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(GMT+08:00) 2005-07-15 08:40:07    
विकलांगों की सेवा में जुडे हु चीपीन की कहानी

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सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में इस समय पांच लाख 50 हजार विकलांग है , जिन में से अधिकांश लोग दूरदराज गरीब क्षेत्रों में रहने वाली अल्पसंख्यक जाति के निवासी हैं । विकलांगों को जीवन में अधिक सुविधा देने के लिए सिन्चांग विकलांग संघ में कार्यरत श्री हु चीपीन ने निस्वार्थ सेवा प्रदान की और विकलांगों को सरकार और समाज की तवज्जह और सहायता दिलायी । प्रस्तुत है विकलांगों की सेवा में जुडे हु चीपीन की कहानी । इस से पहले इस कहानी के लिए रखा प्रश्न याद करें कि श्री हु चीपिन की मदद से किन दो विशेष विकलांग समूहों को सरकारी सहायता मिली है ।

श्री हु चिपीन का जन्म वर्ष 1959 में सिन्चांग के एक ह्वी जातीय परिवार में हुआ , परिवार के पांच भाई बहन में वे सब से छोटा हैं , लेकिन दुर्भाग्य से बचपन में एक बार जुकाम और बुखार आने के कारण उन का एक पैर अपाहिज हो गया और उन्हें चलने फिरने में बैसाखी का सहारा लेना पड़ा । लेकिन उन्हों ने जीवन यापन में अद्मय दृढ़ता का परिचय कर प्राइमरी और मिडिल स्कूल की शिक्षा पूरी कर ली और विश्वविद्यालय में पढ़ने का सपना संजोए रखा । इस की चर्चा में उन्हों ने कहाः

हाई स्कूल के बाद मैं विश्वविद्यालय में पढ़ने जाना चाहता था , लेकिन मेरी शारीरिक स्थिति के कारण यह सपना पूरा नहीं हो पाया । बाद में मैं ने व्यस्क शिक्षा की परीक्षा पास कर सिन्चांग वित्त कालेज में दाखिला पाया और लेखा जोखा की शिक्षा ली ।

वर्ष 1986 में श्री हु चिपीन पढ़ाई के श्रेष्ठ अंकों के साथ सिन्चांग वित्त कालेज से स्नातक हुए और एक पेशेवर एकांउटर बने । उन्हों ने अपने के लिए यह लक्ष्य रखा है कि अपनी प्रतिभा के बल पर समाज की अच्छी तरह सेवा करें ।

वर्ष 1994 के अप्रैल में श्री हु चिपीन की कंपनी ने सिन्चांग वृक्ष विकास केन्द्र कायम किया और वे केन्द्र के मेनेजर चुने गए । अपने काम में उन्हों ने 400 हैक्टर बंजर भूमि को ठेके पर ले लिया और बंजर भूमि पर हरियाली बिछाने का काम शुरू किया , उन्हों ने कृषि और वन की पुस्तकें लगन से पढ़ी और विशेषज्ञों से शिक्षा ले ली । एक साल बाद उन के द्वारा ठेके पर ली गई परती जमीन पर हरे भरे गैहूं के खेत और रेतीली भूमि पर वृक्षों का चादर बिछा नजर आये । अपने सीखे ज्ञान और दृढ़ संकल्प के साथ श्री हु चिपीन ने विशाल रेगिस्तान पर एक आधुनिक हरित उद्यान बना कर दिखाया । वे कहते हैः

मैं अपने को हमेशा विकलांग के बजाए स्वस्थ आदमी समझता हूं , मेरी पसंदीदा उक्ति यह है कि मेरी जन्म सिद्ध योग्यता है । हरेक व्यक्ति की अपनी अपनी अभिलाषा है और अपना मूल्य होता है , विकलांगों में अपनी योग्यता दिखाने की तीव्र अभिलाषा है ।

विकलांग होने के कारण श्री हु चिपीन सामाजिक कल्याण कार्य पर विशेष ध्यान देते हैं । अपने उल्लेखनीय कारनामों के चलते वे सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश की राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन कमेटी के स्थाई सदस्य तथा सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय कमेटी के सदस्य चुने गए । वर्ष 2002 के जुलाई में वे सिन्चांग विकलांग संघ की परिषद के उपाध्यक्ष नियुक्त हुए और विकलांग कल्याण कार्य के पेशेवर कार्यकर्ता बन गए । उन का कहना हैः

