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(GMT+08:00) 2005-07-01 08:49:20    
विकलांग ओलंपिक विजेता सुश्री वांग येनहुङ की कहानी

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वर्ष 2004 का विकलांग ओलंपिक खेल यूनान की राजधानी एथेन्स में आयोजित हुआ , चीनी विकलांग खेल प्रतिनिधि मंडल की खिलाड़ी वांग येनहुङ ने इस खेल समारोह में महिला तीरंदाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता, इस तरह वह चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश का प्रथम विकलांग चैम्पियन बन गई ।

सुश्री वांग येनहुङ का वर्ष 1969 में एक सैनिक परिवार में जन्म हुआ , बालावस्था में वह चंचल और खुशमिजाज थी और हर चीज में रूचि रखती थी । लेकिन बदकिस्मत से 15 साल की उम्र में घातक बीमारी पड़ने के कारण उस की बाईं टांग अपाहिज हो गई , जिस ने इस सुशील लड़की का सुन्दर सपना निर्मम रूप से तोड़ दिया । इस की चर्चा में सुश्री वांग येनहुङ ने कहाः

मैं किशोरवय समय में विकलांग बन गई हूं , जिस से मुझे भारी आघात पहुंचा था , 15 साल की उम्र यौवन से भरी हुई अवधि थी , लेकिन मैं घर से बाहर भी नहीं आ सकती और 20 साल की उम्र तक पलंग पकड़ना पड़ता था । अपने भविष्य के बारे में मुझे सोचने का हिम्मत भी नहीं रहा था ।

घातक बीमारी के कारण सुश्री वांग येनहुङ ने पूरी तरह अपने को घर में कैद कर दिया था , 20 साल की उम्र में दूसरों द्वारा प्रेरित किया जाने से वह घर से निकल कर एक मजदूरीन बन गई ।

नौकरी मिलने पर भी सुश्री वांग येनहुङ के दिल में विकलांग होने के कारण बड़ा हीनभाव दबा हुआ था, इसलिए वे हमेशा दूसरों से अलग थलग रहती रही । लेकिन एक संयोग की बात ने वांग येनहुङ का किस्मत बदला। किसी एक कविता मैच समारोह में दोस्तों और सहकारियों के प्रोत्साहन में वांग येनहुङ ने भी साहस बटोर कर मंच पर कार्यक्रम पेश किया।

इस मौके की याद में सुश्री वांग येनहुङ ने कहा कि मैं एक पुरूष सहकारी की मदद से मंच पर खड़ी थी , आंखों के सामने बहुत से चेहरे घूम रहे थे , मेरी टांग कांप रही थी , लेकिन मैं ने बड़े मनोबल का परिचय कर दृढता से काम ले लिया और कार्यक्रम प्रस्तुति में अपनी पूरी भावना उडेल की । कविता प्रतियोगिता में मुझे प्रथम पुरस्कार मिला , जिस ने मुझ में असाधारण हिम्मत और आत्मविश्वास भर किया , तभी से मेरे दिल में हीनभाव लुप्त हुआ और मनोबल भी लगातार बढ़ता गया । मुझे लगा था कि मैं हर काम में सक्षम हो सकूंगी । मेरी सहेलियां बहुत अच्छी नाचती हैं , तो मैं ने भी नाच सीखी और धीरे धीरे नाचने में भी सक्षम हो गई।

अपने अमल से सुश्री वांग येनहुङ को मालूम हुआ कि विकलांग होने के बावजूद वह दूसरों की भांति अच्छी तरह काम कर सकती है और सुन्दर जीवन बिता सकती है ।

वर्ष 1994 में 25 वर्षीय वांग येनहुङ ने तीरंदाजी खेल सीखने का निश्चय किया , कड़े चयन से वह विकलांग तीरंदाजी खिलाड़ी चुनी गई , कोच से उचित प्रशिक्षण प्राप्त होने के फलस्वरूप वांग येनहुङ का खेल कौशल तेजी से उन्नत हो गया । इसी साल चीन में आयोजित छठी दक्षिण प्रशांत विकलांग खेल में भाग लेने का गौरव मिला ।

पिछले दस सालों में सुश्री वांग येनहुङ ने तीरंदाजी खेल में अपनी पूरी शक्ति अर्पित की , रोज वह 70 मीटर दूर रखे गए निशाने पर पांच छै सौ बाण मार देती है , फिर वहां जाकर छोड़े गए बाण वापस लेती है , इस चक्र में उसे रोज दस से अधिक किलोमीटर का लम्बा रास्ता तय करना पड़ता है। असल में वह पैर में अपाहिज है । वह कहती हैः

