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(GMT+08:00) 2005-08-09 16:22:08    
ल्हासा में सागादावा उत्सव की खुशियां

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चीन के तिब्बती बहुल क्षेत्र में हर साल जो अनेक उत्सव मनाये जाते हैं, उन में बहुत से धार्मिक पर्व होते हैं। इन उत्सवों के दौरान तिब्बती लोग रंग-बिरंगे आयोजन करते हैं। चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में हर माह कोई न कोई उत्सव होता है, विशेष कर जनवरी और फरवरी में। तिब्बती पंचांग का नया साल, श्येतुन उत्सव, मंत्रजाप उत्सव आर लिनखा उत्सव आदि इनमें शामिल हैं। वसंत का तिब्बत स्वायत्त प्रदेश का विशेष उत्सव है-सागादावा। हाल में अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान मैं ने तिब्बती बंधुओं के साथ राजधानी ल्हासा में इस उत्सव की खुशियां मनायीं । आज के इस कार्यक्रम में मैं आप को दूंगी, इस तिब्बती उत्सव के बारे में जानकारी ।

तिब्बती पंचांग में अप्रैल माह सागादावा कहलाता है। तिब्बती दोस्तों ने मुझे बताया कि बौद्ध धर्म के प्रवर्तक शाक्यमुनि के जन्म, महाबुद्ध बनने और देहांत की तिथि तिब्बती पंचांग के अनुसार पंद्रह अप्रैल है। एक लोककथा के अनुसार, थांग राजवंश की राजकुमारी वन छंन तत्कालीन तिब्बत के राजा सोंग जान कान बू के साथ विवाह करने जब थांग राजवंश की राजधानी शि आन से तिब्बत पहुंचीं, उस दिन भी अप्रैल की पंद्रह तारीख थी। इसलिए तिब्बती लोग महाबुद्ध और राजकुमारी वन छंग की स्मृति में स्थानीय पंचांग के अनुसार, सागादावा माह में विविध गतिविधियां आयोजित करते हैं। खासे लम्बे समय से पंद्रह अप्रैल को सागादावा उत्सव मनाया जाता रहा है। तिब्बती लोग इस दिन सैर करते हैं और बुद्ध से अच्छी फसल और सुखमय जीवन की प्रार्थना करते हैं। सागादावा की गतिविधियां अप्रैल के अंत तक चलती हैं।

सागादावा के दौरान लाखों तिब्बती तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों से राजधानी ल्हासा आते हैं और पोताला मेहल का बौद्ध सूत्र पढ़ते हुए चक्कर काटते हैं। सूत्र पढ़ते हुए चक्कर काटना तिब्बती लोगों के बीच प्रचलित प्रार्थना का तरीका है। वे किसी तय रास्ते पर, घूमते हुए सूत्र पढ़ते हुए प्रार्थना करते हैं। सागादावा में सूत्र पढ़ते चक्कर काटने के तीन रास्ते तय होते हैं । इन में से तीसरा प्राचीन ल्हासा शहर का घेरे में चक्कर लगाने का होता है। यह रास्ता ल्हासा के बाहर का रास्ता है। इस की लम्बाई कोई पांच हजार मीटर होती है और यह लिन ख्वो कहलाता है। सागादावा के दौरान लिन ख्वो पर सूत्र पढ़ते हुए चक्कर काटने वालों की संख्या अनगिनत रहती है और सागादावा उत्सव के दिन ऐसे लोगों की संख्या इस महीने के अन्य दिनों की तुलना में ज्यादा होती है। तड़के दो बजे से ही तिब्बती लोग पोताला महल को घेर कर उसके चक्कर काटने लगते हैं।

सागादावा उत्सव के दिन मैं ने तिब्बती बंधुओं के साथ बड़ा अविस्मरणीय समय बिताया। सुबह-सुबह मैंने भी पोताला महल के सामने चौक पर भीड़ के साथ इस महल के चक्कर काटने शुरू किये। रास्ते पर अनेक तिब्बती हाथ में सूत्र चक्र लिये सूत्र पढ़ रहे थे। दो-तीन घंटे बाद वे पोताला महल का गोल घेरा घूमने के बाद उस के पीछे ज़ोग च्यो लू खांग नामक पार्क में जाकर लिन खा में जुट गये। लिन खा का मतलब है तिब्बती लोगों का पार्क या जंगल में आराम करने जाना। इस दौरान वे पार्क में घास पर बैठ कर रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ खाना खाते हैं, गाते हैं, नाचते हैं, शराब पीते हैं और ताश खेलते हैं। कुछ लोग पार्क में स्थित ड्रैगन झील में नाव भी चलाते हैं।

