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(GMT+08:00) 2005-07-19 09:51:29    
तिब्बत के च्यांगची शहर का दौरा

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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर में एक विश्वविख्यात वीरों का शहर है च्यांगजी । एक सौ वर्ष पूर्व च्यांगजी शहर में चोंग शान क्षेत्र की तिब्बती जनता ने अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए ब्रिटिश आक्रमणकारी सेना के साथ घोर संघर्ष किया था, जिस ने तिब्बती लोगों के विदेशी आक्रमण विरोधी वीर गाथा में एक अमिट अध्याय जोड़ा, तो आज के कार्यक्रम में आप हमारे साथ चले जाएं, इस वीरों का शहर--च्यांग जी देखने के लिए ।

ब्रिटिश आक्रमणकारियों के विरोध में चले तत्कालीन युद्ध के बारे में तरह तरह की भावविभोरक कहानी सुनने को मिलती हैं । ब्रिटिश सेना द्वारा छ्युमेई शिनकू पर किये गये नरसंहार की वृतांत सब से बड़ी दुखद और उल्लेखनीय है । छ्युमेई शिनकू तिब्बत की यातोंग कांउटी में स्थित है, जो तत्काल में च्यांगजी के अधीन था । ऐतिहासिक उल्लेख के अनुसार वर्ष 1904 के जनवरी के माह में ब्रिटिश सेना और तिब्बती सेना छ्युमेई शिन कू पर आमने सामने में आ गई और दोनों के बीत युद्ध छिड़ा , उसी लड़ाई में भाग लेने वाले कातुंग नामक एक बुढ़े की स्मृति वृतांत से पता चला है कि तत्कालीन तिब्बती सेना के पास महज पुरानी किस्म के बंदुक ,तलवार तथा अंडा जितना बड़ा पत्थर फेंकने में प्रयोगी तिब्बती चाबूक थे , जबकि ब्रिटिश सेना के हथियार आधुनिक और शक्तिशाली थे । लेकिन तिब्बती सैनिकों ने वीरता के साथ ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी । सेना के अभियान में बाधाओं को दूर करने के लिए ब्रिटिश सेना ने तत्कालीन तिब्बती सेना से वार्ता करने की चाल चली । 15 जनवरी को तिब्बती सेना के कमांडर ला टिंग से और लांग स लिन दाई पन आदि चार वार्ताकार ग्यारह सैनिकों के साथ ब्रिटिश सेना से वार्ता करने के लिए ब्रिटिश सेना के पास गए, लेकिन ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने बेशर्म से तिब्बती वार्ताकारों को धोखे में डाल कर यह कहा था कि वार्ता के समय दोनों पक्षों को फायरबंदी करना और मुस्तैदी ना रखना चाहिए । तिब्बती सेना ने फायरबंदी करने का आदेश दिया , लेकिन ब्रिटिश सेना ने चुपे छिपे तिब्बती सेना के मोर्चे को घेर लिया । वार्ता के दौरान एक ब्रिटिश अफ़सर ने अचानक तिब्बती वार्ताकार ला टिंग से और लांग स लिन दाई पन पर गोलियां चलायीं । इसी के बाद तिब्बती सेना के वार्ता प्रतिनिधियों और ब्रिटिश सेना की गोलीबारी चली । ब्रिटिश सैनिकों ने आधुनिक राइफल मशीनगन और तोप जैसे शक्तिशाली हथियारों से तिब्बती सैनिकों पर अंधाधुंध गोलियों की वर्षा की, जिस से सात सौ से ज्यादा तिब्बती सैनिक मारे गए, तिब्बती सेना के कमांडर ला टिंग से और अन्य वार्ताकारों ने भी अपनी जान का न्यौछार किया । दोनों पक्षों के बीच हथियार और शक्ति में असाधारण फर्क होने के कारण वास्तव में तिब्बती सैनिकों का नरसंहार किया जाने का परिणाम निकला । तिब्बती सेना की शक्ति का खात्मा करने के बाद ब्रिटिश आक्रमणकारी सेना छ्युमेई शिनकू से सीधे च्यांगजी शहर में प्रवेश कर गयी । इस की चर्चा में च्यांगजी काउंटी स्थित चोंग शान ब्रिटिश आक्रमण विरोधी युद्ध के अवशेष स्थान के संग्रहालय की कर्मचारी पासांग फ्येनतो ने कहाः

"छ्युमेई शिनकू पर वार्ता के दौरान ब्रिटिश सैनिक अफ़सर ने एकाएक तिब्बती सेना पर गोलियां चलायीं । उन्होंने तिब्बती सेना के कमांडर ला टिंग से की हत्या की ,दरअसल वह वार्ता बिलकुल एक षड़यंत्र थी । उसी समय ब्रिटिश सेना के पास आधुनिक हथियार थे, जबकि तिब्बती सेना के सभी हथियार देशी पुरानी किस्म के थे । वार्ता के दौरान ब्रिटिश सेना ने पांच सौ से ज्यादा तिब्बती सैनिकों को मार डाला, इसलिए यह वार्ता एक नरसंहार की वार्ता से बदनाम रही है ।"