कोच की कड़ी मांग पर मैं रोज सैकड़ों तीर मार छोड़ती है , शुरू शुरू में मैं मजबूरी से कड़ा ट्रेनिंग लेती थी , अब अभ्यास्त हो गई और स्वेच्छे से कड़ा प्रशिक्षण करती हूं । जब तीर दस अंक के निशाने पर साधा , तो दिल में अपार खुशी उमंग उठती है ।

वर्ष 2004 में एथेन्स विकलांग ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने की वांग येनहुङ की मंशा पूरी हो गई , वह तीरंदाजी की विश्व चैम्पियन बन गई , जब चीनी राष्ट्र ध्वज एथेन्स स्टेडियम में फहराने लगा , तो भावविभोर हो कर वांग येनहुङ की आंखों में आंसू भर आयी , उस ने कहा कि यह स्वर्ण पदक राष्ट्र का है , मांबाप का है और छोड़ी बहन तथा अपने पति व छोटी बेटी का भी है ।

सुश्री वांग येनहुङ का एक सुखमय परिवार है , स्नेहपूर्ण मां बाप है और छोटी बहन और प्यारी बेटी और अपने का हर वक्त ख्याल रखने वाला पति है । उस का जिक्र करते हुए छोटी बहन वांग ईयान ने कहाः

मेरी बड़ी बहन एक मेहनती , दृढ़ इच्छाशक्ति व अद्मय संकल्प बद्ध नारी है , किशोरवय समय में उसे अनेक बार आपरेशन झेलना पड़ा था , फिर भी वह बेहद दृढ़ और आशावान सिद्ध हुई है , वह गाना , गिटार लिपिकला तथा चित्रकला भी पसंद करती हैं । वे मेरी आदर्श मिसाल है और मैं उन्हें मन से प्यार करती हूं ।

अकसर खेल प्रतियोगिता में भाग लेने जाने के कारण जब वांग येनहुङ की माता का देहांत हुआ , तो भी वह माता के पास नहीं रही , इस पर उन्हें गहरा खेद हुआ है । जब अपने की बेटी भी आयी , तो मां होने के नाते वह अपने पूरे के पूरे प्यार को बेटी पर लगा देती है । लेकिन तीरंदाजी खेल में लग जाने के कारण वह बराबर महसूस करती है कि वह सारे प्यार को बेटी पर नहीं दे सकती है ।

पत्नी के कैरियर का समर्थन करने के लिए वांग येनहुङ का पति श्री हु युनतुंग घर का सभी कामकाज खुद संभाल लेता है । वह अपनी पत्नी की कोशिश गहराई से समझता हैः

मेरी पत्नी दृढ़ संकल्प वाली महिला है , चोट और विफलता लगने के समय वह मुझे तेलीफोन देती है और नाखुश समय मैं भी उन्हें तेलीफोन देता हूं . हम एक दूसरे को प्रोत्साहित करते हैं और समर्थन करते हैं ।

तीरंदाजी खेल के अलावा वांग येनहुङ को पढ़ना , संगीत तथा चाय पान कला भी बहुत पसंद है , उन का कहना है कि खेल की तीव्र स्पर्धा से अवकाश के समय चाय पीने , संगीत और पुस्तक का आनंद लेने से जीवन और शांत और खुशहाल हुआ है ।

लेकिन तीरंदाजी के मैदान में वह हमेशा कड़ाई के साथ अभ्यास करती हैं , एक लक्ष्य पाने के बाद वह दूसरे नए लक्ष्य की ओर अग्रसर रही है । वर्ष 2008 का 13 वां विकलांग ओलंपिक भी चीन में होगा , वह उस समय राष्ट्र के नाम को फिर एक बार रौशन करने को तैयार है, वह कहती हैः

वर्ष 2008 ओलंपिक हमारे देश में होगा , मैं इस के विकलांग खेल में भाग लेना चाहती हूं , यो मेरी उम्र तब 39 साल की होगी , फिर भी मैं समझती हूं कि मैं सक्षम हो सकूंगी ।

वांग येनहुङ का कहना है कि मौका सभी के लिए बराबर होता है , वह आप के लिए जरूर खिड़की खोल देगा , जब आप उसे बन्द नहीं कर देते , तो सुर्य की किरण अवश्य अन्दर आएगी ।