दोस्तो , आप को याद होगा कि चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम अब तक शानशी प्रांत की राजधानी थाइय्वान और इस प्रांत के दूसरे क्षेत्रों के पुराने चारदिवारी वाले खानदानी घरों में हो आये हैं। इन जगहों की विशेष रीतियों और वास्तुशैलियों की भी आप को याद होगी। चलिए आज के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में चलें शानशी के धार्मिक वातावरण का आभास करने।
हम आप को बता ही चुके हैं चीन की राजधानी पेइचिंग से पांच घंटे की रेलयात्रा के बाद आप शानशी प्रांत के दूसरे बड़े शहर ता थूंग पहुंच सकते हैं। ता थूंग अपनी कोई 1500 वर्ष पुरानी युन कांग गुफाओं की वजह से देश- विदेश में विख्यात है। युनकांग गुफाएं इस शहर के पश्चिमी उपनगर स्थित ऊ चाओ पर्वत की एक हजार किलोमीटर लम्बी श्रृंखला में खुदी हैं। प्राचीन चीनी सांस्कृतिक ग्रंथों से पता चलता है कि युनकांग गुफाओं की खुदाई ईस्वी 460 वर्ष में शुरू हुई थी और इस निर्माण कार्य के प्रवर्तक थानयाओ नाम के एक भिक्षु थे। आज यहां की 53 गुफाओं में 51 हजार से अधिक बुद्ध मूर्तियां सुरक्षित हैं, जिन में सब से बड़ी बुद्ध मूर्ति 17 मीटर से भी अधिक ऊंची है और सब से छोटी केवल कुछ सेंटीमीटर भर की है। ये गुफाएं चीन के सब से बड़े गुफा समूहों में ही शामिल नहीं हैं, विश्वविख्यात गुफा कला की निधि भी मानी जाती हैं। इन सभी मूर्तियों में भारत की बौद्ध धर्म की कलाओं से प्रभाव ग्रहण कर चीन की परम्परागत मूर्ति कला को जोड़ा गया।
युनकांग गुफाओं से पश्चिम की ओर दो-तीन घंटे का रास्ता तय कर शानशी के दूसरे धार्मिक पर्यटन स्थल हंगशान पर्वत पहुंचा जा सकता है। हंगशान पर्यटन स्थल इस नाम के पहाड़ की तलहटी में हवा में झूलते मंदिर के कारण मशहूर है।1400 वर्ष पुराना यह छोटा सा मंदिर एक खड़ी सीधी चट्टान पर झूलता नजर आता है और देखने पर गिरता सा जान पड़ता है। यहां खूंग इ फान नाम के एक पर्यटक ने हम से कहा इस छोटे से मंदिर के मुख्य भवन तक पहुंचने के लिए जोखिम भरे संकरे रास्ते पर चलते समय मैंने हर कदम सारी हिम्मत बटोरकर बड़ी सावधानी रखा। तब मुझे यही डर सता रहा था कि मैं गिरकर इस झूलते मंदिर के साथ झूलता आदमी न बन जाऊं।
वास्तव में इस मंदिर के इस ऊंची चट्टान पर स्थापित किये जाने का जो विशेष कारण है, मंदिर के युवा भिक्षु श्वान हाउ ने उसका परिचय दिया चीन का वू थाइ पर्वत हंगशान के दक्षिण में स्थित है और ताथूंग हंगशान के उत्तर में स्थित है। इन दो बौद्ध स्थलों तक पहुंचने के लिए लोगों को यहां से गुजरना पड़ता था। इसलिये बौद्ध अनुयायियों की सुविधा के लिए यह मंदिर यहां स्थापित हुआ, ताकि वे रास्ते में बुद्ध की पूजा कर सकें। हंगशान की तलहटी से होकर जो हुन ह नदी बहती है, तब उस में अक्सर बाढ़ आती थी सो बाढ़ से बचने के लिए उसे इस सीधी चट्टान पर स्थापित होना पड़ा।
हालांकि अपने ही ढंग का यह मंदिर बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन यहां 80 से अधिक मूर्तियां हैं। तांबे, लोहे, पत्थर व मिट्टी से बनी ये मूर्तियां बड़ी सुंदर व सजीव हैं। उल्लेखनीय है कि इस मंदिर की सब से ऊपरी मंजिल पर शाक्यमुनि, लाउच और खूंगच की मूर्तियां एक ही भवन में रखी गयी हैं। चीन में यह बहुत कम देखने को मिलता है कि बौद्ध, ताउ और कनफ्यूशियस इन तीनों धर्मों के संस्थापकों की मूर्तियां एक ही कमरे में हों।
हंगशान से दक्षिण की ओर तीन घंटे का रास्ता तय करने के बाद आप वू थाइ शान पर्वत पहुंचते हैं। शायद आप जानते हों कि चीन में सछवान प्रांत के अड़ मेइ पर्वत, चच्यांग के फू थो पर्वत, आंहुई के च्यू ह्वा शान पर्वत और शानशी के वू थाइ शान को चार प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थलों की मान्यता प्राप्त है। वू थाई शान समुद्र की सतह से तीन हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित है और पांच ऊंची चोटियों से घिरा है। इस पर्वत की छोटी-बड़ी सभी चोटियां व चट्टानें अजीबोगरीब ही नहीं हैं, इन पर बड़ी तादाद में देवदार पेड़ भी पाये जाते हैं। इस पर्वत पर अवतार मंदिर, स्तूप मंदिर, हजार बौद्ध सूत्र मंदिर समेत करीब 50 प्रसिद्ध मंदिर खड़े हैं। इन मंदिरों की सुंदर वास्तुशैली, सूक्ष्म तराशी कला और ऐतिहासिकता व सांस्कृतिकता लोगों को एक रहस्यमय वातारण का आभास देती है। पेइचिंग की एक पर्यटन कम्पनी की गाइड सुश्री ली चिंग अक्सर यहां आती हैं। उनका कहना है वू थाइ शान उत्तरी चीन में स्थित है और समुद्र की सतह से बहुत ऊंचा भी है। अक्तूबर के बाद यहां का मौसम ठंडा रहता है और यहां अकसर बर्फ पड़ती है, इसलिये यहां गर्मियों में आना बेहतर है। वू थाइ शान पर्वत का शानदार मंदिर समूह और सघन धार्मिक वातावरण वाकई देखने लायक है।
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