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(GMT+08:00) 2005-08-25 09:14:29    
छीतांगयांगचिन और उनकी लाडली तिब्बती मुर्गियां

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हर सुबह पौं फटते ही छीतांगयांगचिन बिस्तर से उठती है और अपने घर के लाडलों यानी 200 से अधिक तिब्बती मुर्गियों को चारा देना शुरू कर देती है। नन्ही व बड़ी तिब्बती मुर्गियों को देखते और उनके झपट झपट कर चारा छीनने व चारा खाते समय निकली कू कू की आवाजें सुनते उनके के दिन में खुशी का ठिकाना नहीं रहता , अपने पाले तिब्बती मुर्गियों को दिनोंदिन बढ़ते देखते और इस साल इन मुर्गियों से फिर अच्छी कमाई मिल सकने की तमन्ना लगाए , यह सब सोचते हुए उनका मन खुशी से फूला न समाता।

छीतांगयांगचिन इस साल 41 वर्ष की हैं और वह तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा से 270 किलीमीटर दूर कुंगपूच्यांगता काउंटी के चुंगसा गांव की रहने वाली हैं। उनके गांव की उंचाई समुद्र सतह से 3500 मीटर से अधिक एक पठारीय नदी के किनारे स्थित है। उनके दो बेटे स्कूल में पढ़ रहे हैं , बड़ा बेटा फू च्येन प्रांत के श्यामन कालेज में पढ़ रहा है। मुर्गी पालने से पहले उनका पति वाकई दो बच्चों की पढ़ाई की फीस भर नहीं सकता था। हर साल के मई व जून में तिब्बत की कीमती जड़ी बूटी औषधि तुंगछुंग श्याछाओ का सुनहरा मौसम होता है, वह अपने पति के साथ बच्चों को लिए पहाड़ों में इन जड़ी बूटियों की तलाश में निकल जाते है और इन औषधियों से बेचे पैसों से बच्चों की स्कूल की फीस चुकाने के साथ घर गृहस्थि का खर्चो को पूरा करते हैं।

वर्ष 2002 में स्थानीय सरकार के प्रोत्साहन व मदद से सुश्री छी तांगचयांगचिन ने मुर्गी पालन का काम करना शुरू कर किया। उन्होने गांव सरकार दवारा प्रदान 500 य्वेन से दस मुर्गियां खरीदी, खुद अपने हाथों से उनके लिए चारे तैयार किए और बड़ी धीरज से मुर्गी पालन में जुट गई। नन्ही नन्ही मुर्गियां उनके धीरज व सावधान पालन से दिनोंदिन बड़ी होने लगी और देखते देखते अंडडो की संख्या भी बढ़ने लगी, इन दो सालों में उन्होने केवल मुर्गी पालन व मुर्गी के अंडडो से 5000 य्वेन कमा लिया है, अब उन्हे पहाड़ों में जाकर तुंगछुंगश्याछाओं जड़ी बूटियों की तलाशी करने की जरूरत नहीं रही है, आहिस्ता आहिस्ता उनका जीवन बेहतर होने लगा है।

छीतांगचयांगचिन का परिवार अब एक दुमंजिला मकान में रहता है , जब हमारे संवाददाता उनका इन्टरव्यू लेने पहुंचे तो उन्होने हमारे लिए सू यो नाम की महकती चाय बना कर हमारा सत्कार किया । अतिथि कमरे में दो मीटर उंचा एक रफरीजेरेटर और 25 इन्च का एक रंगीन टीवी रखा हुआ है, उसके बगल में एक वी सी डी मशीन और एक टेलीफोन रखा हुआ है। वह इसी टेलीफोन से श्यामन शहर में पढ़ रहे अपने बेटे से संपर्क रखती है। अपनी दो सौ तिब्बती मुर्गियों के पालन पर बोलते हुए छीतांगयांगचिन ने कहा मुर्गी पालने के बाद हमारे घर का जीवन स्तर सचमुच उंचा होने लगा, हम मुर्गी व अंडडे बेचने से काफी पैसा कमा लेते हैं, सो हमारा जीवन दिनोंदिन बेहतर होता जा रहा है।

