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(GMT+08:00) 2005-08-05 09:56:11    
ऊरूमुची का एस ओ एस बाल गांव

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चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ऊरूमुची का एस ओ एस बाल गांव 29 मई 2001 को औपचारिक रूप से स्थापित किया गया है और अनाथ बच्चे स्वीकार किए जाने लगे । यह गांव चीन सरकार और अन्तरराष्ट्रीय एस ओ एस संगठन के सहयोग में चीन की मुख्यभूमि पर कायम हुए आठवां एस ओ एस गांव है और उत्तर पश्चिमी चीन में खुला प्रथम एस ओ एस गांव भी है । इस गांव में मुख्यतः 14 साल से कम उम्र वाले स्वस्थ अनाथ बच्चे स्वीकार किए जाते हैं । अब गांव में कुल 14 परिवार गठित हो चुके हैं और एक नर्सरी भी खोला गया , जिन में सिन्चांग , शेनशी , छिंगहाई , निन्शा तथा कांसू आदि पांच प्रांतों व स्वायत्त प्रदेशों से आए सौ अनाथ रहते हैं । एस ओ एस गांव में कर्मचारियों के अलावा हरेक परिवार में एक मां काम करती है । सभी कर्मचारी कड़े प्रशिक्षण पाने के बाद गांव में विभिन्न ड्युटियों पर नियुक्त हुए हैं । हरेक परिवार की मां भी चीनी एस ओ एस बाल गांव संगठन से प्रशिक्षण लेने के बाद परीक्षा में खरी उतरी सिद्ध हुई है , जो नियमित रूप से बाल गांव संगठन द्वारा आयोजित होने वाली गोष्ठियों और कार्य प्रशिक्षण में भी हिस्सा लेती हैं ।

ऊरूमुची के एस ओ एस गांव में प्रवेश करने के बाद आप को एसा लगता है , मानो आप फुलों के उद्यान में आ गए हों , गांव में लाल रंग के मकानों के बीच रंगबिरंगे फुल पौधे उगते हैं , हर मकान में एक अलग घर है , जो हरेभरे पेड़ पौधों और खूबसूरत पुष्पों की झाड़ों में बिखरे हुए खड़े नजर आते हैं ।

मधुर धुन एक घर में से सुनाई दे रही है , यह घर वेवूर जाति के एक परिवार का है , खुली मिजाज और मिलनसार वेवूर जाति की मां आमीना परिवार में आठ प्यारे प्यारे वेवूर बच्चों के साथ रहते हैं , आठ बच्चों में एक जुड़वा बच्चे भी हैं , यहां के एस ओ एस गांव के नियम के अनुसार जो अनाथ बच्चे पहले एक परिवार के सगे संबंधी हैं , वे वहां भी एक ही परिवार में दाखिला किए जाते हैं । सभी आठ बच्चे इस वेवूर परिवार की मां आमीना की आंखों के लाल हैं । सभी आठ बच्चों ने अपना अपना विशेष कला कौशल सीखे हैं , इस पर आमीना बहुक गर्व महसूस करती हैः

हमारे परिवार में तीन बच्ची और पांच बच्चे हैं , बच्चे काश्गर और बच्ची हथ्यान से आए हैं । चार बच्चे हान भाषी स्कूल में पढ़ते हैं और अन्य चार वेवूर भाषी स्कूल में । वे सभी पढ़ाई में गहरी रूचि रखते हैं और पढ़ने में एक दूसरे की मदद करते हैं । हर सप्ताहांत में वे सार्वजनिक कला भवन और बाल भवन में पढ़ने जाते हैं , कोई रेवाफ सीखता है, कोई तबला सीखता है तो कोई वाइलिन सीखता है ।

सुश्री आमीना जुलाई 2000 में एस ओ एस गांव के लिए मां आमंत्रित की जाने का ज्ञापन पढ़ कर स्वेच्छे से वहां आयी थी , उस साल वह 23 साल की लड़की थी , जो अभी अभी विश्वविद्यालय से स्नातक हुई थी । कड़ी परीक्षा के बाद वह एस ओ एस गांव की एक मां होने की ड्युटी के लिए चुनी गई ।

