इस वर्ष फासिस्ट विरोधी विश्वयुद्ध की विजय की 60वीं वर्षगांठ है। साठ वर्ष पहले, जब जर्मनी में नाजी यूरोप की मुख्यभूमि पर मनमानी से यहूदियों को मार रहे थे, तो अनेक देशों ने यहूदी लोगों को अपने यहां से निष्कासित किया। लेकिन, सुदूर पूर्वी चीन में, शांगहाई वासियों ने उदार दिल से 30 हजार से ज्यादा यहूदियों को शरण दी। तब से साठ से ज्यादा वर्ष गुजर गये और अब इन यहूदियों में से अनेक का देहांत हो चुका है लेकिन, इनमें से जीवित लोगों को अब भी शांगहाई की याद आती है। उन के दिलों में इसकी सुन्दर स्मृति भरी हुई है।
निसबाउम दंपत्ति इजराइल के मध्यम-पश्चिमी भाग के एक छोटे कस्बे में रहते हैं। पति का नाम खर्द है, पत्नी का इंगा। वर्ष 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने के बाद, नाजियों से बचने के लिए 11 वर्षीय खर्द तथा 6 वर्षीय ईंगा अपने मां-बाप के साथ आस्ट्रेलिया और जर्मनी से चीन के शांगहाई पहुंचे। 10 वर्ष बाद, वे शांगहाई के एक यहूदी युवा क्लब में मिले। उन के बीच मुहब्बत हुई और वर्ष 1949 में वे एक साथ इजराइल वापस लौटे और विवाह भी किया। अब उनका परिवार खुशी से जीवन बिता रहा हैं। सुश्री ईंगा ने कहा, वर्ष 1939 के नवम्बर माह में, मेरे पिता को जर्मनी के नाजियों ने सामूहिक जेल में भेजा दिया। सरकार ने कहा कि वे सामूहिक जेल से इस शर्त पर बाहर आ सकते हैं कि वे सब जर्मनी से रवाना हो जायें। उस समय यूरोप के अनेक देशों ने यहूदियों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था, इसलिए, उन्हें चीन के शांगहाई जाना पड़ा। सुश्री ईंगा ने कहा, मेरी मां मुझे बर्लिन लायीं। उन्हें आशा थी कि वे पिता जी को सामूहिक जेल से रिहा करा लेंगी। उस वक्त हम किसी भी देश में शरण लेना चाहते थे। ब्रिटेन व होलैंड ने केवल यहूदी बच्चों को शरण दी थी। यहूदियों को मदद देने वाले जर्मनी के एक संगठन ने मेरी मां को बताया कि हमें शांगहाई जाना होगा क्योंकि वह तब विश्व में एकमात्र वीज़ामुक्त स्थल था। शांगहाई जाने के लिए केवल जहाज के टिकट की जरूरत थी। यह सुनकर मेरी मां ने तुरंत पूरे परिवार के लिए 11 टिकट खरीदे।
जब ईंगा का परिवार शांगहाई पहुंचा, तब तक जापानी आक्रमणकारी सेना ने शांगहाई पर कब्जा नहीं किया था। ईंगा के पिता एक चीनी वकील को जानते थे और उन के साथ मिल कर वकालत करना चाहते थे। लेकिन, जापानी आक्रमणकारी सेना की तोपों ने ईंगा के परिवार के सपने को बर्बाद कर दिया। ईंगा के पिता बेरोजगार हो गये और पूरे परिवार को ईंगा की मां पर निर्भर होना पड़ गया। इस के बावजूद, यूरोप के अपने मित्रों की तुलना में ईंगा का जीवन अपेक्षाकृत सुखी था। ईंगा ने बताया, हम ने वहां एक सुन्दर समय बिताया। हम ने शांगहाई में अच्छी शिक्षा ली जबकि यूरोप में मेरे मित्र शिक्षा नहीं ले पा रहे थे। मैं हमेशा यह मानती हूं कि चीन ने हमें बचाया है।
