रम शक्ति से वंचिर हो गया , तो जागिर मालिक उसे धत कर बाहर निकाल देता था , इस लिए अधिकांश बुढ़े भूदास के अंतिम दिनों का जीवन असाधारण शोचनीय था । भूदासों के पास कोई उत्पादन साधन नहीं था , उन्हें शिक्षा पाने का अधिकार नहीं था । यहां तक कि उन का सारा जीवन जागिर मालिक के नियंत्रण में होता था और उन्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कोई अधिकार नहीं था । पुराने जमाने में फाला जागिर के भूदासों को मुंह से बोल सकने वाला साधन माना जाता था , उन की संतानों को भी भूदास बनना पड़ा और भूदास जंजीर से नजात होने का मौका बिलकुल नहीं था ।

पुराने जमाने में तिब्बत के भूदासों का जीवन बहुत मानव का जैसा जीवन नहीं था , वे फाला जागिर के मालिकों की ही तरह सामंती भू स्वामियों के शोषण व अत्याचार के पात्र ही नहीं, उन का व्यक्तिगत दुराचार भी किया जाता था । लेकिन वर्ष 1959 में तिब्बत के लोकतांत्रिक सुधार के बाद वहां के भूदासों का कायापलट हो गया, वे फिर भूदास नहीं रहें और अपने जीवन का आप मालिक बन गए।