मुझे सुबह पसंद है, विशेषकर स्कूल की सुबह। सुबह जब मैं प्यारे स्कूल में प्रवेश करती हूं , तो पेड़ों पर चिडिया खुशी से गाना गा रही होती हैं। मधुर गीत हवा के साथ मेरे कानों में गूंजते हैं। स्कूल की नयी इमारत धूप में चमक रही होती है। खिड़कियों से मैं कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों को देखती हूं। कुछ ऊंची आवाज में पाठ पढ रहे होते हैं, कुछ बहुत संजीदगी से लिखने में व्यस्त होते।
ऊपर जो प्रस्तुत किया जाता है वह चीन के एक प्राइमरी स्कूल के पांचवीं कक्षा की छात्रा ये ल्यांग मिंग द्वारा लिखे गये एक निबंध का अंश है। वह पूर्वी चीन के ज च्यांग प्रांत के चिन निंग स्वायत प्रिफेक्चर मे है। ये ल्यांग मिन ने इस निबंध में अपने जिस स्कूल के बारे में लिखा है, उस का नाम यैनशी शंगशूंग प्राइमरी स्कूल है, जो लिन शंगशूंग नामक उस व्यक्ति की मदद से वहां स्थापित है, जिसे इस स्कूल के बच्चे चाचा कहकर पुकारते हैं।
36 वर्षीय लिन शंगशूंग पूर्वी चीन के ज च्यांग प्रांत के वन च्यओ शहर के गैरसरकारी कारोबार शंगशूंग समूह के महा निदेशक है। ज च्यांग प्रांत के कुछ गरीब पहाड़ी क्षेत्रों और चीन के पश्चिमी क्षेत्र के शैन शी, स छ्वान औऱ तिब्बत स्वायत प्रदेश जैसे प्रांतों में उन के नाम से कुल 70 स्कूल स्थापित हैं। यैनशी शंगशूंग प्राइमरी स्कूल उन में से एक है।
कुछ समय पहले, लिन शंगशूंग ने पेइचिंग में चीनी युवा कोष के साथ एक समझौता किया, जिस के तहत, आने वाले तीन वर्षों में उन की मदद से स्थापित ऐसे स्कूलों की संख्या सौ हो जाएगी , जो चीन की निर्धन बच्चों को शिक्षित करने की आशा परियोजना के भाग होंगे। वे क्यों आशा परियोजना के तहत प्राइमरी स्कूल की स्थापना में लगे हैं, इस स्कूल के जवाब में वे कहते हैं, जब मैं बहुत छोटा था, तो मेरे पिता जी को अकेले पांच बच्चों का पालन पोषण करना होता था। हमारे घर बहुत गरीब था। स्कूल में पढने के साथ हम खेतों पर भी काम करते थे। मिडिल स्कूल तक जाते जाते यह हालत हो गई कि मुझे पिता जी के साथ बाहर जाकर काम करना
पड़ता अपने कंधे पर घर का बोझ उठाने के चलते स्कूल छोड़ने से मुझे बड़ा दुख हुआ। इसलिए, बाद में हर एक उस बच्चे को जिसे विवश होकर स्कूल छोड़ना पड़ा हो , देखकर मेरे मन में उसे मदद देने की बात उठती।
स्कूल छोड़ने के बाद, श्री लिन शंगशूंग ने तरह तरह के काम किये , उन्होंने एक प्रकाशन गृह चलाया, व्यापार किया औऱ बाद में एक जल व विद्दुत कंपनी भी खोली। इस कंपनी की प्रथम परियोजना तिब्बत की एक जल व विद्दुत परियोजना था। कोई पांच हजार मीटर ऊंचे चीन के छिंग चांग पठार पर , खराब मौसम का सामना करते हुए उन्होंने दो सौ से ज्यादा कर्मचारियों को लेकर वहां पांच साल तक काम किया औऱ बड़े कठोर दिन बिताये। इस के बाद, वे क्वे च्ओ , व्यन नान, हू पेई, फू च्ओ औऱ शन जन आदि प्रांतों में गये और वहां बीस से ज्यादा जल - विद्दुत परियोजनाओं की स्थापना की औऱ सेन श्या जल परियोजना के निर्माण में भी भाग लिया।