छ्युमेई शिनकू का हत्याकांड की खबर से तिब्बती जनता में असीम क्रोध भड़क उठा , जिस से तिब्बती जनता और सेना में एक साथ मिल कर ब्रिटिश आक्रमणकारी सेना का जान से मुकाबला करने की आग भभक हो गई । ब्रिटिश सेना के च्यांग जी जाने के रास्ते पर आम तिब्बती नागरिक उसे आगे बढ़ने से रोकने के लिए अद्मय संघर्ष करने में जुट गए। उन्होंने ब्रिटिश सेना की रसद को आग लगा कर नष्ट कर दिया , उस के मार्च मार्ग को तबाह कर दिया और तलवार भाला और लकड़ी के डंडा उठा कर दुश्मन को रोकने में तिब्बती सेना का साथ दिया ।

वर्ष 1904 के अप्रेल माह में ब्रिटिश सेना ने च्यांग जी शहर में प्रवेश किया । इस की खबर पाकर तिब्बत के विभिन्न स्थानों के मिलिशियों ने पुनः एकजूट होकर 16 हज़ार सैनिकों वाली एक टुकड़ी गठित की । उन्होंने च्यांगजी, शिकाज़े और च्यांगजी से ल्हासा तक के मार्गों में इकट्ठे कर च्यागजी की रक्षा के लिए संघर्ष किया ।

उसी समय च्यांगजी की स्थानीय सरकार शहर के केंद्र में स्थित चोंग शान नामक एक छोटे पहाड़ पर स्थित थी और पहाड़ पर बुर्ग नुमा मकान मजबूत कर दिया गया । इस पहाड़ पर से च्यांगजी मैदान की सारी स्थिति पर नियंत्रण रखा जा सकता था । वर्ष 1904 के पांच जूलाई को ब्रिटिश सेना तीन टुकड़ियों में बंट कर तीन रास्तों से पहाड़ पर चढाई करने लगी, जिन में से एक रास्ते पर हमला बोलने वाली टुकड़ी ने च्यांग जी शहर पर कब्ज़ा किया, दूसरी दो टुकड़ियों ने चोंग शान पहाड़ पर हमला बोला । तभी पांच हज़ार तिब्बती सैनिकों ने चोंग शान पहाड़ की रक्षा के लिए किले पर दुशमनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इसी लड़ाई में भाग लेने वाले दो बुढ़ों की स्मृति वृतांत के अनुसार, ब्रिटिश सेना ने कई दिन तक चोंग शान पहाड़ को घेर लिया था , लेकिन तिब्बती सैनिकों के जबरदस्त जवाबी हमले से ब्रिटिश सेना चोंग शान पहाड़ पर कब्ज़ा नहीं कर पायी । लेकिन दिनों तक चोंग शान पहाड़ की रक्षा करने वाले तिब्बती सैनिकों के लिए पेयजल खत्म हो गया । फिर भी इस गंभीर स्थिति में तिब्बती सैनिक ब्रिडिश सेना के मुकाबले में लड़ाई पर डटे रहे और कई बार दुशमनों के प्रहार को विफल कर दिया । तीन दिन की कठोर लड़ाई के बाद ब्रिटिस सेना ने अंत में चोंग शान पहाड़ पर चढ़ कर कब्ज़ा किया, तिब्बती सैनिक पत्थरों से ब्रिटिश सेना का मुकाबला करते रहे , कोई भी पीछे नहीं हटा , लड़ाई में बहुत से तिब्बती सैनिक ब्रिटेन के युद्बबंदी बनने से बचने के लिए चोंगशान पहाड़ की चोटी से नीचे कुद पड़े और उन्हों ने अपनी जान को इस वीर भूमिको समर्पित कर दिया । चोंग शान की रक्षा लड़ाई की जानकारी देते हुए चोंग शान के अवशेष संग्रहालय की कर्मचारी पासांग फ्येन तो ने कहा

"लड़ाई का अंत च्यांग जी शहर के चोंग शान पहाड़ की रक्षक तिब्बती सेना के पराज्य से हुआ , शेष दसियों तिब्बती सैनिक पहाड़ की चोटी से नीचे कूद पड़े और उन्हों ने अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए जान का बलिदान किया था ।"

च्यांगजी जनता ने विदेशी आक्रमण विरोधी संघर्ष में अपनी वीरता की भावना का परिचय किया , उन की अपनी जन्मभूमि के प्रति गहरे प्यार और मातृभूमि की प्रादंशिक अखड़ता की रक्षा की भावना तिब्बती जनता ही नही, समूची चीनी जनता का गौरव है । वीरों का शहर च्यांगजी की वीर गाथा भी सदा के लिए चीनी लोगों की याद में बनी रहेगी ।