एक मैना था , अपने मालिक से प्रशिक्षण पाने के बाद मनुष्य के बोलने की नकल करने लगा । उस ने महज दो तीन वाक्य ही सीखे थे , किन्तु वह रोज मनुष्य से सीखे हुए उन दो तीन वाक्यों की नकल करता नहीं अधाता था । वह इतना घमंडी हो गया , मानो वह सचमुच तीस मार खां हो ।
एक दिन , झींगुर पेड़ पर गाना गा रही थी , मैना उस के गाने से बहुत अखुश था और उस ने झुंकुर से कहा ,
"हेलो हेलो , थोड़ा गाना बन्द करो , तुम केवल एक ही स्वर की अप्रिय आवाज देती हो , फिर जब गाना गाती हो , तो बन्द करने का नाम भी नहीं लेना चाहती हो ।
देखो , मैं मनुष्य का बोलना जानता हूं । पर मैं तुम्हरी तरह कभी अपनी हुनर पर घमंडी नहीं हूं और अपनी हुनर को दूसरों के सामने नहीं प्रदर्शित करता हूं ।"
झींगुर को मैना की बातों पर गुस्सा नहीं आया , वह मुस्कराते हुए बोला,
"मेना भेया , तुम मनुष्य के बोलने की नकल जानते हो , यह सचमुच एक हुनर है , लेकिन तुम रोज हजारों बार सीखे हुए जिन वाक्यों की नकल करते रहते हो , असल में इस का कुछ भी मतलब नहीं है , वह निरर्थक है ।
मैं मनुष्य के बोलने की नकल नहीं जानती हूं , मेरी आवाज इतनी सुरीली भी नहीं है , लेकिन वह मेरी अपनी आवाज है , मैं अपनी आवाज से अपना विचार प्रकट कर सकती हूं । क्या तुम नकली बोलों से अपना मतलब बता सकते हो।"
इस अकाट्य तर्क पर मैना का मुख लाल पड़ गया , उस से कुछ बोलना नहीं बनता , उस से अपने सिर को अपने पंखों के नीचे डाल कर अपना मुख नहीं दिखाना चाहा । तभी से मेना ने अपने मालिक से बोलने की नकल करना छोड़ दिया ।
इस नीति कथा की शिक्षा है --- भाषा लोगों में संपर्क होने का साधन है ।
मैना केवल मनुष्य के बोलने की नकल करता है , लेकिन अपना विचार नहीं बता सकता है , व्यर्थ ही बोलने की नकल करने का हुनर सीखा गया है ।
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