शुरूशुरू में जब आठ बच्चे उसे मां कह कर संबोधित करते थे , उसे काफी लज्जा हुई थी , साथ ही नौ सदस्यों का एक घर संभालना भी उस के लिए कोई आसान काम नहीं था , लेकिन प्यारे मासूम बच्चों की निगाह देख कर उसे तुरंत अपना कर्तव्य बहुत अहम मसहूस हुआ था और उस ने इन अनाथ बच्चों की अच्छी तरह देखभाल करने की ठान ली ।

उस साल ,चार साल के जुड़वा बच्चे एशान्चांग और युशान्चांग आए , कुपोषण के कारण वे दोनों दुबले पतले थे और कद में नाटा भी थे । लेकिन इन सालों में आमीना की बारीकी देखभाल से वे दोनों बच्चे बहुत तंदुरूस्त पले बढ़े हैं । एशान्चांन का कहना हैः

पहले मेरी पढ़ाई का अंक अच्छा नहीं था , अब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ने लगा हूं और अच्छे अच्छे अंक लेता हूं । अध्यापक मेरी तारीफ करते हैं , मैं चीनी बाल पायोनियर दस्ते का सदस्य भी बन गया , मैं अत्यन्त खुश हूं और मेरी मां भी बहुत ही खुश हैं ।

अपनी निस्वार्थ सेवा से आमीना को बच्चों का असीम प्यार मिला । एक बार वह बीमार पड़ी , जुड़वा भाई स्कूल के बाद तुरंत घर लौट कर उस की देखरेख में लग गए । दोनों ने उस के लिए गर्म गर्म खाना भी बना कर खिलाया , बच्चों के सच्चे प्यार से आमीना इतना प्रभावित हुई थी कि उस ने दोनों को गोद में कस कर ले लिया ।

एस ओ एस गांव की सभी मां आमीना की भांति अपने बच्चों को गहन रूप से प्यार करती हैं , नियम के अनुसार एस ओ एस गांव में काम करने के दौरान अविवाहित महिलाओं को शादी ब्याह की अनुमति नहीं होती है , फिर भी वे अपने इस काम से खुश रहती हैं । वांग शोहुंङ नाम की एक दूसरी मां कहती हैः

मैं स्वाभाव में इस काम को प्यार करती हूं , मैं परोपकारी का काम हमेशा से पसंद करती हूं और एक प्रेम से भरी भावना के साथ बच्चों को एक नया घर प्रदान करने की कोशिश करती हूं ।

अनाथ बच्चे अपने मां बाप से वंचित तो हुए थे , पर एस ओ एस गांव में उन्हें नया पारिवारिक जीवन का प्यार और स्नेह मिला है । समाज के विभिन्न तबकों की तवज्जह और मदद से ये अनाथ बच्चे अब स्वस्थ रूप से परवान चढ़ रहे हैं , उन में से बहुत लोगों ने गायन व वादन कला सीखी है , पेशेवर शिक्षक उन्हें निर्देशन करते हैं , वे एक बाल बैंड के रूप से कार्यक्रम पेश कर सकते हैं ।

सात साल की बच्ची ल्ये हुंङयन द्वारा बजायी गई प्राचीन चीनी साज की एक धुन बहुत सुन्दर है । स्नेहपूर्ण एस ओ एस गांव में सभी बच्चे खुशी से रहते हैं , वेवूर जाति की लड़की वुलिमाती गुल बड़ी होने पर एक डाक्टर बनना चाहती हैः

मां की देखभाल में हम सुखमय जीवन बिताते हैं और गांव के चाचा दादा भी हमारा हमेशा ख्याल रखते हैं , हर जगह हमें दूसरों की मदद मिल सकती है । बड़ी होने पर एक डाक्टर बनना चाहती हूं , जो लोग गरीब हो और बीमारी के इलाज के लिए पैसा नहीं हो , तो मैं उन की मदद करना चाहूंगी ।

एस ओ एस गांव से विदा होने के समय कान में बच्चों द्वारा बजायी गई मधुर धुन सुनाई देने लगी , इस खुशगवार धुन से उन का प्रसन्न आनंद व्यक्त हुआ ।