25 ईसवी में ल्यू श्यू (5 ई.पू. – 57 ई.) ने, जो एक शक्तिशाली जमींदार था और मौका पाकर किसान-विद्रोही सेनाओं में घुस आया था, अपने को सम्राट घोषित कर दिया और हान राजवंश की पुनर्स्थापना की। चूंकि इस पुनर्स्थापित राजवंश की राजधानी ल्वोयाङ छाङआन के पूर्व में स्थित थी, इसलिये इतिहासकार इस नए राजवंश को पूर्वी हान (25 – 22 ई.) के नाम से पुकारते हैं। ल्यू श्यू बाद में सम्राट क्वाङऊ के नाम से मशहूर हुआ। उसने किसान-विद्रोही सेनाओं को बड़ी क्रूरता के साथ कुचल दिया।
मोटे तौर पर, पूर्वी हान शासन ने अपने पूर्ववर्ती पश्चिमी हान शासन की राजनीतिक प्रथाओं का अनुसरण किया था। सम्राट क्वाङऊ ने लगातार छै बार दास-दासियों को मुक्ति प्रदान करने का आदेश दिया और नतीजे के तौर पर बहुत से दास-दासियों को आजादी हासिल हुई। बाद में, उसने सरकारी जमीन का एक हिस्सा गरीब किसानों को देने के साथ-साथ उन्हें बीज, कृषि-औजार और खाद्यान्न उधार देने के अनेक आदेश भी जारी किए। उसने जल-संरक्षण परियोजनाओं का निर्माण करने, ह्वाङहो नदी को वश में करने और नदी-तटबंधों का निर्माण व मरम्मत करने पर विशेष ध्यान दिया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप उसके बाद के कोई 800 वर्षों तक ह्वाङहो नदी ने अपना रास्ता नहीं बदला था। पूर्वी हान राजवंश के काल में लोहा गलाने की तकनीक में बड़ी उन्नति हुई।
नानयाङ के मजिस्ट्रेट तू शि ने एक ऐसी विधि का आविष्कार किया जिसमें बहत पानी का इस्तेमाल कर पहियों को चलाया जाता था, फिर इन पहियों से जानवरों के चमड़े से बने धौंकनीनुमा पीपों को चालू कर दिया जाता था, और इस प्रकार लोहा गलाने की भट्ठी में हवा दी जाती थी। इस विधि से भट्ठी के अन्दर का तापमान बढ़ जाता था और उच्चतर क्वालिटी का लोहा तैयार होता था। इसी बीच, कुएं के नमक के उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी।
पूर्वी हान शासन की स्थापना प्रभुत्वकारी जमींदारों के समर्थन से हुई थी, इसलिए वे विशेषाधिकारों का उपभोग करते थे। वे अपने प्रभुत्व के भरोसे किसानों की जमीन हड़प लेते थे और आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बड़े-बड़े बागान कायम करते थे। वे अपने-अपने इलाके की राजनीति में चौधराहट जमाते थे और व्यक्तिगत रूप से अपने"पारिवारिक सिपाही"भी रखते थे। वे केन्द्रीय प्राधिकरणों से स्वतंत्र होने का दावा करते थे। उन में से कुछ स्थानीय अफसरों के रूप में काम करते थे और कुछ अन्य केन्द्रीय सरकार की सत्ता का भी उपयोग करते थे।
पूर्वी हान राजवंश के उत्तरकाल में ख्वाजाओं और सम्राज्ञियों के रिश्तेदार भी बारी-बारी से शासन की बागडोर संभालने लगे थे। वे खुलेआम रिश्वत देकर अफसर बनवाते थे और जनता को लूटकर दौलत बटोरते थे। बहुत से किसान अपनी जमीन और जीविका के अन्य साधन गवांकर खानाबदोश बन गए। परिणामस्वरूप, 107 ईसवी से लेकर आगे के कोई सत्तर-अस्सी वर्षों में पूरे देश में 100 से अधिक किसान-विद्रोह फूट पड़े थे।
184 ईसवी में देशव्यापी पैमाने पर ह्वाङचिन विद्रोह शुरू हुआ। इसका प्रमुख नेता चाङ च्याओ वर्तमान हपेइ प्रान्त के निङचिन के दक्षिण में स्थित च्वीलू नामक कस्बे का रहने वाला था। वह पहले ताओ धर्म के"शान्ति मत"सम्प्रदाय का एक नेता था और बाद में वैद्य व धर्मप्रचारक के रूप में मशहूर हुआ। लम्बे अरसे तक प्रचार और संगठन का काम करने के बाद वह कई लाख गरीब किसानों को अपना अनुयायी बनाने में सफल हो गया। ये लोग ह्वाङहो नदी और छाङच्याङ नदी के आसपास के विशाल क्षेत्रों में राजनीतिक रूप से क्रियाशील थे।
184 ईसवी के चान्द्र-पंचांग के दूसरे महीने में उन्होंने विद्रोह शुरू कर दिया। विद्रोही सेना के सैनिक पीला साफा पहनते थे, इसलिये इस का नाम पीला साफा सेना पड़ गया। शुरू में विद्रोहियों को अनेक लड़ाइयों में विजय प्राप्त हुई, और एक बार उन्होंने राजधानी ल्वोयाङ को चारों ओर से घेर भी लिया था। किन्तु बाद में सरकारी सेनाओं और जमींदारों के मिलिशिया-दस्तों के संयुक्त प्रहारों के सामने, इस सेना की मुख्य सैन्य-शक्ति को नौ महीने के वीरतापूर्वक संघर्ष के उपरान्त हार खानी पड़ी। फिर भी विभिन्न स्थानों में इस की बचीखुची टुकड़ियां निरन्तर बीस वर्षों से अधिक समय तक लड़ती रहीं।
यह विद्रोह चीन के इतिहास में एक अच्छी तैयारी के बाद किया गया पहला सुसंगठित विद्रोह था। इस विद्रोह ने उन अमीर जमींदारों को, जिन्होंने अधिकाधिक जमीन हड़प ली थी, गम्भीर आघात पहुंचाया और पूर्वी हान शासन को तहस-नहस करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
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