• हिन्दी सेवा• चाइना रेडियो इंटरनेशनल
China Radio International
चीन की खबरें
विश्व समाचार
  आर्थिक समाचार
  संस्कृति
  विज्ञान व तकनीक
  खेल
  समाज

कारोबार-व्यापार

खेल और खिलाडी

चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2005-06-23 16:56:06    
बौद्ध विद्वान कुमारजीव

cri

आज हमारे रेडियो के सीनियर एडिटर प्रोफेसर सुन बाओ कांड आप को प्राचीन चीन के बौद्ध विद्वान कुमारजीव के बारे में कुछ परिचय देंगे। श्री सुन बाओऔ कांड सॉथ एशिया सोसाइटी के एडिवाइजर भी हैं। वे कह रहे हैं।

बौद्ध विद्वान कुमारजीव ने चीन के लोगों को बौद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण विचार शाखा से व्यवस्थित रुप से परिचित कराया तथा चीनी भाषा में अनेक बौद्ध ग्रंथों का सुन्दर औऱ सही अनुवाद करके उन के प्रभाव को अत्यधिक बढ़ा दिया।

कुमारजीव का पिता जी, एक भारतीय था औऱ माता जी कूचा राज्य की राजकुमारी थी। तत्कालीन का कूचा, वर्तमान चीन के शिन च्यांडज वेइगुर स्वायत प्रदेश का खू छ शहर था। उन का जन्म 344 ईसवी में कूचा में हुआ था। कुमारजीव , छोटी ही उम्र में शिक्षा प्राप्त करने उत्तर पश्चिमी भारत चला गया था। बाद में वह चीन लौट आया। उसे , आधा भारतीय औऱ आधा चीनी माना जा सकता है।

जब कुमारजीव केवल सात वर्ष का था, तो उन्होंने और उन की मां ने बोद्ध धर्म में दीक्षा ले ली थी, नौ वर्ष की उम्र में वह अपनी मां के साथ भआरत चला गया। वह एक मेधावी लड़का था। उन्होंने बचपन में ही अनेक बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन कर डाला और अनेक विद्वानों को शास्त्रार्थ में पछाड़ दिया। बारह वर्ष की आयु में वह अपनी माता के साथ कूचा की तरफ चल पड़ा। रास्ते में शूले राज्य में रुक कर उन्होंने बौद्ध दर्शन के अलावा, अन्य अनेक विष्यों का अध्ययन किया, शूले चीन के शिनच्यांग वेइवुर स्वायत प्रदेश के दक्षिण में महत्वूप्रण शहर काश्गर ही है। उन्हें प्राचीन भारत के लगभग सभी धार्मिक ग्रंथों तथा नक्षत्र विज्ञान गण्ति शास्त्र, संस्कृत व्याकरण आदि विष्यों की अच्छी जानकारी थी। उन्होंने पहले बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा का अध्ययन किया औऱ फिर महायान शाखा का । कूचा लौटने के बाद उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा औऱ व्याख्यान देने शुरु कर दिये। इस तरह उन की ख्याति बढ़ती गई। बाद में उन की माता भारत चली गई। जाने से पहले उन्होंने कुमारजीव से कहा कि वह चीन के भीतरी क्षेत्र में जाकर भारी योगदान कर सकता है, हालांकि इस कार्य में सम्भवतः मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। कुमारजीव ने जवाब में कहा, अगर मैं दूसरे लोगों को फायदा पहुंचा सकूं, तो कठोर से कठोर यंत्रणाएं सहकर भी सन्तोषपूर्वक पर सकूंगा।

उस काल में पूर्व कालीन छिन नरेश फू च्येन बड़ा शक्तिशाली था। उत्तर में उस का काफी प्रभुत्व था। 382 ईसवी में उस ने अपने जनरल 吕光 को कूचा पर विजय पाने और कुमारजीव को राजधानी शीएन में ले आने का आदेश दिया। 吕光 ने सन 384 में कूचा राज्य पर विजय पायी। लेकिन, अगले वर्ष जब राजा फू च्येन मारा गया, तो 吕光 ने शीएन लौटने के बदले अपने को एक स्वतंत्र राज्य का शासक घोषित कर दिया औह कुमारजीव को अपने पास रखा उस ने कुमारजीव के साथ बड़ा अपमानजनक व्यवहार किया। इसी बीच, याओ चांग ने पूर्व कालीन छिन राजवंश का तख्ता पलट दिया और उत्तर कालीन छिन राजवंश की नींव डाली। याओ च्यांग का उत्तराधिकारी याओ शींग था, जो बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उस ने सन 401 में ल्यू क्वांग को पराजित किया औऱ कुमारजीव को अपनी राजधानी में बुला लिया।

