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(GMT+08:00) 2005-07-25 11:25:32    
जातीय नृत्यकार यांग ली फिंग की कहानी

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चीनी अल्पसंख्यक जाति पाई जाति के प्रसिद्ध नृत्यकार के रूप में यांग ली फिंग अपनी सुन्दर नृत्यकला से प्रकृति व जीवन का वर्णन करती हैं और मानव जाति का प्राकृतिक सौंदर्य दिखाती हैं ।

उन का जन्म वर्ष 1958 में दक्षिण चीन के युन नान प्रांत के ता ली शहर के एक पाई जाति के परिवार में हुआ । युन नान प्रांत चीन का अल्पसंख्यक जाति बहुल क्षेत्र है, यहां की अल्पसंख्यक जातियों की संख्या चीन में सब से ज्यादा है । चीनी अल्पसंख्या जातियां बहुधा गाने नाचने में निपुण हैं , वे गाने नाचने से अपनी भावना को अभिव्यक्त करना पसंद करते हैं । ऐसे वातावरण में पली बढ़ी यांग ली फिंग को बालावलस्था में ही नृत्यगान में गाढ़ा मोह आया, वे नृत्य की दुनिया में आनंद लेती है और अपने भाव का उद्गार करती हैं । वर्ष 1981 में यांग ली फिंग को चीनी केंद्रीय जातीय नृत्य गान मंडली में चुना गया ।

चीनी केंद्रीय जातीय नृत्य गान मंडली में नए आए सदस्यों को कड़ाई से बेले नृत्य की शारिरिक ट्रेनिंग दी जाती है । यांग ली फिंग को भी ऐसी कड़ी ट्रनिंग लेना पड़ती थी । लेकिन बेले नृत्य की शारिरिक ट्रनिंग से यांग ली फिंग को बहुत रूखा और भारी लगती थी , उन्हें अनुभव हुआ था कि उन के शारीरिक अंग भी कड़े हो गए और शरीर में निहित स्वतंत्र भावना लुप्त हुई । उन्हें लगा कि नृत्य की प्रतिभा अपने से और दूर दूर भाग गयी , लगता था कि वह फिर मोर राजकुमारी के रूप में नहीं नाच सकती हो । ऐसी स्थिति पर गौर कर यांग ली फिंग ने एक आश्चर्यजनक विकल्प किया कि वे चीनी केंद्रीय जातीय नृत्य गान मंडली में प्रबंधित बेले नृत्य की ट्रेनिंग में भाग नहीं लेंगी । उन का यह विकल्प तत्कालीन चीनी नृत्य जगत के लिए निश्चय ही एक भारी चुनौती मानी जाती थी और उन की इस प्रकार की विद्रोही भावना दूसरे लोगों की समझ में नहीं भी आती थी ।

इस के बाद जब कभी कला मंडली के अन्य कलाकार शारिरिक ट्रेनिंग करते थे, तो यांग ली फिंग चिड़िया घर में जा कर मोर के जीवन का जायजा व सर्वेक्षण करती थी , उन्होंने मोर की विभिन्न हरकतों पर गौर करती थी और विवेचन करती थी । यांग ली फिंग को लगता है कि मोर के अंगविक्षेपों का प्रदर्शन करना नृत्य कला के सब से सुन्दर विष्यों में से एक है । लम्बे समय तक मोर का जायजा करने के बाद यांग ली फिंग ने वर्ष 1986 में स्वरचित एकल नृत्य "मोर की आत्मा" को कला मंच पर लाया । उन के इकछरे कोमल शरीर और लम्बी पतली ऊंगलियों के भंगामे से मोर का अनुठा कलात्मक इमेज भरपूर सुक्ष्म और जीता जागता सा दिखाया गया । "मोर की आत्मा" नृत्य रचना को उसी वर्ष में आयोजित दूसरी राष्ट्रीय नृत्य प्रतियोगिता में सब से श्रेष्ठ रचना चुनी गई । यांग ली फिंग ने इसी नृत्य से इस प्रतियोगिता में एक सृजन तथा दो कला प्रदर्शन के प्रथम पुरस्कार जीते और तभी से चीन के विभिन्न टीवी चैलनों में अकसर उन का नृत्य कार्यक्रम दिखाई देने लगा और वह चीन का एक चमकदार नृत्य सितारा बन गई ।

