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(GMT+08:00) 2005-07-06 11:01:40    
एड्ज की रोकथाम में चीनी चिकित्सा पद्धति की भूमिका

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एड्ज विश्व भर में मनुष्य के लिए खतरा बन गया है। बीते 20 सालों के प्रयासों के बावजूद एड्ज के पूर्ण उपचार के तरीके विफल रहे हैं। विश्व भर में इस समय लगभग दो करोड़ 30 लाख लोग एड्ज के शिकार हैं।

एड्ज के मुकाबले के लिए बहुत से देशों के विशेषज्ञ अथक प्रयास कर रहे हैं और आशा है कि अब इस में चीनी चिकित्सा पद्धति के तहत जड़ी-बूटियों का अहम प्रयोग भी किया जा सकेगा । एड्ज का फैलाव वर्ष 1980 के दशक से शुरू हुआ। तभी तंजानिया के राष्ट्रपति ने चीन की यात्रा के समय चीनी चिकित्सा पद्धति के जरिये एड्ज का मुकाबला करने की मांग की थी। चीन सरकार ने उन के आह्वान पर तंजानिया के साथ चीनी चिकित्सा पद्धति से एड्ज के मुकाबले की परियोजना शुरू की। चीनी राजकीय चिकित्सा पद्धति प्रबंध कमेटी के प्रधान श्री यांग लूंह्वेइ ने इसके बारे में बताते हुए कहा, चीन और तंजानिया के बीच चीनी चिकित्सा पद्धति से एड्ज के मुकाबले की परियोजना का कार्यान्वयन अच्छी तरह चल रहा है। यह परियोजना अब तक सुभीते से चली आई है। इन 18 सालों में चीनी विशेषज्ञों ने तंजानिया में चीनी चिकित्सा पद्धति के जरिये कुल दस हजार एड्ज रोगियों का इलाज किया , जिनमें से लगभग आधे रोगियों की स्थिति अच्छी रही। ऐसे कुछ रोगी, जिन का इलाज सन् 1990 में शुरू हुआ था, अब तक जीवित हैं।

पर इधर के सालों में चीन में भी एड्ज का फैलाव हुआ है। अब तक चीन में अधिकांश एड्ज रोगियों का पश्चिमी चिकित्सा पद्धति से तथाकथित विषाणु विरोधी इलाज किया जाता रहा है। वर्ष 2004 से चीनी चिकित्सा पद्धति के तहत जड़ी- बूटियों के जरिये एड्ज रोगियों के इलाज का परीक्षण शुरू हुआ। अब तक चीन में लगभग सात हजार एड्ज रोगियों का इस तरह इलाज किया गया है।

मध्य चीन के हनान प्रांत में एड्ज़ का गंभीर फैलाव हुआ। हनान प्रांत में चीनी चिकित्सा पद्धति से एड्ज रोगियों के इलाज के लिए जिम्मेदार रहे श्री श्यू लीरैन ने बताया, हनान में लगभग दो हजार एड्ज़ रोगियों का चीनी जड़ी-बूटियों के जरिये इलाज किया जा रहा है। कुछ रोगियों को पश्चिमी चिकित्सा पद्धति के इलाज से अच्छा परिणाम हासिल नहीं हुआ, इसलिए उन के लिए चीनी चिकित्सा पद्धति से इलाज का तरीका अपनाया गया।

पता चला है कि एड्ज़ रोगियों के इलाज की चीनी चिकित्सा पद्धति पश्चिमी चिकित्सा पद्धति की तुलना में एकदम अलग है। पश्चिमी चिकित्सा पद्धति में मुख्यतः रोगियों के शरीर में मौजूद एड्ज़ विषाणुओं का सफाया किया जाता है, जबकि चीनी चिकित्सा पद्धति में रोगियों के शरीर में विषाणु से लड़ने की शक्ति बढ़ाई जाती है। एड्ज रोगियों में अलग-अलग लक्षण दिखते हैं। कुछ रोगियों को बुखार, दस्त और निमोनिया आदि की शिकायत रहती है। पश्चिमी चिकित्सा पद्धति आम तौर पर इन रोगियों के इलाज के लिए बेकार है, पर चीनी चिकित्सा पद्धति जड़ी-बूटियों के जरिये इन के इलाज में बहुत कारगर सिद्ध हुई है।

