सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के बाद विश्व का दूसरा विशाल रेगिस्तान ताकलिमाकन रेगिस्तान फैला हुआ है , ताकलिमाकन रेगिस्तान के बीचोंबीच एक बड़ा अंडाकार बेसिन है , जो तारिम के नाम से विश्व विख्यात है . पश्चिमी चीन में ऊंचे ऊंचे खड़े खुनलुन पर्वत तथा थ्येनशान पर्वत के मध्य में तारिम बेसिन में विश्व का मशहूर प्राचीन रेशम मार्ग यहां पहुंच कर उत्तर व दक्षिण दो पथों में बंट कर आगे बढ़ता गया था और अंत में बेसिन के पश्चिमी भाग के काश्गर शहर के पास पुनः एक ही पथ के रूप में मिल गया और आगे पश्चिम की दिशा में बढ़ता जा रहा ।
तारिम बेसिन से गुजरते हुए प्राचीन रेशम मार्ग के किनारे किनारे अनेक रहस्यों से भरे प्राचीन अवशेष देखने को मिलते हैं , इन ऐतिहासिक अवशेषों के अन्तर्गत दक्षिण सिन्चांग की विभिन्न जातियों की प्रगाढ़ अनोखी रीति रिवाज लोगों को बरबस आकृष्ट करते हैं । आइए , अब वहां आबाद प्राचीन नगर काश्गर , खुक और हथ्येन का दौरा करें , पर इस से पहले आप याद करें, इस के आलेख के लिए रखा गया प्रश्न है , वह है कि तारिम बेसिन के पश्चिमी भाग में आबाद मशहूर ऐतिहासिक शहर का नाम क्या है ।
तारिम बेसिन के पश्चिमी भाग से जब यात्रा शुरू करें , तो पहले पड़ाव के लिए हम प्राचीन रेशम मार्ग के उत्तर व दक्षिण पथों के संगम पर स्थित प्राचीन काश्गर शहर पहुंचे ।
काश्गर दक्षिण सिन्चांग के प्रसिद्ध ऐतिहासिक सांस्कृतिक शहर है ,जिस के संदर्भ में लिखित इतिहास भी दो हजार पुराना लम्बा है । देश के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित काश्गर शहर मध्य व पश्चिमी एशिया के यातायात मार्ग का एक अहम स्थल है और प्राचीन काल में चीन के रेशम , चीनी मिट्टी के बर्तन तथा जेड के काम और तिजारती माल इस शहर से हो कर पश्चिम को पहुंचाए जाते थे , अतः काश्गर प्राचीन काल का एक अन्तरराष्ट्रीय व्यापार केन्द्र माना जा सकता है । आधुनिक काल में काश्गर देश विदेश के पर्यटकों के लिए पसंदीदा सीमावर्ती पर्यटन शहर बन गया है ।
काश्गर का दौरा करने के लिए शहर के केन्द्र में स्थित एतिगर चौक देखने के लायक है । यह विशाल चौक काश्गर शहर में सार्वजनिक सांस्कृतिक मनोरंजन और इस्लाम धर्म का धार्मिक गाह भी है। चौक के बीचोंबीच निर्मित एतिगर मस्जिद चीन का सब से बड़ा मस्जिद है और सिन्चांग में पर्यटकों की सेवा में खोले गए बहुत कम मस्जिदों में से एक है । मस्जिद में नमाज के वक्तों को छोड़ कर अन्य समय पर देश विदेश के पर्यटकों को अन्दर प्रवेश कर देखने की अनुमति है ।
एतिगर मस्जिद पूर्व के मक्का के नाम से भी जाना जाता है , हर शुक्रवार को सात आठ हजार मुसलमान मस्जिद में नमाज अदा करने आते हैं और जब ईद उल जुहा , ईद उल फितर और कुर्बान के पर्व आये , तो मस्जिद के विशाल भवन से ले कर पूरे इतिगर चौक तक लाख से ज्यादा लोग इक्टठे हो जाते हैं , जिस का नजारा देखते ही बनता है ।
एतिगर मस्जिद की दोनों ओर काश्गर की कारीगरी वस्तु सड़कें हैं , वहां बहुत सी कारीगरी वस्तुएं मौके पर बनायी जाती हैं और बेची जातीं है , चमकदार चांदी के कटोरा , तांबे का केतली , सुन्दर भोजन के बर्तन तथा खूबसूरत निर्मित वाद्य यंत्र ये सभी वेवूव जाति के कारीगरों के हाथों से दर्शकों की आंखों के सामने बनाये जाते है , इसलिए पर्यटक जरूर मनमुग्ध हो कर एक दो चीजें यादगार के लिए खरीद लेते हैं। पेइचिंग से आए एक पर्यटक ने हमें अनुभव बताते हुए कहाः
वहां के दुकानदार बहुत नेक और जोशपूर्ण हैं , उन की पर्यटन वस्तुएं अत्यन्त सुन्दर हैं और विशेष अनोखी भी है , वे हमारी आंखों के सामने कारीगरी की चीजें बनाते हैं , उन का यह काम देखने में बड़ा आनंद देता है । मुझे वहां आना बहुत पसंद है ।
