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(GMT+08:00) 2005-07-27 18:41:53    
चन ह की महान समुद्रयात्राओं की जहाज़

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ईसा 15वीं शताब्दी में चीन की जहाज निर्माण तकनीक विश्व की चोटी पर स्थित रही । तब महान समुद्रयात्री चन ह के नेतृत्व वाले 260 जहाज़ों से गठित काफिले ने सात बार दक्षिण और पश्चिम की ओर के सागर का दौरा किया । चन ह और उन के सहपाठियों ने एशिया व अफ्रीका के 30 से अधिक देशों का दौरा किया । ऐतिहासिक सामग्री के अनुसार चन ह के काफ़िले के सबसे बड़े जहाज़ की लंबाई लगभग सौ मीटर अधिक रही । इस जहाज पर नौ मस्तूल थे। इस का निर्माण तत्कालीन नानकिंग शहर के एक कारखाने ने किया था। इस का टनभार चौदह हज़ार टन था और ढुलाई की क्षमता सात हजार टन थी, जो तत्कालीन विश्व में अग्रणी थी। चन ह की समुद्रयात्रा ने जाहिर किया कि पंद्रहवीं शताब्दी में चीन की जहाज़रानी और जहाज़ निर्माण की तकनीक विश्व में अग्रणी थी और यूरोप की भौगौलिक खोज से पूरी एक शताब्दी आगे थी।लेकिन चीन बहुत जल्द समुद्रयात्रा की ताकत खो बैठा था। इस के बाद फिर चीन ने बड़ी समुद्रयात्रा व व्यापार नहीं किया। चन ह का काफ़िला बीस से तीस हज़ार कमांडरों व सिपाहियों और करीब एक सौ जहाज़ों से बना था। यात्रा बहुत लंबी होती थी। हर बार आने-जाने में 2 से 3 वर्षों का समय लगता था और तो और भारी संख्या में लोग हताहत भी होते थे। सूत्रों के अनुसार मिंग वंश के युंगलह काल में यात्रा के लिए आवश्यक करीब दो हजार जहाज़ों का नव निर्माण या पुनर्निर्माण हुआ। मिंग राजवंश के शुरू में चीन ने जहाज़रानी के अपने इतिहास के अभूतपूर्व शानदार काल में प्रवेश किया। चन ह ने तत्कालीन विश्व के सर्वाधिक बड़े जहाज से तब पश्चिमी सागर के नाम से जाने वाले कारिमानतान द्वीप के पश्चिमी सागरीय क्षेत्र का अभियान किया था। इस के चलते चीन और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के बीच घनिष्ठ राजनीतिक, राजनयिक व व्यापारिक संबंध कायम हुए और उन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान आज तक बरकरार है। प्राचीन चीन के मिंग राजवंश के राजा मिंग छनज़ू के देहांत के बाद स्थिति बदली और समुद्रयात्रा की कार्यवाही पर राजकीय संपदा की फ़िजूलखर्ची की निंदा की गई। चीनी समुद्रयात्रा का कार्य इस तरह तेज़ी से ढलता गया। चन ह के पूर्वज मध्य एशिया में रहते थे और ह्वे जाति के थे। बाद में वे दक्षिण-पश्चिमी चीन के युननान प्रांत में जा बसे। चन ह ने बाद में यानवांग राजा चूती की रहनुमाई की । यानवांग चूती ने चन ह को उच्चस्तरीय पद पर नियुक्त किया। मिंग राजवंश के यूंग ल काल में चन ह बौद्ध धर्म के अनुयायी बने। इस तरह उनका उप नाम सानपओ पड़ा। प्राचीन चीन के मिन वंश के राजा छनज़ू ने दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के साथ संपर्क बढ़ाने और मिन वंश की ताकत के प्रदर्शन के लिए चन ह को दूत के रूप में