हनान प्रांत के एक बुजुर्ग चिकित्सक श्री ली फाची ने कहा , मैं ने चीनी जड़ी-बूटियों के जरिये एड्ज रोगियों का इलाज कर कई संतोषजनक परिणाम प्राप्त किये। रोगियों को इसलिए चीनी चिकित्सा पद्धति का इलाज पसंद है, क्योंकि इस का पश्चिमी चिकित्सा की तुलना में पश्च प्रभाव कम होता है।

लेकिन चीनी चिकित्सा पद्धति के जरिये एड्ज के इलाज में अब भी कुछ कमजोरियां हैं। अब तक चीनी चिकित्सा पद्धति की वैज्ञानिक व्यवस्था उपलब्ध नहीं हो सकी है। एड्ज रोगियों के इलाज के अनुभवों का भी समय पर सार नहीं निकाला जा सका है और इलाज के परिणाम के मूल्यांकन की व्यवस्था भी स्थापित नहीं हो पाई है। इस सबका एड्ज के इलाज में चीनी चिकित्सा पद्धति के प्रयोग पर प्रभाव पड़ता है। इस बात की चर्चा करते हुए चीनी राजकीय चिकित्सा पद्धति के जड़ी-बूटी प्रबंधन विभाग के अधिकारी श्री यांग लूंगह्वेइ ने कहा, हम चीनी चिकित्सा जड़ी-बूटियों के जरिये एड्ज के इलाज की व्यवस्था में आगे सुधार करेंगे और उपलब्ध अनुभवों के आधार पर इस उपाय का प्रचार-प्रसार करेंगे।

एड्स का मुकाबला करना अंतर्राष्टीय मुद्दा है । क्योंकि वह इतना खतरनाक है कि यह हमें हर तरह से प्रभावित करता है , चाहे सामाजिक हो या आर्थिक । इस के बढ़ने की रफतार भी काफी तेज़ है । हर दिन कई हजार लोग इस के पिंज़रे में फंसते हैं और हजारों लोगों को हर रोज़ यह मौत के मूंह तक पहुंचाता है ।

चीन और भारत जैसे परंपरावादी लोग पहले इस विषय पर बात करने से कतराते थे , पर आज इस लाइलाज रोग को जानकारी द्वारा ही कम किया जा सकता है । इस लिये हमें इस विषय पर बात करनी ही होगी , और जानकारी फैलानी ही होगी । खतरों की पूरी तरह जानकारी होने से ही हम उस खतरे से बच सकते हैं । अब तक आप को समझ ही गये होंगे कि आज हमारे बातचीत का विषय है एड्स । एड्स का पूरा नाम है अंग्रेजी में Acqruired Immune Deficiency Syndrone । इस का आज तक कोई पूरा इलाज नहीं है । यह रोग दूसरे रोगों से कुछ अलग है , क्योंकि ज्यादातर रोगों का इलाज कर उसे जड़ से मिटाया जा सकता है । इसलिये इस का सब से बड़ा इलाज है इस से बचाव । इससे बचने के सारे तरीके हमें आने चाहिये , क्योंकि एक बार एक व्यक्ति को यह रोग लग जाये तो इस का इलाज केवल एक ही होता है --मौत । हाल ही में अमेरिका के कुछ कंपनियों ने इसके इलाज के लिये कुछ दवाइयों का आविष्कार किया है , पर यह दवाई काफी महंगी है और यह दवाई एक एड्स के रोगी को केवल कुछ साल का जीवन दे सकती है ।

क्योंकि एड्स अपने आप में कोई एक बीमारी नहीं है । मतलब यह है कि एड्स कई सारी बीमारियों का एक समूह कहा जा सकता है । एड्स के किटाणुओं का मुख्य काम यह होता है कि वे एक व्यक्ति के खून के उन सेल्स को मार डालते हैं जो बदन के कई प्रकार के बीमारियों से लड़ते हैं । इस तरह खून के यह सेल काम करना बन्द कर देते हैं और एड्स के रोगी कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं और यह बीमारी कभी खत्म ही नहीं होते ।

