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(GMT+08:00) 2005-07-20 11:24:51    
चीन में अध्यापकों के प्रशिक्षण पर जोर दिया जा रहा है

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इधर के वर्षों में बुनियादी शिक्षा के स्तर को उन्नत करने के लिए चीनी शिक्षा प्रबंध विभागों ने प्राइमरी व मिडिल स्कूलों के अध्यापकों के प्रशिक्षण पर जोर देना शुरू किया है। हर पांचवें साल चीन के प्राइमरी व मिडिल स्कूलों के अध्यापकों का ऐसा प्रशिक्षण लेना पड़ता है, ताकि उनके अध्यापन की गुणवत्ता उन्नत हो सके। आधुनिक समाज के बहुत तेज़ी से विकसित होने के कारण अध्यापकों से अधिक गुणवत्ता की अपेक्षा की जाने लगी है। अध्यापकों के लिए कालेज में प्राप्त जानकारी के सहारे जिंदगी भर काम करना मुश्किल है। फिर प्राइमरी और मिडिल स्कूल किसी देश की शिक्षा के आधार होते हैं, इसलिए इन स्कूलों के अध्यापकों को प्रशिक्षण दिये जाने का भारी महत्व है। चीनी शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी श्री थांग चींगवेई के अनुसार, हमने इधर यही महसूसा है कि शिक्षा के स्तर को उन्नत करने की कुंजी अध्यापक ही हैं। इसलिए चीन सरकार प्राइमरी व मिडिल स्कूलों के अध्यापकों के प्रशिक्षण पर बहुत महत्व दे रही है। इधर चीन ने प्राइमरी व मिडिल स्कूलों के अध्यापकों के लिए सतत शिक्षा व्यवस्था लागू की है। चीन के अध्यापक कानून में निर्धारित है कि प्रशिक्षण लेना अध्यापकों का अधिकार और कर्तव्य दोनों है। चीन के सभी अध्यापकों से अपेक्षा की जाती है कि वे हर पांचवें साल 240 घंटों से अधिक की सतत शिक्षा ग्रहण करें। इस शिक्षा में नैतिकता के पाठ के अलावा व्यावसायिक प्रशिक्षण भी शामिल है। चीन में प्राइमरी व मिडिल स्कूलों के अध्यापकों की संख्या अब एक करोड़ तक जा पहुंची है। उन के प्रशिक्षण के लिए देश में छै नार्मल कालेजों के साथ सतत शिक्षा का जाल भी बिछाया गया है। प्रशिक्षण का खर्च सरकार उठाती है और प्रशिक्षण का काम टीवी, रेडियो और इंटरनेट के जरिये भी किया जाता है। इस तरह के प्रशिक्षण में ग्रामीण क्षेत्रों के अध्यापकों के प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी जाती है। मिसाल के लिए पेइचिंग शहर के उत्तरी उपनगर की मीयून काउंटी के प्राइमरी व मिडिल स्कूलों को लें, जहां कुल चार हजार अध्यापक कार्यरत हैं। पहाड़ियों में स्थित मीयून काउंटी का शिक्षा स्तर हमेशा नीचा रहा है। इस स्थिति को बदलने के लिए स्थानीय शिक्षा प्रबंध विभागों ने अध्यापकों के प्रशिक्षण पर जोर दिया। काउंटी के शिक्षा प्रबंध विभाग के एक अधिकारी के अनुसार स्थानीय सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में अध्यापकों के प्रशिक्षण पर जोर दे रही है। इस साल से मीयून के सभी प्राइमरी व मिडिल स्कूलों में पहली कक्षा से ही अंग्रेज़ी पढ़ाने की बात है। पर बहुत से स्कूलों में अंग्रेज़ी पढ़ाने वाले बढ़िया अध्यापकों का अभाव है। स्थानीय सरकार ने इसके लिए इन स्कूलों के सभी अध्यापकों के जोरदार अंग्रेज़ी प्रशिक्षण में मदद दी। ऐसे प्रशिक्षण के बाद अध्यापकों का अंग्रेज़ी का स्तर बहुत उन्नत हो गया है। श्री हान मीयून काउंटी के एक मिडिल स्कूल में बीस सालों से अंग्रेज़ी पढ़ाते आये हैं। उन के अनुसार आज समाज में अंग्रेज़ी शिक्षा की मांग लगातार बढ़ रही है। निरंतर प्रशिक्षण लिये बिना अध्यापकों के समय के बाहर होने का खतरा मौजूद है। इसलिए श्री हान हर रोज़ शिक्षा लेते हैं और हर हफ्ते काउंटी में विदेशी अध्यापकों से अंग्रेज़ी पढ़ते हैं। वे हर रोज़ दो-तीन घंटे घर में पढ़ते हैं और सप्ताहांत नवगर जाकर वहां विदेशी अध्यापक से एक घंटा अंग्रेजी सीखते हैं। उन की इन्हीं कोशिशों का