कठोर प्रयत्नों से न डटने वाले श्री लिन समाज के लिए कुछ न कुछ करना चाहते रहे , उन्होंने यात्सी नदी के बाढ ग्रस्त में पूंजी लगाई और गरीब क्षेत्रों के बच्चों के लिए स्कूलों की स्थापना की। उन के द्वारा दिये गए तीन करोड़ य्वान से ज्यादा के दान का लगभग आधा भाग आशा परियोजना पर खर्च किया गया ।
बीस वर्ष पहले सर्दियों के एक दिन , उन्होंने छन दु शहर के हवाई अड्डे पर एक अध्यापिका और कई छात्रों को चंदा इक्कट्ठा करते देखा। जब उन्हें मालूम हुआ कि वे स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर बच्चों को जान लिया कि उन्होंने बच्चों के पुनः स्कूल में वापस लौटने में मदद देने के लिए चंत उगाह रहे हैं, तो उन्होंने अपनी जेब से 1000 चीनी य्वान दान पात्र में डाले। श्री लिन का मानता है कि आशा परियोजना बहुत अच्छी है। उन्होंने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया हैं । वे कहते हैं , जब मैंने आशा परियोजना पर ध्यान देना शुरु किया, तो यही सोचा कि एक दिन मुझे समाज के लिए कुछ न कुछ करना है।
बाद में श्री लिन ने अपने जन्मस्थान तथा चीन के पश्चिमी क्षेत्रों में कुछ स्कूलों की स्थापना की। चीन के गरीब क्षेत्रों में एक स्कूल की स्थापना पर कम से कम दो लाख य्वान का खर्च आता। श्री लिन ने कुछ स्कूलों के पुनः निर्माण , उन के वातावरण के सुधार औऱ साज-सामानों के खरीद के लिए भी पैसे दिये।
यैनशी शंगशूंग का आशा परियोजना स्कूल शुरु में लकड़ियों से बना एक जर्जर मकान था।इस से यहां पढने वाले विद्दार्थियों के माता पिता अपने बच्चों के इस वातावरण में पढ़ने को लेकर चिंतित थे। स्कूल के अध्यापक भी तब अच्छी तरह कक्षाएं नहीं ले पाते थे।पर श्री लिन की सहायता से स्कूल में भारी परिवर्तन आए। स्कूल के अध्यक्ष श्री जी छ्वन छांग के अनुसार श्री लिन की अधिक मदद से हमारे स्कूल में नये परिवर्तन आये । अब स्कूल की चारों ओर दीवार खड़ी की गयी है, शिक्षा भवन भी स्थापित किया गया है, अध्यापक भी बेहत्तर तरीके से कक्षा लेने लगे हैं और छात्र भी मेहनत से पढ रहे हैं।
श्री लिन और चीनी युवा कोष के बीच हुए समझौते के अनुसार, वर्ष 2005 में सौ आशा परियोजना स्कूलों की स्थापना हो जाने के बाद, वे छात्रों और अध्यापकों को लक्ष्य से एक विशेष कोष की स्थापना भी करेंगे और गरीब छात्रों को मिडिल स्कूल, यहां तक कि विश्विद्दालय में पढने के लिए भी सहायता देंगे। वे श्रेष्ठ अध्यापकों को भी इनाम देने की सोच रहे हैं। श्री लिन के अनुसार, अभी योजना को अंजाम देने के लिए वे प्रति वर्ष कम से कम पचास लाख व्यान खर्च करेंगे। निसंदेह यह उन पर एक भारी दबाव होगा, पर इसे वे अपने लिए प्रोत्साहन की शक्ति मानते हैं।
यदि मेरा सपना साकार हुआ , तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। क्योंकि मनुष्य को कुछ न कुछ अर्थवान करने की आवश्यक्ता है।मेरे लिए इस काम का बहुत महत्व है।
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