आज के इस कार्यक्रम में हम कोआथ, बिहार के सुनील केशरी, डी डी साहिबा, संजय केशरी, बविता केशरी, प्रियंका केशरी, खुशबू केशरी, एस के जिंदादिल, धनवंतरी देबी, सिताराम केशरी, जे. पी. नगर, उत्तर प्रदेश के हरीशचन्द्र शर्मा, शिवचन्द्र शर्मा, किरन शर्मा पूना व रजत शर्मा,न्यू भोजपुर, बिहार के कमर सुल्ताना कुरैशी, बालाघाट, मध्य प्रदेश के डॉ. प्रदीप मिश्र और कोआथ रोहतास, बिहार के किशोर कुमार केशरी के पत्र शामिल कर रहे हैं।
पहले कोआथ, बिहार के सुनील केशरी, डी डी साहिबा, संजय केशरी, बविता केशरी प्रियंका केशरी खुशबू केशरी, एस के जिंदादिल, धनवंतरी देबी और सिताराम केशरी का पत्र लें। उन्होंने चीन की अल्पसंख्यक जाति ह्वेई के बारे में जानकारी मांगी है।
चीन में हान जाति के अलावा और 55 जातियां रहती हैं। इन में ह्वेई जाति भी शामिल है।
ह्वेई जाति की कुल जनसंख्या 86 लाख है। ह्वेई लोग देश भर के सभी इलाकों में फैले हैं। उत्तर-पश्चिमी चीन के निंगश्या ह्वेई स्वायत्त प्रदेश, उइगुर स्वायत्त प्रदेश, कांसू,छिंगहाई प्रांत, मध्य चीन के हपेई, हनान प्रांत,पूर्वी चीन के शानतुंग प्रांत और दक्षिण-पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत में ह्वेई जाति की आबादी काफ़ी बड़ी है।
ह्वेई जाति का उद्गम प्राचीन चीन के थांग राजवंश में हुआ। उस वक्त अनेक देशों के लोगों ने व्यापार के लिए पैदल रेशम मार्ग या समुद्री रेशम मार्ग के माध्यम से चीन से संपर्क करना शुरू किया। विभिन्न देशों के लोगों व चीन के हान, उइगुर, मंगोल और तिब्बती जैसे आदि निवासियों के बीच विवाह संबंध स्थापित होने के बाद एक लम्बे अरसे में ह्वेई जाति का उद्गम हुआ।
सुंग राजवंश में बड़ी संख्या में यहूदी लोग चीन आए और ह्वेई जाति का एक हिस्सा बने। मिंग राजवंश में फिलिपींस के राजकुमार राजदूत की हैसियत से चीन पहुंचे। बाद में उनकी मृत्यु पूर्वी चीन के शानतुंग प्रांत में हुई। पर उनकी संतानें और शिष्टमंडल के सदस्य चीन में बस गए। वे भी ह्वेई जाति का हिस्सा बने।
य्वान और मिंग राजवंश में इसने एक विशेष जाति का रूप लिया। इस जाति पर समय बीतने के साथ इस्लाम का भारी असर पड़ा।
ह्वेई जाति के लोग हान जाति की चीनी भाषा का प्रयोग करते हैं, हालांकि आपसी आदान-प्रदान और धार्मिक कार्रवाइयों में भारतीय मुसलमानों की तरह अरबी या फ़ारसी को ही प्रयोग में लाते हैं।
ह्वेई जाति का अधिकांश कृषि व पशुपालन में सक्रिय है। यों वे हस्तशिल्प, व्यापार और भोजन व्यवसाय में भी हैं।
ह्वेई लोगों ने चीन की संस्कृति, विज्ञान और तकनीक के विकास में भारी योगदान किया। ह्वेई जाति के पुरूषों को वूशू या एक प्रकार की युद्धकला के अभ्यास की आदत है। उन के विचार में युद्धकला आदिम पुरुष का कर्तव्य है। ह्वेई लोगों में प्रचलित युद्धकला मध्य एशिया, अरब क्षेत्र और फ़ारस की युद्धकला व चीन की परम्परागत युद्धकला का मेल है।
ह्वेई जाति में चीन के अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति भी उत्पन्न हुए। चंग हअ उनके श्रेष्ठ आदर्श माने जाते हैं। मक्का की तीर्थयात्रा पूरी करने वाले उन के दादा व पिता को हाजी की उपाधि दी गयी। चंग हअ ने 7 बार समुद्रयात्रा की।
वर्ष 1405 में चंग हअ ने 62 जहाजों का बेड़ा लेकर अपनी प्रथम समुद्रयात्रा शुरू की। इस बेड़े में कोई 2700 सैनिक थे। उनकी यह पहली समुद्रयात्रा दो साल में पूरी हुई। इस दौरान चंग हअ ने भारत के कोल्लाम, कोची, कोझीकोड और सूरत जैसे बंदरगाहों का दौरा किया। बाद की छै समुद्रयात्राओं में उन का बेड़ा कुल 1 लाख 60 समुद्री मील का फासला तय कर पूर्वी अफ्रीका और लाल सागर के मुहाने पहुंचा और उसने 30 से अधिक देशों का दौरा किया।
अब जे. पी. नगर, उत्तर प्रदेश के हरीशचन्द्र शर्मा, शिवचन्द्र शर्मा, किरन शर्मा पूना व रजत शर्मा का पत्र देखें। उन्होंने लिखा है कि हमरे परिवार के सभी सदस्य सी आर आई के हिन्दी व अंग्रेजी कार्यक्रम ध्यानपूर्वक सुनते हैं। पहले हमें चीन के में काफी भ्रांतियां थीं लेकिन अब धीरे-धीरे समझ में आ रहा है कि चीन विश्व शांति, लोकतंत्र व प्रगति की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है। चीन की 55 वीं वर्षगांठ के कार्यक्रम सुने, जो अत्यन्त रोचक लगे। उन्होंने आगे लिखा है कि कृपया बताएं कि चीन में बैलों की संख्या कितनी है, क्या हमारे देश की भांति चीन में भी बैलों की संख्या काफी बड़ी है।
लीजिए इस बारे में विस्तार से सुनिए। चीन बैलों का बड़ा उत्पादक है। वर्ष 2000 में चीन में पालित गायों की कुल संख्या 128663000 रही जो विश्व में तीसरे स्थान पर थी। इन में बैलों की संख्या 96565000, दुधारू गायों की संख्या 4887000 और भैंसों की संख्या 22758000 रही।
पहले चीन में दूध के उत्पादन के लिए गाय का इस्तेमाल किया जाता था। पर बाद में दुधारू भैंसों का इस्तेमाल शुरू हुआ। दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत से भी बेहतर नस्ल की भैंसों का आयात किया गया।
दुधारू भैंसों का पालन ज्यादातर दक्षिणी चीन के क्वांगतुंग, क्वांगशी च्वांग स्वायत्त प्रदेश, और फ़ूच्येन प्रांत जैसे क्षेत्रों में होता है।
चीन के पांच सब से बड़े चरागाहों में तिब्बत का भी स्थान है। यहां करीब 40 लाख याकों का पालन किया जाता है, जो विश्व में याकों की कुल संख्या की एक तिहाई है।
याक का प्रयोग परिवहन व खेतीबारी में किया जाता है, साथ ही याक से दूध, मांस व ऊनी भी मिलती है।

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