चीन के प्रथम एकीकृत सामंती राजवंश छिन राजवंश की स्थापना ईसा पूर्व 221 में हुई थी । लेकिन चीन के एकीकरण के बाद छिन राजवंश के सम्राट छिन शहुंग बेहद तनाशाही , निरंकुश और अहंकार से भरे निकले । अपने सुखभोग के लिए छिन शहुंग ने बेशुमार धन दौलत का खर्च कर आलीशान राजमल और मकबरा बनवाया और हुण के आक्रमण को रोकने के लिए लम्बी दीवार का निर्माण करवाया । छिन राजवंश के शासक प्रजा का बेरहमी के साथ शोषण अत्याचार करते थे , जिस से प्रजा में उस के विरूद्ध लगातार विद्रोह भड़क उठा । इसतरह 15 सालों के बाद ही छिन राजवंश का तख्ता उलट कर दिया गया और राज्य सत्ता छीनने के लिए उसम मुख्यतः दो शक्तिशाली सेनाएं रह गईं , एक सेना प्राचीन चीन के मशहूर राजा श्यांगयु की थी और दूसरी सेना उपरांत के हान राजवंश के संस्थापक ल्यूबांग की थी ।
दोनों सेनाओं के बीच राज्य सत्ता छीनने के लिए भीषण युद्ध चले । शुरू शुरू में श्यांगयु की सेना बहुत सशक्त थी , राजा श्यांगयु एक वीर बहादूर युद्धा था , लेकिन वह बहुत घमंडी और तानाशाही भी था । जब की ल्युबांग शुरू में एक छोटे पद का अधिकारी था , वह स्वभाव में चालाक था , पर वह दूसरे लोगों को अपने उद्देश्य के लिए वशीभूत करने में कुशल था । पहले छिन राजवंश का तख्ता पलटने के संघर्ष में दोनों सेनाओं के बीच गठबंधन कायम हुआ था । किन्तु छिन राजवंश को खत्म किया जाने के बाद दोनों एक दूसरे का दुश्मन हो गए।
ईसापूर्व 207 में श्यांगयु की सेना ने च्युलू नाम के स्थान पर छिन राजवंश की प्रमुख सेना को परास्त कर दिया , जबकि ल्यूबांग की सेना ने भी छिन राजवंश की राजधानी स्यानयांग पर कब्जा किया । स्यानयांग पर कब्जा के बाद ल्यूबांग ने अपने सलाहकार की सलाह के अनुसर शहर के निकट बाशान पर सेना को तैनात किया और स्यानयांग शहर में प्रवेश नहीं करने दिया । उस ने छिन राजवंश के राजमहल और खजाने को सील करने का आदेश दिया और प्रजा को सांत्वना देने का काम किया , जिस से प्रजा शांत और खुश हो गई और उन की आशा थी कि ल्यूबांग छिन का राजा बनेगा ।
श्यांगयु को जब पता कि ल्यूबांग अपने से पहले स्यानयांग शहर में प्रवेश कर गया , तो उसे अत्यन्त आक्रोश आया । वह चार लाख सैनिकों की विशाल सेना ले कर स्यानयांग शहर के निकट होंगमन नाम के स्थान पर तैनात हो गए और बल प्रयोग से स्यानयांग शहर को छीनने के लिए तैयार हो गया । श्यांगयु के सैन्य सलाहकार फानजङ ने श्यांगयु को इस मौके पर ल्यूबांग का विनाश करने की सलाह दी , उस ने कहा कि ल्यूबांग एक लोभी और विलासी आदमी है , लेकिन इस बार स्यानयांग पर कब्जा करने के बाद उस ने वहां से एक पैसा नहीं लिया और एक सुन्दरी भी नहीं चाही , इस से जाहिर है कि वे अब बड़ा महाकांक्षी बन गया है । उस के ज्यादा विकसित नहीं होने की स्थिति में उसे खत्म करना चाहिए ।