नियुक्त कर बड़े पैमाने पर समुद्रयात्रा शुरू कराई। चन ह ने सात बार और अठाइस वर्षों का समय लगाकर आज के कारिमानतान द्वीप के पश्चिमी सागर की यात्रा की। चन ह का काफ़िला जहां-जहां गया वहां के देशों के साथ उसने मैत्रीपूर्ण संबंध कायम किये। प्रथम समुद्रयात्रा के दौरान यह काफिला सूमनदाला बंदरगाह पहुंचा और उसने वहां लूटमार मचाने आए स्थानीय प्रवासी चीनियों के नेता छन ज़ू ई को पराजित किया। बाद में इसे नानकिंग शहर में मौत की सज़ा दी गई। तीसरी समुद्रयात्रा में फिर लूट मार करने आए लंका के राजा को पराजित किया गया, जिन्हें बाद में नानकिंग शहर में हिरासत में रखा गया। मिंग वंश के राजा छनज़ू ने लंका के राजा के रिश्तेदार को राजा नियुक्त किया। बाद में लंका और मिन वंश के बीच काफ़ी मैत्रीपूर्ण संबंध कायम हुए। वहां के व्यापारी चीन में व्यापार करने आने लगे। प्राचीन चीन के मिंग राजवंश के शासक वर्ग ने चन ह की समुद्रयात्रा से चीनी समुद्रयात्रा के कार्य के विकास के आधार पर समुद्रयात्रा के कार्य का विकास नहीं किया, इस के उल्टे चन ह की समुद्रयात्रा की कार्यवाही बंद कर दी, यात्रा के लिए बड़े जहाज़ों के निर्माण को समाप्त कर दिया तथा समुद्रयात्रा की मनाही की कड़ी नीति अपनाई। चीनी जहाज़रानी का जीर्ण-शीर्ण होने लगी। चीन के फ़ूचन प्रांत के श्यामन विश्वविद्यालय के दक्षिणी समुद्र अनुसंधान प्रतिष्ठान के प्रोफ़ेसर ली चनमिन ने कहा कि चन ह की समुद्रयात्रा के अंत होने का मुख्य कारण यह रहा कि जहाज़रानी पर सामंती सम्राट नियंत्रण करने लगे। चन ह के नेतृत्व वाले काफ़िले में बड़ी संख्या में कमांडरों व सिपाहियों के होने से भारी खर्च आता था। हर बार यात्रा के लिए उपहार देने के लिए भी बहुत बड़ा खर्च करना पड़ता था। मिंग राजवंश में खज़ाने का अभाव था और आर्थिक विकास के नियम का उल्लंघन करने वाला व्यापार चलाना मुश्किल था। इस के अतिरिक्त राजनीतिक उद्देश्य पाने के बाद समुद्रयात्रा का महत्व कम हो गया था। मिंग राजवंश की शुरुआत में समुद्री डाकुओं की कार्यवाही बहुत उद्दंड थी, चन ह की समुद्रयात्रा का उद्देश्य जलमार्ग खोलना व समुद्री डाकुओं को नष्ट करना था। फिर मिंग राजवंश के शासकों ने समुद्री व्यापार पर एकाधिकार कर लिया और निजी व्यापार का गला घोंट डाला। निजी समुद्री व्यापार की कड़ी मनाही कर दी गई। निजी समुद्री व्यापार करने वालों को मृत्यु दंड दिया जाने लगा। मिंग वंश की आर्थिक शक्ति मिंग वंश के राजा इन चुगं के बाद दिन प्रति दिन कमज़ोर होने लगी। देश में भूमि के विलय के कारण ग्रामीणों ने भूमि छोड़ कर व्यापार करना शुरू कर दिया। उन्हें शासक समुद्री डाकू के नाम से बुलाते थे। इस से सामंती शासकों की आय पर ही नहीं, राजनीति पर भी असर पड़ा। इस तरह मिंग वंश के शासकों ने समुद्रयात्रा की मनाही की कड़ी नीति अपनाई। मिंग वंश की समुद्री रक्षा नीति व नौसेना के कमज़ोर होने के कारण चन ह की समुद्रयात्रा के कार्य का निरंतर विकास नहीं हो पाया।