यहूदियों का जबरदस्त विरोध करने वाले यूरोप की तुलना में चीनी लोग बाहर से आये उत्प्रवासियों से अच्छा व्यवहार करते थे। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 1933 से 1941 तक, शांगहाई ने यूरोप से आये 30 हजार से ज्यादा यहूदी शरणार्थियों को स्वीकार किया।शांगहाई का यहूदी संगठन सुदूर पूर्वी क्षेत्र का सब से बड़ा यहूदी संगठन था। उसने अपने कार्यालय की स्थापना की , यहूदी पूजागृह, स्कूलों, अस्पतालों का निर्माण किया और विभिन्न क्लबों व वाणिज्य संघों की स्थापना की। उसने अपनी पत्रिका भी प्रकाशित की और अपनी एक टुकड़ी भी रखी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, शांगहाई में 10 वर्ष रह चुकी रूसी मूल की यहूदी वृद्धा साला ने चीन की उदारता की प्रशंसा की। चीनी लोगों से हमने अनेक श्रेष्ठ गुण सीखे हैं। चीनी लोग बड़ों का सम्मान करते हैं और बच्चों से प्रेम करते हैं। चीनी लोग सभी लोगों से अच्छा व्यवहार करते हैं। मैं कल्पना नहीं कर सकती कि दुनिया की अन्य जगहों में यहूदी लोग चीन की ही तरह आराम से रह सकते थे।
91 वर्षीय साला का परिवार वर्ष 1916 में रूस से चीन के हार्बीन आया। वहां वह एक छोटी शिशु से लड़की बनी। उसने हार्बीन के एक युवक से प्रेम किया। चीन के खिलाफ़ जापानी आक्रमणकारी युद्ध छिड़ने के बाद, वे हार्बीन से शांगहाई गये। वर्ष 1949 में वे इजराइल वापस लौटे।
येरूशलम में साला के घर में प्रवेश करते ही, हमें लगा मानो पिछली शताब्दी के 30 के दशक के परम्परागत चीनी परिवार में प्रवेश कर रहे हों। दीवार पर पुराने शांगहाई का एक चित्र टंगा था और मकान में विभिन्न किस्मों की परम्परागत चीनी कला वस्तुएं रखी थीं।
हालांकि तब से 60 वर्ष गुजर गए हैं, फिर भी चीन की चर्चा आते ही साला के दिल में एक गहरी भावना उठी। उन के अनुसार, चीन के प्रति मेरी सुन्दर भावना है। मेरे पति का जन्म चीन में हुआ, मेरे बेटे का जन्म भी चीन में हुआ। मेरे दादा-दादी का निधन भी चीन में हुआ। मैं ने चीन में जीवन का सब से सुन्दर काल गुजारा। हालांकि अब मैं इजराइली हूं, लेकिन, मन से चीनी हूं।
शांगहाई में शरण लेने वाले कुछ यहूदियों ने चीन के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में भी भाग लिया और चीनी जनता के साथ गहरी दोस्ती कायम रखी।
84 वर्षीय श्री खौफ्मन इजराइल-चीन मैत्री संघ के संस्थापकों में से एक हैं। वर्ष 1948 में इजराइल की स्थापना के बाद, चीन में रहने वाले कुछ यहूदी इजराइल वापस लौटे। हालांकि वे इजराइल के विभिन्न स्थलों में रहते हैं और वे विभिन्न रोजगार करते हैं फिर भी उन्होंने एक साथ इकट्ठे हो कर वर्ष 1951 में चीन में रहने वाले यहूदियों के संघ की स्थापना की। वर्ष 1992 में चीन व इजराइल के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना होने के बाद, उन्होंने इजराइल-चीन मैत्री संघ की स्थापना भी की। यह संघ नियमित रूप से समारोहों का आयोजन करता है, विभिन्न किस्मों की पत्रिकाएं प्रकाशित करता है और चीन में पढ़ने वाले इजराइली विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देता है। श्री खौफ्मन ने कहा, हमारा लक्ष्य आधुनिक समाज को चीन में यहूदियों के इतिहास की याद दिलाना है, ताकि दो जातियों व देशों के बीच मैत्री बढ़ सके। यदि हम इतिहास को भूल गये, पिछले समय को भूल गये, तो भविष्य का उपभोग नहीं कर पाऐंगे।
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