कुमारजीव सन 402 के शुरु में शीएन पहुंचा और बारह वर्ष बाद लगभग 70 वर्ष की उम्र में उन का इसी शहर में देहांत हो गया। जीवन के अन्तिम वर्षों में कुमारजीव की बौद्धिक क्षमता आसमान को छूने लगी औऱ उन के पाण्डित्य के आगे कोई नहीं टिक पाता था। राजा याओ शींग उन का बड़ा सम्मान करता था। उस ने कुमारजीव से व्याख्यान देने और बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद करने का अनुरोध किया। शीघ्र ही कुमारजीव की खअयाति समूचे चीन में फैल गई। उस समय शीआन में अनेक जाने माने भिक्षु रहते थे, उन में से कुछ भारतीय भी थे औऱ कुमारजीव के गुरु भी रह चुके थे। आठ सौ से ज्यादा चीनी भिक्षु कुमारजीव ने व्याख्यान सुनते थे और अनुवाद कार्य में उन की सहायता करते थे। उन्होंने कुलमिलाकर तीन सौ जिल्दों का अनुवाद किया। लेकिन, यह सब उन की उपलब्धियों के दसवें हिस्से से भी कम था।

कुमारजीव ने जहां एक ओर अनेक महत्वपूर्ण प्राचीन भारतीय ग्रंथों से चीनी लोगों को परिचित कराया, वहां, दूसरी ओर अनुवाद के एक सुन्दर साहित्यिक रुप का सूत्रपात भी किया। उन्होंने एक दार्शनिक विचार शाखा की स्थापना भी की।

उन से पहले के अनुवादकों को संस्कृत और चीनी दोनों भाषाओं की अच्छी जानकारी नहीं थी। एक अच्छे अनुवादक को मूल रचना की भाषा औऱ अनुवाद की भाषा दोनों की अच्छी जानकारी होना जरुरी है। उन का सामान ज्ञान अत्यन्त गहन औऱ व्यापक होना चाहिए। अपने काल में केवल कुमारजीव ही इन शर्तों को पूरा कर सकते थे। कुमारजीव से पहले सभी अनुवाद ,एक चीनी और एक विदेशी बौद्ध विद्वान के पारस्पिक सहयोग के जरिए किये गए थे, कभी कभी कोई तीसरा चीनी विद्वान दुभाशिए के रुप में काम करता था। ऐसी स्थिति में अनुवाद में त्रिटियां रह जाना अनिवार्य था। साथ ही विदेशी विद्वानों के पास यह पता लगाने का कोई साधन नहीं था कि चीनी अनुवाद कैसा बन पड़ा है। शुरु में कुमारजीव ने चीनी सहयोगियों के साथ मिलकर काम किया, लेकिन, जब चीनी भाषा का उस का ज्ञान बेहत्तर हो गया तो, उन्होंने स्वयं अनुवाद करना शुरु कर दिया। वह पहले अनुदित ग्रंथों की व्याख्या कते थे, फिर उन के अनुवाद पर विचार किया जाता था, उस की जांच की जाती थी और उस में सुधार किया जाता था। उन के शिष्यों और सहयोगियों में अनेक प्रतिभाशाली विद्वान शामिल थे। जिन में कुछ लोग अत्यन्त मेधावी थे। कभी कभी 500 लोग कुमारजीव की सहायता करते थे। वे लोग अनुदित रचनाओं पर विचार विनिमय करते थए और उन का सम्पादन करते थे तथा उन की तुलना अन्य लोगों के अनुवादों के साथ करते थे।

कुमारजीव द्वारा अनुदित बौद्ध ग्रंथों का अत्यन्त दीर्घकालीन और व्यापक प्रभाव पड़ा । वे ग्रंथ चीनी दर्शन और साहित्य के विकास में सहायक सिद्ध हुए। कुमारजीव मूल रचनाओं के अर्थ को विशुद्ध धारावाहिक चीनी भाषा में व्यक्त कर सकते थे। उन्होंने विभिन्न विचार शाखाओं के ग्रंथों का अनुवाद किया, कुमारजीव के द्वारा अनुदित ज्यादातर ग्रंथों को दार्शनिक साहित्यक और धार्मिक जगत में बहुत मूल्यवान समझा जाता है। मूल रचनाओं की शैली को पूर्व वर्ती अनुवादकों को काफी पीछे छोड़ दिया। जब कभी हमें चीनी ग्रंथ में बौद्ध अनुवादकों की शैली की चर्चा करनी होती है, तो हम मुख्यतः कुमारजीव कालीन अनुवाद शैली का ही उल्लेख करते हैं।

इस का मुख्य श्रेय कुमारजीव हो ही है। साथ ही कुमारजीव एक कवि भी थे। दुर्भाग्यवश अब उन की केवल एक ही कविता उपलब्ध है। दर्शन के क्षेत्र में कुमारजीव का भी महान योगदान था। उन के दो शिष्य, चीन के दो मह्तवपूर्ण दार्शनिक थे। 道生 ध्यान सम्पादाय का एक संस्थापक था। चीनी दर्शन के इतिहास में जब हम इस काल की मौतिकवादी और आदर्शवादी विचार शाखाओं के बीच हुई अनेक गरमागरम बहसों पर नजर डालते हैं, तो कुमारजीव की भूमिका कमी नहीं भूल सकते, जिन्होंने चीनियों को भारतीय बौद्ध दर्शन से अवगत कराया। उन्होंने सम्पूर्ण चीनी दर्शन को समृद्ध बनाया।

कुमारजीव एक ऐसे श्रेष्ठ भारतीय विद्वान थे। जिन्होंने चीनी धर्म दर्शन और साहित्य को बेहद प्रभावित किया। उन की ख्याति चीन और भारत की जनता की मैत्री के चिरन्तन स्मारक के रुप में अनन्त काल तक बनी रहेगी।