चीन की विभिन्न जातियों का चिकित्सा शास्त्र चीनी राष्ट्र के अमोल चिकित्सा खजाने का एक अभिन्न अंग है , जिस में देश की हान जाति की चिकित्सा पद्धति , वेवूर जातीय चिकित्सा पद्धति तथा मंगोल चिकित्सा पद्धति आदि शामिल हैं । चीनी चिकित्सा शास्त्र अपनी ज्वलंत विशेषता की वजह से विदेशों में भी मशहूर है । चीन की जातीय चिकित्सा का विदेशों में प्रचार करने के लिए सिन्चांग के डाक्टर श्री चांग वान जे ने असाधारण योगदान किया । आज के इस कार्यक्रम में उन की कहानी सुनिए । पर इस से पहले प्रश्न याद कीजिएंगे कि डाक्टर चांग वान जे किस जाति के लोग है ।
डाक्टर चांग वान जे का जन्म सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ऊरूमुची के एक ह्वी जाति के परिवार में हुआ , उन के पिता एक अनुवादक है , जिस के प्रभाव में आकर श्री चांग वान जे अनेक अल्पसंख्यक जातियों की भाषा समझने में सक्षम हुए , इस से आगे उन्हें सिन्चांग की अल्पसंख्यक जातियों के चिकित्सा शास्त्रों के अनुसंधान में बड़ी मदद मिली ।
श्री चांग वान जे में जातीय चिकित्सा शास्त्रों के अध्ययन में बड़ी लगन और मेहनत की भावना है । उन्हों ने अपनी औषधि शाला खोली , उस समय चीनी परम्परागत चिकित्सा शास्त्र के विद्वानों का एक अकादमिक संगठन था , जिस का नाम चीनी परम्परागत चिकित्सा सोसाइटी है तथा सोसाइटी के संचालन के लिए अकसर धन राशि का अभाव होने की समस्या उभरी । इस की चर्चा में श्री चांग वान जे ने कहाः
हमारी सोसाइटी में बहुत से प्रतिभाशाली विद्वान हैं , लेकिन सोसाइटी के पास पैसे की कमी थी , इस समस्या को हल करने के लिए मैं ने चिकित्सा शाला खोलने का सुझाव रखा ।
अथक प्रयासों से वर्ष 1988 में सिन्चांग का चीनी परम्परागत औषधि शाला ऊरूमुची में खोली गई , श्री चांग वान जे के नेतृत्व में इस औषधि शाला ने देश विदेश से बहुत से सुप्रसिद्ध चीनी परम्परागत चिकित्सा के विशेषज्ञों को बुलाया , खास कर एक्युपंक्चर व इंटरनल मेडिशन के कुछ विशेषज्ञ औषधि शाला में शामिल लाए गए, जिस से सिन्चांग की यह चीनी परम्परागत औषधि शाला काफी मशहूर हो गयी । मरोजों को बीमारी की दुख से बचाने के लिए श्री चांग वान जे ने सक्रिय रूप से वैज्ञानिक अनुसंधान का काम शुरू किया , उन्हों ने बहुत सी किस्मों के चीनी जड़ी बूटी के दवा औषधि बनाये , जो जिगर की बीमारी , मधुमेह तथा दमा के उपचार में बहुत प्रभावकारी सिद्ध हुए हैं ।
श्री चांग वान जे अपने देश में उल्लेखनीय उपलब्धि पाने पर संतुष्ट नहीं हो पाए , उन्हों ने चीनी जातीय चिकित्सा शास्त्र को विश्व में ले जाने की भी भरसक कोशिश की। उन्हों ने देश विदेश के तीस चिकित्सा सम्मेलनों में भाग लिया और 50 से अधिक निबंध व आलेख जारी किए । उन्हों ने पांच अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान अकादमिक सभाओं में भी हिस्सा लिया , जिन में उन्हों ने सिन्चांग के अल्पसंख्यक जातियों के चिकित्सा शास्त्रों का परिचय किया , जिस की ओर अन्तरराष्ट्रीय चिकित्सा जगत से खासा ध्यान आकृष्ट हुआ ।
चीनी परम्परागत चिकित्सा शास्त्र के प्रचार प्रसार के लिए श्री चांग वानजे ने जो काम किए हैं , उसे व्यापक विशेषज्ञों से सराहना मिली है । ऊरूमुची शहर के रोग नियंत्रण ब्यूरो के पूर्व प्रधान श्री क्वो इनख्वांग ने कहाः
