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(GMT+08:00) 2005-07-05 14:52:07    
वीरों का शहर--च्यांगजी

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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर में एक विश्वविख्यात वीरों का शहर है--च्यांगजी । अगर आप च्यांगजी पहुंचे, तो देख सकते हैं कि चोंग शान नामक एक छोटा सा पहाड़ शहर में खड़ा हुआ है, पहाड़ की चोटी में एक किला अच्छी तरह सुरक्षित रही है , लोग इसे चोंग शान किला कहते हैं । एक सौ वर्ष पूर्व च्यांगजी शहर में चोंग शान क्षेत्र की तिब्बती जनता ने अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए ब्रिटिश आक्रमणकारी सेना के साथ घोर संघर्ष किया था, जिस ने तिब्बती लोगों के विदेशी आक्रमण विरोधी वीर गाथा में एक अमिट अध्याय जोड़ा , तो आज के कार्यक्रम में आप हमारे साथ चले जाएं, इस वीरों का शहर--च्यांग जी देखने के लिए ।

संगीत---

यह जो गीत आप सुन रहे हैं, वह चीन में खूब धूम मची फिचर फिल्म "होङह नदी की कहानी"का एक गीत है । होङह नदी की कहानी में आज से सौ साल पहले तिब्बत के च्य़ांग ची जिले की जनता द्वारा ब्रिटिश आक्रमणकारी सेना का मुकाबला करने की वीर गाथा का वर्णन किया गया । तत्कालीन च्यांगची निवासियों ने खून बहा कर दुश्मनों के खिलाफ अद्मय संग्राम किया और अपनी जान से जन्म भूमि की रक्षा की थी । इसलिए आगे चल कर च्यांगची शहर वीर नगर के नाम से चीन में मशहूर हो गया । जब कभी आप तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर में स्थित च्यांगजी शहर गए , तो हर च्यांगजी निवासी आप को सुना सकते हैं कि एक सौ साल पूर्व इस वीर भूमि पर किस तरह की हृदयस्प्रशी संघर्ष वृतांत हुई थी , और जब आप च्यांगजी कांउटी के पास स्थित चोंगशान पहाड़ पर खड़े रहे तो स्थानीय लोग बड़े गर्व के साथ आप को बताते हैं कि फिचर फिल्म"होङह नदी की कहानी"की इसी स्थल में शूटिंग हुई और हरेक चोंग शान वासी को इस फिल्म का उपरोक्त गीत गाना आता है ।


ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, वर्ष 1888 में ब्रिटिश आक्रमणकारी सेना ने चीन के तिब्बत क्षेत्र पर प्रथम युद्ध छेड़ा । वर्ष 1903 के दिसम्बर माह में ब्रिटिश सेना ने तिब्बत की या तोंग कांउटी में स्थित जलीला पर्वती दर्रे से गुजर कर च्यांग जी के पास फाली कस्बे पर कब्ज़ा किया , और वर्ष 1904 के जनवरी माह में ब्रिटेन ने च्यांग जी की ओर धावा बोलने लगा । इस तरह च्यांगजी जनता की शक्तियों से गठित तिब्बती जनता द्वारा ब्रिटिश आक्रमणकारियों के हमलों का मुकाबला करने वाला दूसरा युद्ध शुरु हुआ । च्यांगजी कांउटी के चोंग शान पहाड़ पर निर्मित ब्रिटिश आक्रमण विरोधी युद्ध के अवशेष स्थान के संग्रहालय के कर्मचारी श्री बासांग फ्येनतो ने युद्ध के बारे में जानकारी देते हुए कहा

"चीन के तिब्बत पर ब्रिटिश आक्रमण के विरोध में दो बार युद्ध छिड़े , पहली बार वर्ष 1888 में हुआ और दूसरा युद्ध वर्ष 1904 में । भारत पर ब्रिटेन के उपनिवेशवादी शासन के बाद ब्रिटिश सेना ने चीन की सीमावर्ती या तोंग कांउटी से चीन भारत सीमा को पार कर तिब्बत में प्रवेश किया और उस ने ल्हास्सा तक चढाई की ।"

ब्रिटिश आक्रमणकारियों के विरोध में चले तत्कालीन युद्ध के बारे में तरह तरह की भावविभोरक कहानी सुनने को मिलती हैं । ब्रिटिश सेना द्वारा छ्युमेई शिनकू पर किये गये नरसंहार की वृतांत सब से बड़ी दुखद और उल्लेखनीय है । छ्युमेई शिनकू तिब्बत की यातोंग कांउटी में स्थित है, जो तत्काल में च्यांगजी के अधीन था । ऐतिहासिक उल्लेख के अनुसार वर्ष 1904 के जनवरी के माह में ब्रिटिश सेना और तिब्बती सेना छ्युमेई शिन कू पर आमने सामने में आ गई और दोनों के बीत युद्ध छिड़ा , उसी लड़ाई में भाग लेने वाले कातुंग नामक एक बुढ़े की स्मृति वृतांत से पता चला है कि तत्कालीन तिब्बती सेना के पास महज पुरानी किस्म के बंदुक ,तलवार तथा अंडा जितना बड़ा पत्थर फेंकने में प्रयोगी तिब्बती चाबूक थे , जबकि ब्रिटिश सेना के हथियार आधुनिक और शक्तिशाली थे । लेकिन तिब्बती सैनिकों ने वीरता के साथ ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी । सेना के अभियान में बाधाओं को दूर करने के लिए ब्रिटिश सेना ने तत्कालीन तिब्बती सेना से वार्ता करने की चाल चली । 15 जनवरी को तिब्बती सेना के कमांडर ला टिंग से और लांग स लिन दाई पन आदि चार वार्ताकार ग्यारह सैनिकों के साथ ब्रिटिश सेना से वार्ता करने के लिए ब्रिटिश सेना के पास गए, लेकिन ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने बेशर्म से तिब्बती वार्ताकारों को धोखे में डाल कर यह कहा था कि वार्ता के समय दोनों पक्षों को फायरबंदी करना और मुस्तैदी ना रखना चाहिए । तिब्बती सेना ने फायरबंदी करने का आदेश दिया , लेकिन ब्रिटिश सेना ने चुपे छिपे तिब्बती सेना के मोर्चे को घेर लिया । वार्ता के दौरान एक ब्रिटिश अफ़सर ने अचानक तिब्बती वार्ताकार ला टिंग से और लांग स लिन दाई पन पर गोलियां चलायीं । इसी के बाद तिब्बती सेना के वार्ता प्रतिनिधियों और ब्रिटिश सेना की गोलीबारी चली । ब्रिटिश सैनिकों ने आधुनिक राइफल मशीनगन और तोप जैसे शक्तिशाली हथियारों से तिब्बती सैनिकों पर अंधाधुंध गोलियों की वर्षा की, जिस से सात सौ से ज्यादा तिब्बती सैनिक मारे गए, तिब्बती सेना के कमांडर ला टिंग से और अन्य वार्ताकारों ने भी अपनी जान का न्यौछार किया । दोनों पक्षों के बीच हथियार और शक्ति में असाधारण फर्क होने के कारण वास्तव में तिब्बती सैनिकों का नरसंहार किया जाने का परिणाम निकला । तिब्बती सेना की शक्ति का खात्मा करने के बाद ब्रिटिश आक्रमणकारी सेना छ्युमेई शिनकू से सीधे च्यांगजी शहर में प्रवेश कर गयी ।