चित्रकला में जुटे वांग क्वो शङ को अन्य चित्रकारों की तरह बहुत उल्लेखनीय उपलब्धि तो हासिल नहीं हुई, लेकिन वे पिछले कई दशकों से जिस लगन से चित्र बनाते आ रहे हैं उससे यही कहा जा सकता है कि चित्रकला ही उन का जीवन है।
51 वर्षीय वांग क्वो शङ राजधानी पेइचिंग की दूर संचार प्रबंधन संस्था के एक साधारण कर्मचारी हैं। अपने साथियों की आंखों में वे ऐसे असाधारण व्यक्ति है, जो तीस वर्षों से भी ज्यादा समय से चित्र खींचते हुए चित्रकला के दीवाने बन गए हैं।
उत्तरी चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश में जन्मे वांगक्वो शङ बचपन में ही अपने माता-पिता के साथ राजधानी पेइचिंग आकर बस गये थे। लेकिन भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के विशाल घास मैदान और जातीय रीति-रिवाज़ की उन्हें हमेशा गहरी याद रही। पेइचिंग में एक बार नन्हे वांग क्वो शङ एक पड़ोसी के घर गये और वहां एक किबाब देखी जो चीन के मशहूर चित्रकारों की कृतियों का संग्रह थी। इस संग्रह के सुन्दर चित्रों ने नन्हे वांग क्वो शङ को बहुत आकृष्ट किया। इसके बाद उन्होंने प्राचीन चीन के मशहूर चित्रकार फ़ान ख्वान की रचना "शी शान पहाड़ का दृश्य" देखी जो उन्हें इतनी पसंद आयी कि वे चित्र खींचने लगे। इस की चर्चा में श्री वांग क्वो शङ ने कहा
"फ़ान ख्वान के इस चित्र का दृश्य मेरे जन्मस्थान की तरह का था। इसके हरे पहाड़ और स्वच्छ पानी ने मुझे आकृष्ट किया। इस चित्र को देख कर मैं भी चित्र खींचने लगा। वास्तव में 15 वर्ष की उम्र से ही मैं चित्रों की दुनिया में डूबा हुआ हूं।"
वांग क्वो शङ को चित्र खींचने का शौक लगा, लेकिन उनके माता-पिता चाहते थे कि वे कोई कनीकी काम सीखें, इसलिए उन्होंने वांग क्वो शङ के चित्र खींचने का विरोध किया। ऐसे में वांग क्वो शङ दिन में नहीं, रात को टॉर्च की रोशनी में चुपके-चुपके से चित्र खींचने लगे। इसे देखकर उन के माता-पिता बड़े प्रभावित हुए और उन्हें चित्रकला सीखने की मंजूरी दे दी। वह समय चीन में सांस्कृतिक आंदोलन का समय था। इस उथल-पुथल के दौर में कलाकारों के साथ बुरा व्यवहार हो रहा था। इसलिए किसी भी चित्रकार की शिष्यों को पढ़ाने की इच्छा नहीं थी। इससे वांग क्वो शङ की चित्रकला सीखने की इच्छा भी नष्ट हो गयी,लेकिन वे कोशिश करते रहे। अवकाश के समय वे अपने आप अभ्यास करते थे। इस तरह पांच साल बीत गये और वांग क्वो शङ अन्य युवाओं की तरह नौकरी करने लगे।
युवा वांग क्वो शङ के कई रंगीन स्वप्न थे। वे चित्रकार, कवि या लेखक बनना चाहते थे। अवकाश के समय वे चित्र खींचने के अलावा पुस्तक पढ़ते या कुछ लिखते थे। अस तरह का जीवन बिताते हुए उन की उम्र 35 हो गई तो उन्हें लगा कि उन्हें कवि या लेखक बनने का स्वप्न छोड़ देना चाहिए और सिर्फ़ चित्र खींचने में लगन लगानी चाहिए। इस उम्र में उनका किसी व्यावसायिक संस्थान में प्रवेश करना भी असंभव था। फिर उन की शादी भी हो चुकी थी और बच्चों के कारण वे नौकरी भी नहीं छोड़ सकते थे। इस तरह वे अवकाश के पूरे समय चित्रकला सीखने लगे। वे भारी कोशिश करते। अगर एक चित्र अच्छा न लगता, तो उसे फाड़कर फिर से खींचते। इस समय उन के दिमाग में प्राचीन समय के मशहूर विचारक लाओ ज़ी और श्वुन ज़ी का विचार रहता था। इस की चर्चा में श्री वांग क्वो शङ ने कहा
