द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, जापानी सेना ने चीन के खिलाफ़ रासायनिक युद्ध छेड़ा और चीनी जनता को गहरी विपत्ति में डाला। दुर्भाग्य की बात है कि युद्ध के दौरान जापानी सेना द्वारा चीन में छोड़े गये रासायनिक हथियार बाद में भी चीनी लोगों के लिए दुख लाये हैं।
78 वर्षीय ली छींग श्यांग उत्तरी चीन के ह पेई प्रांत के बेई थुंग गांव में रहते हैं। 63 वर्ष पहले एक दिन, उन के चार रिश्तेदार एक साथ जापानी सेना के जहरीली गैस के हमले में मारे गये। पुरानी बातों को याद करते हुए इस वृद्ध के मुख पर गंभीरता दिखती है। वे कहते हैं कि वसंत की एक सुबह, उन्हें गोलियों की आवाज़ ने जगाया। जापानी सेना उन की गांव में आ चुकी थी और अधिकांश गांववासी जापानी सेना की लूट-मार से बचने के लिए सुरंगों में छिप गये थे।
लेकिन, उनमें से किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि जापानी सेना सुरंग में जहरीली गैस भर चुकी है। श्री ली छींग श्यांग याद करते हुए कहते हैं कि उस वक्त कैसे भूमिगत सुरंग में भगदड़ मच गयी थी। उन के रिश्तेदार व पड़ोसी इसी जहरीली गैस से मारे गये।
जब शत्रु ने गांव में प्रवेश किया, तो उसने पहले सुरंग का द्वार ढ़ूंढ़ने की कोशिश की। फिर उसने सुरंग में जहरीली गैस भर दी। मेरा सांस लेना भी कठिन हो गया। मेरी बड़ी बहन व छोटे भाई मुझसे छूट गये। मेरे साथ चल रही आठ वर्षीय छोटी बहन ने कहा, भाई, मैं अब नहीं चल सकती। इस तरह मेरी बड़ी व छोटी बहनें और दोनों छोटे भाई सब सुरंग में मारे गये। मेरा नौ कमरों वाला मकान भी जापानी सेना ने आग में जला कर बर्बाद कर दिया।
श्री ली छींग श्यांग ने इस हमले में मारे गये अनेक बेगुनाहों के नाम भी बताये। ली व्यन हू, वांग शिन छंग, ली च्वू आदि। संबंधित सामग्री से पता चला कि उस दिन, अकेले बेई थुंग गांव में ही 800 से ज्यादा लोग जापानी सेना के जहरीली गैस के हमले में मारे गये।
चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के प्रोफेसर बू फींग जापानी सेना द्वारा चीन के खिलाफ़ छेड़े गये रासायनिक युद्ध का अनुसंधान करते रहे हैं। उनके अनुसार वर्ष 1939 से द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति तक जापानी सेना ने लड़ाई में अनेक बार रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया। अपूर्ण आंकड़ों के अनुसार, केवल चीनी सेना के खिलाफ़ जापानी सेना ने दो हजार से ज्यादा बार रासायनिक हथियार इस्तेमाल किये। लेकिन, जापान पर उसकी सेना की इन हिंसक कार्यवाइयों के लिए युद्ध के बाद अमरीका की शरण लेने की वजह से मुकदमा नहीं चलाया गया। युद्ध अपराधियों पर भी इसे ले कर मुकदमा नहीं चला। प्रोफेसर बू फींग ने इस पर क्रोध प्रकट करते हुए कहते हैं, चीनियों को जापानी सेना के रासायनिक युद्ध ने भारी नुकसान पहुंचाया। पर वे मरते दम तक कहीं भी जापानी सेना पर मुकदमा नहीं चला सकते हैं। इसका कारण यह है कि युद्ध के बाद जापान ने अपने आक्रमण की जिम्मेदारी उठाने से इनकार कर दिया और अपने आक्रमण से जुड़े सवालों का अच्छी तरह निपटारा नहीं किया।
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति दुनिया भर के युद्धग्रस्त लोगों के लिए आशा की किरणें लायी। लेकिन चीनी जनता को जापानी सेना के रासायनिक हथियारों से अब भी नुकसान झेलना पड़ रहा है। वर्ष 1974 की एक गहरी रात, ली छन नामक मजदूर तथा उन के सहकर्मी जब उत्तर-पूर्वी चीन के हेई लुंग च्यांग प्रांत की एक नदी में सफाई कर रहे थे तो अचानक उन की मशीन किसी चीज से टकरा कर बंद हो गयी। श्री ली छन ने कहा, मशीन ने काम नहीं किया, तो हम ने उसे नदी से बाहर निकाल लिया। मुझे मशीन पर तोप के आकार की चीज लगी दिखी। इस से काले रंग का पानी बह रहा था। ऐसा कुछ पानी मेरे हाथों में भी लगा। कुछ पल बाद मुझे अजी सा लगने लगा। मेरी आंखों से आंसू बहने लगे और सिर में भारी दर्द उठा।