हू- अच्छा अब बात समझ में आयी । यानि एक एड्स के रोगी को अगर मामूली सर्दी-खांसी हुई तो उस की सर्दी खांसी सदा के लिये रह सकती है । अगर शरीर में कहीं चोट लगी तो वह चोट हमेशा के लिये रह जाएगी । इस प्रकार वह देखते ही देखते दुबला-पतला सा एक मनुष्य रह जाएगा और कुछ ही सालों में उसे यह दुनिया छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा ।

इस लिये हमें इस विषय पर दो बातें सदा याद रखनी चाहिये । नम्बर एक , हर व्यक्ति को हर हाल में इस रोग से दूर रहना चाहिये , क्योंकि यह एक लाइलाज रोग है । नम्बर दो , हमें एड्स के रोगी से नफरत नहीं , प्यार से पेश आना चाहिये क्योंकि उस की जिन्दगी कुछ ही दिनों की बची हुई होती है । इसके अलावा एक और अहम बात यह है कि एड्स के रोगी से प्यार मोहब्बत से मिलने जुलने , साथ रहने , हाथ मिलाने , गले मिलने आदि से दूसरे तक यह रोग नहीं फैलता है । इस से रोगी को थोड़ा सुकुन जरूर पहुंचता है ।

एड्स फैलने के मुख्य कारण ये हैं , नम्बर एक , असुरक्षित यौन संबंध या दूसरे शब्दों में पति-पत्नी के अलावा किसी दूसरे से यौन संबंध स्थापित करने से । इसलिये इस प्रकार के संबंध सदा के लिये केवल अपने पति या पत्नी तक ही सीमित रखें । नम्बर दो , एड्स से ग्रस्त खून या किसी प्रकार का लार किसी दूसरे के खून या लार में मिलने से । नम्बर तीन , एड्स से ग्रस्त मां के पेट में पल रहे बच्चे को , और एड्स से ग्रस्त मां के पेट में पल रहे बच्चे को ।

इस का मतलब यह हुआ कि मिल-जुल कर रहने से या एड्स के रोगियों से मिलने जुलने से एड्स नहीं फैलता , इससे रोगी के जीने की इच्छा बढ़ती है । एड्स के रोगी को हमेशा खुश रखना चाहिये , इससे उस की जिन्दगी थोड़ी बहुत जरूर बढ़ती है , और इस से सामाजित एवं आर्थिक स्थिरता भी बढ़ती है । पर एक सवाल ही है कि हमारे आसपास बहुत से कीड़ा है , जैसे मच्छर ,मक्खी और मधु-मक्खी आदि । अगर एक मच्छर ने किसी एड्स रोगी को डंक मारा , और फिर यह मच्छा दूसरे लोगों को डंक मारे , तो इस से एड्स का फैलाव होता कि नहीं । अभी तक मुझे जो जानकारी प्राप्त है , उस के जरिये एड्स का फैलाव नहीं आता है । पर मच्छा बहुत से रोगों का प्रसार करने का कारण है । इसलिये हमें अपने वातावरण को साफ रखना चाहिये और मच्छरों के प्रहार से यथासंभव बचना चाहिये ।

चीन में एड्स का मुकाबला करने के लिये न केवल देश भर की सभी शक्तियों की भागीदारी है , इसी संदर्भ में हमें जोरों से अंतर्राष्टीय सहयोग करना चाहिये । इस के अलावा चीन को विदेशी सहायता भी बहुत चाहिये । आशा है कि हम एड्स का मुकाबला करने में विदेशों के साथ वैज्ञानिक अनुभवों का ज्यादा आदान प्रदान कर सकेंगे । अब चीन , अंतर्राष्टीय संगठनों तथा विदेशों के साथ कुल सौ से अधिक सहयोग परियोजनाएं कर रहे हैं । जिन का अधिकांश चीन और अमेरिका के बीच की जा रही हैं । चीनी संश्रित एड्स विरोधी अनुसंधान योजना वर्ष दो हजार दो में उद्घातित हुआ , जो उन में सब से बड़ी परियोजना है । अमेरिका ने इस पांच सालों तक चलने वाली योजना में कुल एक करोड़ पचास लाख अमेरिकी डालर की पूंजी पेश की है । योजना के अतह एड्स का निरीक्षण तथा एड्स विरोधी दवा तथा रोगांड का अनुसंधान आदि शामिल हैं ।