विकलांग कल्याण कार्य एक बड़ा महत्वपूर्ण कार्य है , चिन्चांग में उस का विशेष महत्व होता है , इसे अच्छा बनाने से जातीय एकता मजबूत होगी और सामाजिक स्थिरता सुदृढ़ होगी और देश के एकीकरण की रक्षा में इस का बड़ा महत्व होगा ।

तीन सालों के भीतर श्री हु चीपिन ने सिन्चांग के विभिन्न स्थानों का चप्पा चप्पा छापा और दूर दूर सरहदी क्षेत्रों का भी दौरा किया , उन्हों ने चरगाहों , कल्याण सदनों और विकलांग घरों में जा जा कर विकलांगों की स्थिति की जांच की और उन की कठिनाइयों को दूर करने में मदद दी ।

वर्ष 2003 के नवम्बर में श्री हु चिपिन को सिन्चांग के हेथ्यान इलाके में सर्वेक्षण दौरे के दौरान कोढ रोगियों के कठिन जीवन का पता चला , कोढ रोगी जैसे विशेष कमजोर जन समुदाय को मदद देने के लिए श्री हु चिपिन ने उन के जीवन के बारे में एक विडियो फिल्म बनायी । वर्ष 2004 के मार्च में पेइचिंग में आयोजित चीन जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय कमेटी के पूर्णाधिवेशन में उन्हों ने इस विडियो फिल्म को दिखाया , जिस से चीनी विकलांग संघ और चीनी स्वास्थ्य मंत्रालय का ध्यान बरबस खिंचा हुआ । चीन सरकार ने तुरंत धन राशि का अनुदान कर विशेषज्ञों का चिकित्सा दल भेज कर कोढ़ रोग से अंगविकृत हुए लोगों का आपरेशन करने का अभियान चलाया ।

श्री हु चिनपीन के प्रयासों से चीनी विकलांग संघ और स्वास्थय मंत्रालय ने मोतियाबिंद रोग से ज्योति खो गए लोगों के आपरेशन से 60 हजार से ज्यादा मोतियाबिंद रोगों की आंखों में ज्योति वापस लायी । इस के काम के लिए सिन्चांग में कुल 36 चिकित्सा दल भेजे गए और 15 हजार मोतियाबिंद रोगियों का सफल आपरेशन किया गया । अपने इन प्रयानों की चर्चा में श्री हु चिपीन ने कहाः

विकलांगों को हमारी आवश्यकता है , मैं खुद विकलांग हूं , मैं विकलांगों की जरूरत को ज्यादा समझता हूं । मैं इस पर खासा खुश हूं कि विकलांगों की सेवा में कुछ कर सकता हूं । विकलांगों को सरकार व समाज की मदद की आवश्यकता है , उन्हें मदद देना हमारा अनिवार्य कर्तव्य है ।

श्री हु चिपीन और विकलांग कल्याण संस्थाओं के समान प्रयासों से इन सालों में सिन्चांग के विकलांग कल्याण कार्य में उल्लेखनीय प्रगति हुई । उन के सुझाव के अनुसार सिन्चांग के सरकारी विभागों व कारोबारों में अनुपात दर पर विकलांगों को नौकरी दिलायी जाने लगी है और वहां के शहरों और जिलाओं में विकलांग सेवा संस्थाएं कायम हुईं , जिन में एक लाख विकलांगों को रोजगारी की कार्यक्षमता सीखने का प्रशिक्षण प्रबंधन किया गया , जिस से वे खुद अपनी शक्ति पर आत्मनिर्भर हो गए हैं । अब सिन्चांग के शहरों में विकलांगों की रोजगारी दर शत प्रतिशत हो गई है और गांवों में भी 80 प्रतिशत विकलांगों को रोजगार मिले हैं ।

वर्ष 2005 के मार्च में श्री हु चिपीन ने सिन्चांग विकलांग संघ के उपाध्यक्ष की हैसियत में जापान में आयोजित दूसरे विश्व विकलांग उच्च शिक्षा सम्मेलन में भाग लिया और वहां विकलांगों की माध्यमिक व उच्च शिक्षा के महत्व पर जो रिपोर्ट दी , उसे व्यापक समर्थन मिला । सिन्चांग के विकलांग कल्याण कार्य पर उन्हों ने कहाः

विकसित देशों की तुलना में हमारे कार्य में बहुत कमियां हैं , मैं समझता हूं कि हमारे पास भारी निहित शक्ति है , अगर इसे काम में लाया जाए , तो विकलांग कल्याण काम को और अधिक बढ़ाया जा सकेगा तथा और बड़ी प्रगति प्राप्त होगी ।