वास्तव में श्री ली छन द्वारा उठायी गयी तोप जापानी सेना द्वारा छोड़ा गया एक रासायनिक हथियार था, जिस में मस्टर्ड गैस नामक जहरीली गैस भरी थी। इस गैस के प्रभाव से श्री ली छन के सिर, हाथों तथा पांवों में छोटे-बड़े फफोले पड गये। श्री ली छन ने कई बार अस्पताल जाकर इसका इलाज कराया। पर अब तक, वे स्वस्थ नहीं हो सके हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय के जापानी रासायनिक हथियार चीन में अब भी क्यों हैं। इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर बू फींग ने कहा कि जापान के आत्मसमर्पण से पहले, उसकी सेना अपनी आपराधिक कार्यवाइयों को छिपाने के लिए बड़े पैमाने पर रासायनिक हथियार चीन में छोड़ गयी और संबंधित सामग्री चीन के लिए बिलकुल बंद कर दी। युद्ध के बाद जापान सरकार लम्बे अरसे तक इस बात को ठुकराती रही कि जापान ने तब रासायनिक हथियारों का अनुसंधान किया था और वह उन्हें चीन में छोड़ गयी थी। वर्ष 1991 में ही, जापान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव में विवश होकर ही इस तथ्य को मान्यता दी।
जापानी सेना द्वारा चीन में छोड़ी गयी जहरीले तोपों के अनेक चीनी शिकार बने। वर्ष 1946 में उत्तर-पूर्वी चीन के जी लिन प्रांत के द्वन ह्वा क्षेत्र के चार किसान घास काटते समय जापानी सेना की ऐसी रासायनिक तोप की चपेट में आये और आजीवन पलंग से नहीं उठ सके। वर्ष 1980 में उत्तरृपूर्वी चीन के ही हेई लुंग च्यांग प्रांत के श्वांग छन शहर के छी जडं बींग को रासायनिक हथियार का शिकार होने के बाद अपने शरीर की खराब त्वचा को कटवाना पड़ा। वर्ष 2003 की चार अगस्त को, उत्तर-पूर्वी चीन के हेई लुंग च्यांग प्रांत के छीछीहार शहर के एक वास्तु निर्माण स्थल में पांच रासायनिक तोपें खोद निकाली गयी। इनसे निकली मस्टर्ड गैस के 44 मजदूर शिकार हुए और इनमें से एक की मृत्यु तक हो गई। इस घटना से चीन के विभिन्न जगतों में असंतोष भड़का। चीन सरकार के बार-बार यह मामला उठाने पर जापान सरकार ने मुआवजे में 30 करोड़ जापानी येन दिये । 26 वर्षीय वांग छन इस घटना में गंभीर रूप से ग्रस्त होने वाले मजदूरों में से एक हैं। हालांकि वे जापानी पक्ष से कुछ आर्थिक मुआवज़ा पा चुके हैं, फिर भी भविष्य के प्रति निराश हैं। उन के अनुसार, जहरीली गैस का यह नुकसान हमेशा के लिए मेरे दिल में बैठ गया है। मुझे अब भी बार-बार अस्पताल जाना पड़ रहा है।
संबंधित आंकड़ों के अनुसार, अब तक 2000 से ज्यादा बेगुनाह चीनियों को जापानी सेना द्वारा छोड़े गये रासायनिक हथियारों से नुकसान पहुंचा है। अनेक चीनी लोगों ने चिंता प्रकट की है कि पता नहीं अब भी चीन में कितने जापानी रासायनिक हथियार बाकी हैं और कब वे चीनी लोगों के लिए खतरा बन सकते हैं। वर्ष 1997 में चीन व जापान के संयुक्त राष्ट्र संघ की रासायनिक हथियार पाबंदी संधि में शामिल होते समय जापान ने संधि की संबंधित धाराओं के अनुसार, वर्ष 2007 से पहले, पूर्ण रूप से चीन में छोड़े गये रासायनिक हथियारों को नष्ट करने का बचन दिया। लेकिन, यह कार्य धीरे- धीरे चल रहा है।
रासायनिक हथियारों की शिकार सुश्री न्यू हाई ईंग आशा करती हैं कि जापान यथाशीघ्र चीन में छोड़े गये रासायनिक हथियारों का निपटारा कर सकेगा। उन के अनुसार, मुझे आशा हैं कि जापान अपने पीछे चीन में छोड़ी गयी मस्टर्ड गैस से भरी तोपों का अच्छी तरह निपटारा करेगा और आम चीनी नागरिकों के रहने के वातावरण को बेहतर बनायेगा।
|