काश्गर में एक महा बाजार है , जो सिन्चांग का ऐसा सब से बड़ा बाजार है , जहां अल्पसंख्यक जातियों की छोटी मोटी चीजें बिकती हैं , बाजार बीस से ज्यादा फुलबाल मैदानों से जितना विशाल है , जिस में पांच हजार से अधिक स्टॉल हैं ।वहां मौटा तौर पर घूमने में भी सात आठ घंटे लगता है । इतवार को बाजार में एक लाख से ज्यादा लोग आते जाते हैं , बाजार में चीन और विदेशों की तरह तरह की चीजें मिलती हैं , दाम भी बहुत सस्ता है । यह बाजार मध्य एशिया का मेला नाम से मशहूर है ।
काश्गर में प्राचीन ऐतिहासिक अवेशषों में श्यांगफी रानी की समाधि और काश्गर के प्राचीन नगर इलाके की काईताई रिहाइशी बस्ती लोकप्रिय है ।
श्यांगफी रानी की समाधि काश्गर के उत्तर पूर्व में कोई पांच किलोमीटर दूर स्थित विरल शानदार मुस्लिम कब्रस्तान है । समाधि में दफनाई गई श्यांगफी रानी चीन के छिंग राजवंश के मशहूर सम्राट छ्येनलुंग की रानी थी , वह हुई जाति की थी और शरीर में एक प्रकार का हल्का महक निकलता था , इसलिए वह सम्राट की मनचाही स्त्री बनी थी । उस के निधन के बाद उस की शव उस की जन्म भूमि --काश्गर में लौटायी गई और उस की समाधि भी बहुत मशहूर हो गई ।
काश्गर के प्राचीन नगरी इलाके में आबाद काईताई बस्ती रेशम मार्ग के काल की वेवूर जाति की आवास विशेषता सुरक्षित रही है । पहाड़ी ढलान पर बनी वेवूर जाति की यह बस्ती वेवूर जाति के परम्परागत चित्र की भांति मनमोहक लगती है । बस्ती में कोई भी मकान दूसरे से समान नहीं है ,चारों ओर घूमती गुजरती संकरी गलियां भूलभुलैया जैसी होती है , मार्ग दिखाने के लिए गलियों में विशेष रंगढंग के ईंटों से सड़कें बनायी गई , षष्ठ कोण ईंटों से बनी सड़कें खुली जगह जाती है , जबकि आयताकार सड़कें बंदगली में जा खत्म होती है । इस विशेष पथ व्यवस्था के प्रबंध से भी बाहर से आने वाले पर्यटक अकसर भूलभुलैया गलियों में रास्ता गुम जाते हैं ।
काश्गर में सिन्चांग की जातीय परम्परागत संस्कृतियां सब से अच्छी तरह सुरक्षित रही हैं , वेवूर जाति का सुप्रसिद्ध संगीत संग्रह बारह मुखाम और नृत्य दोरान भी काश्गर में उत्पन्न हुए और विकसित हुए हैं ।
यह है काश्गर में रह रहे स्थानीय कबीले में प्रचलित दोरान नामक नृत्य की धुन है । दोरान नृत्य आदिम व सादा शैली में जोशपूर्ण और उत्तेजक है , नृत्य में बहुत से लोग एक साथ तबली बजाते हुए मुक्त कंठ में गाना गाते हैं और नाचते हैं, मानो वे अपने दिल की बातें स्वर्ग को बताना चाहते हों । दरअसल दोरान नृत्य में स्थानीय लोगों की शिकार करने की प्रकिया दर्शायी जाती है । लोग नृत्य के रूप में जंगल और घास मैदान जाने , जंगली पशुओं के नजदीक पहुंचने तथा उस के साथ संग्राम करने और अंत में उसे जान से मारने के दृश्य दिखाते हैं और वे मिल कर सफल शिकार की खुशियां मनाते हैं । विदेशी पर्यटकों ने दोरान देख कर कहा कि यह वास्तव में चीनी मूल का रोकन रोल डांस है ।
काश्गर से विदा हो कर हम तारिम बेसिन के उत्तरी भाग में पूर्व की दिशा में 400 किलोमीटर चल कर मौजूदा यात्रा के दूसरे पड़ाव खुक पहुंचे ।
खुक नगर प्राचीन रेशम मार्ग पर स्थित छ्युछी राज्य का अवशेष स्थल है । यह जो धुन आप ने सुनी है , वह प्राचीन छ्युछी रज्य का संगीत है , जो 1500 साल पहले ही चीन के थांग राजवंश की राजधानी छांगआन में बहुत लोकप्रिय रहा था .
खुक में सब से मशहूर अवशेष केजर सहस्त्र बुद्ध गुफा है , यह गुफा ईस्वी तीसरी चोथी शताब्दियों के दौरान खोदी गई थी , जो लगातार पांच सौ सालों तक जारी रही । वह चीन का सब से पुराना गुफा समूह है , जिस में अब भी दस हजार वर्ग मीटर की भित्ती चित्र सुरक्षित हैं । बौद्ध धर्म भारत से सिन्चांग हो कर चीन के भीतरी इलाके में जा पहुंचा था , इसलिए सहस्त्र बुद्ध गुफाओं में जो सांस्कृतिक विशेषता दिखती हैं , वह ज्यादा प्राचीन भारतीस बौद्ध संस्कृति से मिलती जुलती है । माना जाता है कि चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार खुक से आरंभ होता था , इसी ऐतिहासिक महत्व के कारण अब हर साल बड़ी संख्या में चीनी विदेशी लोग यहां यात्रा पर आते हैं ।
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