वे सिन्चांग के मूल निवासी हैं और चीनी परम्परागत व वेवूर जातीय चिकित्सा पद्धतियों के अध्ययन और विकास में जुटे हैं । इस की कोशिश में उन्हों ने सिन्चांग के जातीय चिकित्सा शास्त्रों को अरब चिकित्सा शास्त्र के साथ जोड़ दिया और विशेष अनुसंधान किया है , जो अब तक दूसरों ने नहीं किया है ।
श्री चांग वानजे ने अपने कर्मचारियों के साथ मिल कर चीनी परम्परागत चिकित्सा को वेवूर ,कजाख और मंगोल चिकित्साओं के साथ जोड़ कर एक नई किस्म की चिकित्सा पद्धति का विकास किया , जिस के कारण उन की सिन्चांग परम्परागत औषधि शाला का संयुक्त अरब अमीरात तथा पाकिस्तान में खूब स्वागत किया गया । अब सिन्चांग औषधि शाला ने संयुक्त अरब अमीरात तथा पाकिस्तान में कुल नौ शाखाएं खोली हैं , जिन की कुल पूंजी दस करोड़ य्वान दर्ज हुई ।
श्री चांग वान जे एक स्नेहपूर्ण और दयालु व्यक्ति हैं , इस साल 63 वर्ष के डाक्टर चांग वानजे वयोवृद्धों का खास रूप से ख्याल करते हैं , फुरसत मिलते ही वे वृद्ध सदन में जाते हैं और वयोवृद्धों का देखभाल करने में खुश रहते हैं ।
श्री चांग वान जे के आह्वान में सिन्चांग के बहुत से चिकित्सक विभिन्न रूपों में स्वयंसेवा चिकित्सा की गतिविधियां करते हैं , अब तक उन की स्वयंसेवा मिलने वाले रोगियों की संख्या 18 हजार तक पहुंची है । जहां सहायता की आवश्यकता है , वहां सिन्चांग की परम्परागत औषधि शाला मदद देने के लिए तैयार है । श्री चांग वान जे के मित्र श्री वांग चिचुंग ने कहाः
वे समुद्र के स्पंज के तूल्य हैं , वे जीवन के स्पंज हैं , जो सोख सकता हैं और निकाल भी सकते । वे सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करते हैं । अस्पताल में वे सभी किस्मों के रोगियों का इलाज करते हैं और उन के सवालों को बड़े धैर्य के साथ समझाते हैं और उन में जीवन बचाने वाली क्रांतिकारी मानवतावादी भावना दिखती है ।
श्री चांग वान जे प्रतिभाशाली चिकित्सा शास्त्री भी है और कुशल कलाकार भी । वायलिन वादन पर उन्हों ने महारत हासिल की है ।
वायलिन पर बजायी गई मधुर धुन श्री चांग वानजे द्वारा वूवेर जाति के लोक गीत के आधार पर रूपांतरित किया गया एजक का नया गीत है । एक मंजे हुए वेवूर कलाकार ने उन का वायलिन वादन सुनने के बाद सराहना करते हुए कहा कि यह कलाकार का हाथ है , उन की ऊंगलियों से जो लय ताल फट कर निकलता है, वह श्रोताओं के हृद्य को छू लेता है । उन का यह डाक्टर का हाथ भी है , नाड़ी पर थामने से जीवन को वसंत का बहार प्रदान करता है ।
श्री चांग वान जे आठ साल की उम्र में ही वायलिन का वादन सीखने लगे । इस की चर्चा में वे हमेशा भावविभोर हो जाते हैः
चालीस के दशक में मेरे पिता ने एक रूसी मित्र से एक वायलिन खरीदा , मैं ने सीखना आरंभ किया , उस रूसी मित्र ने मुझे सिखाया , प्राइमरी , मिडिल व हाई स्कूलों तक कभी नहीं रूका । वायलिन मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है ।
यह शरद का सपना नामक धुन है , जिसे चांग वान जे अत्यन्त पसंद करते हैं , क्योंकि उन का एक सपना भी है ।
मैं रिटायर होने वाला हूं , मेरा अवकाश समय और ज्यादा होगा , मैं चाहता हूं कि कुछ वृद्ध संगीत प्रेमियों व कलाकारों के साथ संगीत का गहन अध्ययन करूंगा और चांग वान जे का व्यक्तिगत संगीत समारोह आयोजित करूंगा ।
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