परिणाम है कि उन की कक्षा के छात्रों का अंग्रेज़ी का स्तर उन्नत होने लगा है। नीचे आप पढ़ पाते हैं चीनी प्राइमरी व मिडिल स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था के बारे में कुछ जानकारियां । नयी शताब्दी में चीन सरकार ने शिक्षा रुपांतरण पर विशेष जोर दिया है । और इस कार्य में भी प्राइमरी व मिडिल स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था के सुधार को प्राथमिकता दी है । पिछली शताब्दी के अन्त तक चीन में प्राइमरी स्कूल के उम्र वाले छात्रों की स्कूलों में भरती की दर निन्यानवे प्रतिशत तक जा पहुंची थी । चीन में हरेक बच्चे के लिये नौ वर्षीय अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था लागू है , इस तरह पिछली शताब्दी के अन्त तक चीन के प्यासी प्रतिशत किशोर अनिवार्य शिक्षा पा सके । इस के बाद चीन के शिक्षा रुपांतरण कार्य का केंद्र छात्रों की गुणवता बना है। यानी, पहले स्कूलों में छात्रों द्वारा परीक्षा में प्राप्त अंकों को ज्यादा महत्व दिया जाता था , अब तो उन की वास्तविक गुणवता पर ध्यान किया जाएगा । संक्षिप्त में इसे गुणी शिक्षा कहा जा रहा है , जबकि पुरानी शिक्षा व्यवस्था परीक्षित शिक्षा कहलाती रही । गुणी शिक्षा से छात्रों की वास्तविक गुणवता व क्षमता को उन्नत करना है । परंपरागत शिक्षा व्यवस्था की तुलना इस का फर्क यह है कि छात्रों को परीक्षा में बेहतर अंक नहीं , बल्कि उन्हें ज्यादा वास्तविक क्षमता उपलब्ध कराने पर जोर देनी है । चीन की मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में अध्यापक, अपने छात्रों को परीक्षा पास करने के लिये बहुत सा गृहकार्य करने को कहते हैं , छात्र इसे लदा रहता है । ऐसी शिक्षा व्यवस्था से उन छात्रों , जो बढिया अंक प्राप्त करते हैं , की वास्तविक क्षमता आम तौर पर बेचारगी की हालत में रहती है । दूसरी ओर , अन्य छात्र , जो अच्छे अंक पाने में असमर्थ रहते हैं , की पढ़ने में रूचि भी निम्न बनी रहती है । इसलिये वर्ष दो हजार से चीनी शिक्षा मंत्रालय ने छात्रों को गुणी शिक्षा देने का आह्वान किया , इस का उद्देश्य यही है कि गृहकार्य के बोझ को कम कर छात्रों की नीहित शक्ति जगायी जाए , और आधुनिक सूचनाओं के जरिये उन की मिश्रित क्षमता उन्नत की जाए । पिछले दो सालों में चीन ने गुणी शिक्षा को अमल में लाने की सकारात्मक कोशिश की है , और इस संदर्भ में उल्लेखनीय प्रगति भी प्राप्त की । चीन की शिक्षा मंत्री सुश्री चेन ने कहा कि उन्हों ने कहा कि वर्ष दो हजार एक से चीन को गुणी शिक्षा के अपने अभियान में महत्वपूर्ण प्रगति मिलती शुरू हुई । प्राइमरी व मिडिल स्कूलों में नयी पाठ्य पुस्तकों का प्रयोग शुरू हो गया है और हाई स्कूलों में नये तरीके की कक्षाओं का अनुशीलन व परीक्षण भी शुरू हुआ है । साथ ही देश के प्राइमरी व मिडिल स्कूलों में नैतिक शिक्षा का सुधार भी शीघ्रता से आगे बढ़ा है । इधर खेल , संगीत व चित्रकला जैसी कक्षाओं का नया मापदंड और छात्रों का स्वास्थ्य मापदंड भी तैयार किया जा चुका है । चीनी शिक्षा मंत्रालय ने जो रूपरेखा पेश की है उस में देश में गुणी शिक्षा शुरू करने के लिये मौजूदा कक्षाओं, पाठ्य पुस्तकों तथा परीक्षा व्यवस्था आदि सभी का रुपांतरण किये जाने की जरूरत है । इस में पाठ्य सामग्री व परीक्षा व्यवस्था में सुधार सब से महत्वपूर्ण बताया जा रहा है । चीन गुणी शिक्षा के अपने कार्यक्रम में छात्रों की हस्तशिल्य , आविष्कार तथा खेल व कला से संबंधित क्षमता को बहुत महत्व दे रहा है । इस उद्देश्य से चीन सरकार ने गत वर्ष में प्राइमरी व मिडिल स्कूल के छात्रों के लिये दो सौ से अधिक विशेष प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना भी की है ।