"लाओ ज़ी को पढ़ने के बाद मैं ने ज्यादा सीखा। उनका कहना है कोई भी काम पूरा होने का एक समय होता है। किसी भी काम में अंत तक डटे रहना चाहिए। इससे मुझे लगा कि मुझे चित्रकला की जानकारी नहीं थी पर मैंने चित्र खींचना पसंद किया और निरंतर चित्र खींच कर मैं अच्छे चित्र खींच सकता हूं। तभी मुझे लगा कि सारी कठिनाइयों को दूर कर आगे बढ़ा जा सकता है।"
वर्ष 1996 में वांग क्वो शङ ने अपनी विशेष शैली का चित्र "गाय व चरवाहा" खींचा , जिस में गाय व चरवाहे का जीवन दर्शाया गया था। चीनी कला के इतिहास में गाय को मुख्य विषय बनाकर चित्र खींचना बहुत साधारण बात रही है। सुप्रसिद्ध चीनी चित्रकार ली ख रान के गाय संबंधी चित्र बहुत मशहूर हैं। उनके जैसे मशहूर चित्रकार से बेहतर चित्र खींचना मुश्किल है। पर वांग क्वो शङ ने कई सालों के अभ्यास व कोशिश से सरल लकीरों से एक प्यारी सी गाय को काग़ज़ पर उकेरा। उन का यह चित्र बालदृष्टि लिये है और इसे देख कर दर्शक स्वयं को प्रकृति के निकट महसूस करते हैं।
वांग क्वो शङ का गाय व चरवाहे का इस चित्र ने अनेक प्रदर्शनियों में दर्शकों की वाहवाही लूटी। इसने उन्हें बहुत प्रेरित किया। अब अपने काम में व्यस्त रहने के कारण वे अवकाश के समय पहले की तरह चित्र खींचने में असमर्थ थे, लेकिन चित्र खींचना छोड़ना भी नहीं चाहते थे। इस तरह कभी-कभार चित्र खींचते हुए पांच वर्ष बाद उन्होंने पहाड़ों के 3600 लघुचित्र बनाये। इन चित्रों की लम्बाई 40 सेंटीमीटर से कम थी, और चौड़ाई थी 30 सेंटीमीटर। इन चित्रों को खींचने का विचार उनके मन में चीन की प्राचीन कविताओं से आया। स्वच्छंद ढंग से खींचे गये इन चित्रों को आश्चर्यजनक सफलता हासिल हुई। इन का व्यावसायिक चित्रकारों ने भारी मूल्यांकन किया।
वांग क्वो शङ इन चित्रों को "चरवाहे के चित्र" और हाथ जितने चित्र"कहते हैं जो इधर के सालों की उन की कोशिश का परिणाम हैं और उन के कलापथ का आधार भी। श्री वांग क्वो शङ ने कहा
"हाथ जितने बड़े चित्रों की सफलता ने मुझे भारी प्रेरित किया। मुझे लगा है कि मेरी अपनी शैली इन चित्रों में जाहिर हुई है। 35 वर्षों तक चित्र खींचने के बाद हुए मुझे लगा कि ये 3600 चित्र मेरे एक अभियान की नींव हैं।"
इन चित्रों ने वांगक्वो शङ का आत्मविश्वास जगाया। उन्होंने कहा कि उनके लिए चित्र खींचने में सब से महत्वूर्ण बात काम पर डटे रहना है। उन के विचार में सफलता चाहने वाले को अपने आप आगे बढ़ना चाहिए। इधर वांग क्वो शङ की पांच सौ बड़े चित्र खींचने की इच्छा है। उन्होंने कहा कि वे चित्र खींचने को अपने जीवन से अलग नहीं कर सकते। उन के जीवन का इससे घनिष्ठ संबंध है। बेहतर चित्र खींचने के लिए वांग क्वो शङ ने समय से पूर्व नौकरी से अवकाश ले लिया है। उन के अनुसार उन के जीवन में चित्र खींचना किसी छोटी पहाड़ी नदी के बहाव जैसा है जो कभी नहीं टूटता। उन्होंने कहा
"मैं ने कभी एक कविता लिखी थी, जो इस प्रकार है। पहाड़ों में है एक छोटी सी नदी, कलकल करती आगे बहती है, नहीं रुकती कभी। रास्ता हो कितनी भी दूर, या हो मुश्किल , बहती है समुद्र तक। मुझे लगता है कि मुझे भी इस छोटी नदी की तरह आगे बढ़ते रहना चाहिए, जो सारी मुश्किलों को पार कर अंत में समुद्र की गोद में जा समाती है।"
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