47 वर्षीय त्सी ची अपने पति और पड़ोसी के साथ सागादावा उत्सव मनाने के लिए विशेष तौर पर लिन ची प्रिफेक्चर से ल्हासा आईं। पोताला महल के चक्कर काटने के बाद वे ड्रैगन झील के पास घास पर बैठी आराम कर रही थीं। त्सी ची केक खाते हुए अपने दोस्तों के साथ बातचीत भी करती जा रही थीं और उन के पति सूत्र चक्र पर सूत्र पढ़ रहे थे। सुश्री त्सी ची ने बताया कि वे अपने परिजनों के साथ सागादावा उत्सव मनाने हर वर्ष लिन ची से ल्हासा आती हैं। इस वर्ष वे अपने पति और पड़ोसियों के साथ दस दिन पूर्व ही ल्हासा आ गई थीं और इन दस दिनों में हर रोज़ उन्होंने पोताला के कई बार चक्कर काटे। तिब्बती लोगों के इस विशेष उत्सव की चर्चा में सुश्री त्सी ची ने कहा:

"हम लोग ल्हासा में पोताला महल के गोल चक्कर सूत्र पढ़ते हुए काटते हैं और इस पार्क में लिन खा करते हैं। हम बहुत खुश हैं। हमारी आशा है कि सूत्र पढ़ते हुए चक्कर काटने से हमारा जीवन और सुखमय होगा। इसीलिए हम हर वर्ष सागादावा उत्सव मनाने के लिए लिन ची प्रिफेक्चर से यहां आते हैं। "

तिब्बती रीति के अनुसार, सागादावा में लोग गरीबों की सहायता करते हैं और जानवरों को नहीं मारते हैं। सागादावा उत्सव के दिन पोताला महल के पीछे स्थित ज़ोंग च्यो लू खांग पार्क की ड्रैगन झील के पास बहुत से तिब्बती हंसों को बचाते भी हैं।

ज़ोंग च्यो लू खांग पार्क में घूमते हुए मैं ने देखा कि अनेक तिब्बती हंसों से भरी टोकरी लिये ड्रैगन झील के केंद्र में स्थित मठ जा रहे थे। बीच-बीच में हंसों की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी। ल्हासा के पास की तांग श्योंग काउंटी से आईं कोंग सांग अपने परिजनों के साथ झील के पास हंसों को छोड़ रही थीं। इन हंसों को कोंग सांग ने बाज़ार से खरीदा। लम्बे समय में कैद में रहे कुछ हंसों के पंख गिर चुके थे और वे पानी में नहीं जा पा रहे थे। ऐसे परहीन हंसों को कोंग सांग और उनके परिजनों ने कुछ देर अपनी गोद में रखा। और स्वतंत्र होने पर ये हंस आनंद से गा-गा की आवाज़ करने लगे। कई लामा भी उन्हें चारा खिलाते हैं। ल्हासा स्थित एक मठ के लामा छिंग राओ यी शी की गोद में एक कमज़ोर हंस था और वे उसे पूरे धैर्य के साथ खिला रहे थे। लामा छिंग राओ यी शी ने बताया

"कांग सांग जैसे तिब्बती लोग विशेष तौर पर बाज़ार से इन हंसों को खरीद कर लाने के बाद यहां मुक्त करते हैं। ये हंस लम्बे समय तक कैद में रहने के कारण कमज़ोर होते हैं। ठंडे मौसम में ये मुश्किल से जीवित रह पाते हैं। इसलिए तिब्बती लोग आम तौर पर इन हंसों को खरीद कर कुछ दिन अपने घर रखकर उन्हें खिला-पिला कर ही यहां लाते हैं।"

तिब्बती महिला फू चङ ल्हासा के पास स्थित त्वे लोंग द छिंग काउंटी की किसान हैं। सागादावा उत्सव के दिन वे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ सुबह-सुबह काउंटी से ल्हासा आयीं। सूत्र पढ़ते हुए पोताला महल के गोल चक्कर काटने के बाद वे भी अपने साथियों के साथ ज़ोंग च्यो लू खांग पार्क में आराम कर रही थीं कि मेरी उनसे मुलाकात हुई। इस तिब्बती महिला किसान ने मुझे बताया कि सागादावा उत्सव के दिन वे अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ खेती का काम बंद कर विशेष तौर पर ल्हासा आती रही हैं। फू चङ ने कहा

"सामान्य समय में हम लोग खेती में व्यस्त रहते हैं और हमारे पास ल्हासा आने का समय ही नहीं होता। आज सागादावा उत्सव के दिन हम रिश्तेदारों के साथ यहां एकत्र होकर आराम करते हैं और खुशियां मनाते हैं।"

सागादावा उत्सव के दिन पोताला महल के पीछे स्थित ज़ोंग च्यो लू खांग पार्क के कोने-कोने में खुशी के गीत सुने जा सकते हैं। बड़े लोग पार्क में गीत गाते हैं, नाचते हैं, शराब पीते हैं और बातचीत करते हैं तो बच्चे उसकी घास पर खेलते हैं । महान पोताला की छवि ड्रैगन झील में दिखती है और मधुर तिब्बती गीत इस प्राचीन महल के आसपास गूंजते हैं, तो एक बहुत सुन्दर दृश्य पैदा होता है।

तिब्बत के सागादावा माह में अगर आप को भी तिब्बती राजधानी ल्हासा की यात्रा करने का अवसर मिले, तो इस विशेष तिब्बती उत्सव की खुशियों में शामिल होना न भूलें।