दोस्तो, जैसा कि आप जानते हैं कि चिंगकांगशान का क्रांतिकारी आधार क्षेत्र चीनी लोगों के दिल में आज तक घर किये हुए है और एक प्रसिद्ध रमणीक पर्यटन स्थल के रूप में भी देशी-विदेशी पर्यटकों को बरबस अपनी ओर खींचता है। आइये आज चलते हैं इस पर्वतीय पर्यटन स्थल को आगे देखने।
ह्वांग यांग चेह पर्यटन स्थल त्से फिंग के उत्तर-पश्चिम में 17 किलोमीटर दूर है। उस की ऊंचाई समुद्र की सतह से 1343 मीटर से अधिक है। ह्वांगयांगचेह के एक सीधी चट्टान पर स्थित होने की वजह से वहां साल भर घना कोहरा छाया रहता है और प्राकृतिक दृश्य उच्च कोटि का है। स्थानीय लोगों के बीच यह कहावत प्रचलित है कि ह्वांगयांगचेह न जाने वाले का दिल हमेशा दुखी रहता है।
ह्वांगयांगचेह का विशेष ऐतिहासिक महत्व यह है कि 30 अगस्त 1928 को चीन की प्रतिक्रियावादी कोमिनतांग पार्टी की सेना की चार रेजिमेंटों ने जब लाल सेना को खत्म करने के लिए अचानक ह्वांगयांगचेह पर जबरदस्त हमला बोला, तो लाल सेना की प्रमुख शक्ति चिंगकांगशान पर्वत से निकल गयी। ह्वांगयांगचेह में तब लाल सेना के दो दल ही तैनात रहे और उन के उपकरण भी बहुत पिछड़े थे। कोमिनतांग पार्टी की सेना ने भारी तोपों की आड़ में अनेक बार हमला किया, पर लाल सेना ने स्थानीय पर्वतीय स्थिति के सहारे कोमिनतांग के हमले को विफल कर दिया। इस से आधुनिक इतिहास में कमजोर द्वारा शहजोर को शिकस्त करने की मिसाल खड़ी हुई और ह्वांगयांगचेह का नाम रोशन हुआ।
दोस्तो, अक्तूबर 1927 से फरवरी 1930 तक स्वर्गीय माओ त्से तुंग चिंगकांगशान में रहे। माओफिंग नामक क्षेत्र में माओ त्से तुंग का पुराना निवास आज तक अच्छी तरह सुरक्षित है। इस दुमंजिली इमारत पर एक आठ कोने वाली खिड़की लगी है। इसलिये स्थानीय लोग उसे आठ कोने वाली इमारत कहकर पुकारते हैं। इस इमारत में स्वर्गीय माओ त्से तुंग का पलंग, मेज, दिया, कुर्सी और स्याही आदि वस्तुएं प्रदर्शित हैं। उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय माओ त्से तुंग ने इसी मकान में चीन के भाग्य को तय करने वाली दो अमर रचनाएं रचीं। उनके इस पुराने निवास से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित माओ त्से तुंग का दूसरा निवास स्थान भी दर्शनीय है। इस निवास स्थान का मुख्य द्वार दक्षिण की ओर खुलता है और इसके कुल एक हजार मीटर से अधिक क्षेत्रफल में 44 कमरे हैं। इन सभी की दीवारें सफेद रंग की हैं. इसलिये स्थानीय लोग उसे सफेद मकान कहते हैं। पुराना सफेद मकान युद्ध की आग में जलकर राख हो गया था और आज का सफेद मकान 1960 में उस की नकल पर निर्मित हुआ। पर पुराने मकान की दीवारों के खंडहर, मकान के सामने खड़ा एक बड़ा पत्थर और मकान के पीछे दो छायादार पेड़ आज तक देखे जा सकते हैं।
हमारी गाइड सुश्री सुंग ने इन दो पेड़ों के बारे में बताती हैं हालांकि ये दोनों पेड़ तत्कालीन युद्ध की आग में जल गये थे, पर उन की जड़ें फिर भी जीवित रहीं। संयोग की बात है कि 1949 में चीन लोक गणराज्य की स्थापना के वक्त उनमें नये अंकुर निकले। 1965 में ये दोनों पेड़ अत्यंत हरे-भरे नजर आते थे और उन में से एक पर सफेद फूल भी खिले। उस साल माओ त्से तुंग फिर एक बार चिंगकांग पर्वत लौटे। पर 1976 में ये दोनों पेड़ अचानक सूखकर मुर्झा गए। उस साल सितम्बर में माओ त्से तुंग का देहांत हुआ। बाद में वनस्पति विशेषज्ञों ने इन दो पेड़ों पर लगे कीड़े-मकोड़ों को खत्म कर उन्हें नया जीवन दिलाया। आज भी ये दोनों हरे पेड़ फलते- फूलते चीन का प्रतीक हैं और इस बात का भी कि चीन का भाग्य और यहां की महान हस्तियां एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
प्रिय श्रोताओ, चिंगकांगशान पर्वत पर अनेक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अवशेष और आकाश से बात करने वाली अजीबोगरीब सीधी चट्टानें ही नहीं हैं, अत्यंत मनमोहक अनगिनत झरने भी हैं। त्से फिंग पर्यटन स्थल से सात किलोमीटर दूर स्थित लुंगथान कुंभ पर्यटकों को विशेष रूप से मोहता है। इस पर्यटन स्थल में प्रवेश कर 8 सौ टेढ़ी-मेढ़ी सीढियों पर चढ़कर पी यू थान नामक स्थल पहुंचा जा सकता है। इस स्थल से 17 मीटर चौड़ा झरना 70 मीटर की ऊंचाई से नीचे गिरता है। इस की आवाज गरज से अधिक तेज है। इसके नीचे परी थान नामक झरना है। यह झरना लम्बा घाघरा पहने परी सा जान पड़ता है और देखने में बहुत सुंदर लगता है।
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