गौरतलब है कि कुंगपूच्यांगता की तिब्बती मुर्गी व तिब्बती सुअर तिब्बत के समुद्र सतह से 3000 मीटर उंचे पठार क्षेत्र के खुले माहौल में पाले जाते हैं। हालांकि उनका कद छोटा है पर उनका मांस बहुत ही स्वादिष्ट होता है। स्थानीय लोग हमेशा गौरव से कहते हैं कि उनके तिब्बती मुर्गी व सुअर पहाड़ों के कीमती जड़ी बूटी तुंगछिंगश्याछाओ खाते हैं और उंचे पठार के अप्रदूषित साफ पानी पीते हैं, यही कारण है कि उनके मुर्गियों व सुअरों के मांस ने पूरे तिब्बत में बढ़िया नाम कमा लिया है ,यहां तक कि वे जापान में भी निर्यात किए जाने लगे हैं, अलबत्ता उनके दाम भी उंचे होते हैं। उनके स्थान में एक सुअर सात या आठ सौ य्वेन में बेचा जा सकता है और एक मुर्गी का दाम 40 से 50 य्वेन होता है, जबकि मुर्गी का एक अंडडा एक य्वेन में बेचा जाता है, तिब्बती मुर्गी व तिब्बती सुअर पालन का भविष्य यहां बहुत ही उज्जवल है। स्थानीय अधिकारी यांग तो श्यांग ने हमें जानकारी देते हुए बताया किसानों व चरवाहों के नकद आमदनी को बढ़ाने के लिए , हमारे कुंगपूच्यांगता काउंटी ने विशेष पशुपालन विकास की नीति निर्धारित की है। तिब्बती मुर्गी व तिब्बती सुअर पालने के अलावा, सब्जी उगाने के ग्रीन हाउस के विकास को भी हमने बढ़ावा दिया है। हमने कम्पनी और किसान गठबन्धन का रवैया अपनाया है। वर्तमान हमने सफलतापूर्वक छुंगछिंग शहर के सी छुआन कम्पनी को अपने यहां आकर्षित किया है, उनकी कम्पनी ने हमारे यहां कारखाना खोला है और वहां की तिब्बती मुर्गियों व सुअरों को सीधे खरीद कर किसानों व चरवाहों को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाया है, उनके कारखाने से निर्मित मुर्गी व सुअर मांस के उत्पाद जापान में निर्यात होने लगें हैं, गत वर्ष इस कारखाने के निर्माण होने के बाद कुछ महीनों में ही हमारे काउंटी ने 1 लाख 75 हजार अमरीकी डालर कमाया है।

चुंग सा गांव के प्रभारी काओ को छुअन ने हमारे संवाददाता को बताया कि छीतांगयांगचिन अब हमारे गांव के धनी होने के रास्ते पर चलने की एक आदर्श मिसाल बन चुकी हैं, गांव सरकार ने अधिकाधिक किसानों को तिब्बती मुर्गी व पशु पालन से धनी होने के रास्ते पर चलने को समर्थन दिया है, गांव सरकार उन्हे न केवल भत्ता के रूप में बल्कि तकनीक के रूप में भी समर्थन देती। उन्होने कहा हमारी काउंटी के पशु पालन विभाग ने किसानों को सीधा तकनीक समर्थन दिया है। यदि किसानों को तिब्बती मुर्गी पालन में मुर्गी रोग व किसी भी तरह के संक्रमित रोगों की समस्या से जूझना पड़ा तो वह सीधे गांव सरकार को सूचित कर सकती है, हम काउंटी के विज्ञान व तकनीक विभागों को वहां के रोगों के इलाज में मदद देने के लिए भेज सकते हैं।

कुंगपूच्यांगता काउंटी के अधिकारी यांग तो श्यांग ने कहा वर्तमान हमारे काउंटी का विशेष पशु पालन प्रारम्भिक काल से गुजर रहा है, पूरी काउंटी के तिब्बती सुअर, तिब्बती मुर्गी पालन के परिवारों की संख्या 300 भी नहीं हैं , अधिकतर किसान व चरवाह अब भी पहाड़ों में जाकर छुंग छाओ जड़ी बूटी और मशरूम की तलाश के मुख्य माध्यम से कुछ पैसा कमाते हैं। इस लिए स्थानीय सरकार ने नीति समर्थन व इनाम देने जैसी अनेक व्यवस्थाओं को अमल में लाकर अधिकाधिक विशेष पशु पालन परिवारों को सहायता दी है। हमारी कुंगपूच्यांगता काउंटी ने सक्रिया से किसान व चरवाह परिवारों को पशु पालन में भारी सहायता प्रदान की है। उदाहरण के लिए, नयी नीति के अनुसार, 50 से अधिक तिब्बती सुअर पालने वाले परिवारों को हर एक सुअर बेचने पर काउंटी वित्तीय विभाग की ओर से 50 य्वेन का अतिरिक्त इनाम मिलेगा और तिब्बती मुर्गी पालन परिवारों को हर एक मुर्गी बेचने पर उन्हें पांच य्वेन का इनाम दिया जाएगा।

यह छीतांगयांगचिन का बहुत पसंदीदा कुंगपूच्यांगता का एक लोक गीत है। जब हमने उससे विदा ली तो छीतांगयांगचिन ने हमें बताया कि भविष्य में वह एक मुर्गी पालन फार्म का निर्माण करेगी और पशुपालन के दायरे को अधिक विस्तृत करेगी, आगे चल कर उसने एक मुर्गी प्रोसेसिंग कारखाना की स्थापना करने की भी योजना बनाई है, ताकि तिब्बती मुर्गी तिब्बत से निकल कर दुनिया के बाजार में प्रवेश कर सके।