मोर की आत्मा के बाद उन्हों ने पुत्री का प्रदेश , वर्षा तथा दो वृक्ष कार्यक्रम बनाये , जिन्हें भी व्यापक सराहना प्राप्त हुई । वर्ष 1992 में यांग ली फिंग ने क्रमशः फिलिपीन्स , सिन्गापुर , रूस , अमरीका , कनाडा और जापान आदि देशों और क्षेत्रों में अपनी विशेष सभा आयोजित की थी , वर्ष 1997 में जापान के ओसाका अन्तरराष्ट्रीय कला आदान प्रदान केन्द्र ने उन्हें सर्वोच्च कला पुरस्कार प्रदान किया तथा फिलिपीन्स

के राष्ट्रीय नृत्य संघ ने उन्हें आजीवन सदस्य बना कर सम्मानित किया।

यांग ली फिंग की नृत्य शैली बहुत विशेष और अनुठी है । उन की नृत्य कला में आम तौर पर प्रकृति और जीवन की सुन्दरता व सचाई की गहन अभिव्यक्ति होती है। यांग ली फिंग अपने शरीरिक अंगों के भंगामे के जरिए मानव जाति के सुन्दर सपनों को अभिव्यक्त करने की कोशिश करती हैं । उन के नृत्य को देखने वाले लोग आम तौर पर संसार से ऊपर उठ कर एक अलौकिक सुन्दर दृश्यों में प्रविष्ट हो कर स्वभाविक रूप से उन की प्रस्तुति से प्रभावित हो जाते हैं । यांग ली फिंग के दीवाने दर्शक उन्हें नृत्य कला का कवि तथा नृत्य लोक का अप्सरी संबोधित कर सराहना देते हैं और दक्षिण पूर्वी एशियाई तथा यूरोपीय व अमरीकी देशों के दर्शकों ने उन्हें नृत्य की देवी बतायी है ।

यांग ली फिंग के विचार में नृत्य कला में नृत्य का सूक्ष्म प्रदर्शन सब से महत्वपूर्ण है । उन्होंने कहाः

"मोर के नृत्य में लम्बी पतली ऊंगलियों के सूक्ष्म कलात्मक प्रदर्शन से मोर के इमेज को और अच्छी तरह दिखायी जा सकती है , जो दर्शकों को विस्तृत कल्पना प्रदान करता है । कभी कभार लोग ऐसा सोचते हैं कि नृत्य का मंच और दर्शकों के बीच एक दूरी होती है, इस लिए वह नृत्य के सूक्ष्म प्रदर्शन पर गौर नहीं देता है । मेरा विचार है कि नृत्य प्रदर्शन के दौरान नृत्यकार को ऊंगली तक पर ध्यान देना चाहिए । दर्शक कलाकार की हर ऐसी छोटी सी भंगामा देखते ही नहीं , साथ ही तहेदिल से अनुभूति भी ले सकते हैं, दर्शकों की नजर और भावना बहुत ही सूक्ष्म है।"

बीस से ज्यादा वर्षों के कला जीवन में यांग ली फिंग अपने को हमेशा और उच्च स्तर की मांगपेश करती रही है । वर्ष 2004 में यांग ली फिंग द्वारा निर्देशित किए गए और खुद अपने से अभिनय किए विशाल आकार वाला नृत्य "युन नान का अनुभव" चीन में प्रदर्शित किया गया । युन नान प्रांत के पाई जाति की इस कलाकार ने नृत्य के मंच पर युन नान प्रांत के मनमोहक सुन्दर दृश्य दिखाने के साथ साथ वहां के रंगबिरंगे जातीय नृत्य भी प्रस्तुत किये, दर्शक इस कला रचना में युन नान की अनोखी रिति रिवाज़ों की सुन्दरता, इतिहास की महत्ता और उस में गर्भित दार्शिनक अनुभन को महसूस कर सकते हैं ।

वर्ष 2005 के मई माह में "युन नान का अनुभव" राजधानी पेइचिंग में प्रदर्शित किया गया । हज़ारों दर्शकों की नज़र एक बार फिर यांग ली फिंग पर खींची गई ।