खबर ल्यूबांग तक पहुंची , उस के सलाहकार च्यांग ल्यांग ने सलाह दी कि अब ल्यूबांग की सेना में सिर्फ एक लाख सैनिक हैं , उस की शक्ति श्यांगयु से बहुत कमजोर है , इसलिए उस के लिए श्यांगयु से साधा मोर्चा लेना उचित नहीं है । च्यांगल्यांग ने अपने मित्र , श्यांगयु के ताऊ श्यांगपो से मदद मांगी । श्यांगयु ने होंगमन पर ल्यूबांग को एक दावत देने के लिए बुलाया और उसे मार डालने की साजिश रची । दावत में ल्यूबांग के साथ उस के सलाहकार च्यांगल्यांग और जनरल फानक्वो थे । दावत के दौरान ल्यूबांग ने श्यांगयु को विनम्र से बताया कि छिन राजवंश की राजधानी स्यांगयांग पर कब्जा करने के बाद वह महज शहर पर पहरी दे रहा है और श्यांगयु के छिन का राजा बनने की प्रतीक्षा में है । श्यांगयु को ल्यूबांग की बातों की धोखे में आया और उस के साथ अच्छा बर्ताव करने लगा । दावत के दौरान श्यांगयु के सैन्य सलाहकार फानजङ ने कई बार श्यांगयु को इशारा दे दे कर उसे ल्यूबांग को मार डालने का गोपनीय संकेत दिया , लेकिन श्यांगयु ने नहीं देख पाने का स्वांग किया । लाचार हो कर फानजङ ने श्यांगयु के एक जनरल श्यांगज्वांग को दावत में बुला कर तलवार की कला दिखाने की आड़ में ल्यूबांग को मार डालने का प्रबंध किया । इस नाजुक घड़ी में श्यांगयु के ताऊ , च्यांगल्यांग के मित्र श्यांगपो ने भी आगे आ कर तलवार की कला दिखाने के बहाने अपने शरीर से श्यांगपो के वार को रोकने की कोशिश की , जिस से श्यांगपो को ल्यूबांग को मारने का मौका हाथ नहीं लगा । खतरनाक स्थिति में च्यांगल्यांग ने तुरंत ल्यूबांग के जनरल फानक्वो को मदद के लिए बुलाया । फानक्वो ने तलवार और ढाल उठा कर दावत में घुस कर बड़े गुस्से में श्यांगयु की भर्त्साना करते हुए कहा कि ल्यूबांग ने स्यानयांग शहर पर कब्जा कर लिया है , पर उस ने अपने को छिन का राजा नहीं घोषित किया और महाराजा आप के आने की राह देखने में रहा , इस प्रकार के योगदान के लिए आप ने उसे इनाम तो नहीं दिया, फिर दुष्टों की बातों में आकर उसे मार जालने की सोची । यह क्या अन्याय है।
फानक्वो की भर्त्सना से श्यांगयु को बड़ी शर्मा आयी । इस मौके से लाभ उठाकर ल्यूबांग ने शोचालय जान के बहाने भाग कर अपनी सेना के शिविर स्थल बाशान लौटा । उधर श्यांगयु के सलाहकार फानजङ ने जब देखा कि श्यांगयु ने इतनी दयालु और नरम हृद्य का परिचय कर ल्यूबांग को भाग जाने दिया , तो बड़े गुस्से में कहा कि श्यांगयु कोई महाकांक्षी व्यक्ति नहीं है , इंतजार रहो कि जरूर ल्यूबांग पूरे देश पर कब्जा करेगा ।
होंगमन स्थान पर हुई दावत की यह कहानी चीन के इतिहास में बहुत मशहूर है । श्यांगयु को अपनी सेना के शक्तिशाली होने पर घमंड आकर ल्यूबांग पर विश्वास किया और उसे जिन्दा भागने पर छोड़ा । आगे उस ने अपने को पश्चिमी छु का राजा घोषित किया , जिस का स्थान सम्राट के बराबर था । उस ने ल्युबांग को हान राजा नियुक्त किया , जो स्थानीय राजा के तूल्य था । अपनी शक्ति को सुरक्षित रखने के लिए ल्यूबांग ने प्रकट में श्यांगयु का शासक स्थान मान लिया । लेकिन गुप्त रूप में वह विभिन्न प्रतिभाशाली लोगों को अपने पक्ष में ला खड़ा करने तथा अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। अंत में ल्यूबांग की शक्ति श्यांगयु से भी प्रबल निकली और दोनों में चार सालों तक युद्ध चला और ईसापूर्व 202 में ल्यूबांग की सेना ने हेशा पर श्यांगयु की सेना को घेर कर खत्म कर दिया । श्यांगयु ने आत्महत्या की और ल्यूबांग ने चीन के हान राजवंश की स्थापना कर अपने को सम्राट घोषित किया , इस तरह चीन के इतिहास में हान राजवंश का काल आरंभ हो गया ।
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