बाद के युद्ध में छन शङ और ऊ क्वाङ की मृत्यु के पश्चात, किसान-विद्रोहों के एक अन्य नेता ल्यू पाङ (256- 195 ई.पू.) ने चीन का एकीकरण किया और छाङआन ( वर्तमान शेनशी प्रांत के शीआन के उत्तर-पश्चिम में) को राजधानी बनाकर हान राजवंश की स्थापना की। इतिहास में यह राजवंश पश्चिमी हान राजवंश ( 206 ई.पू. – 24 ई.) के नाम से प्रसिद्ध है और इस का संस्थापक ल्यू पाङ सम्राट काओचू कहलाता है। इस राजवंश में छिन राजवंश की "तीन ड्यूकों और नौ राज्य-सचिवों"वाली अफसरशाही व्यवस्था तथा सूबे व काउन्टी वाली प्रशासनिक व्यवस्था का अनुसरण किया गया।
कायदे-कानून बनाने में भी छिन राजवंश की विधि-व्यवस्था के अनुभव लिए गए। इस के अलावा पश्चिमी हान राजवंश में अनेक राजाओं को जागीरें दी गईं। बाद में इन जागीरदार राजाओं की शक्ति तेजी से बढ़ी और उनकी जागीरें स्वतंत्र राज्य बन गईं। ईसापूर्व 154 में सात जागीरदार राजाओं ने विद्रोह कर दिया। विद्रोहों को दबा देने के पश्चात सभी जागीरदार राज्यों का शासन चलाने के लिए केन्द्रीय सरकार की तरफ से अफसर भेजे गए। पश्चिमी हान सम्राट ऊती (शासनकाल 141 – 87 ई.पू.) ने एक सौ से अधिक जागीरों का उन्मूलन कर समूचे देश को 13 प्रान्तों में बांट दिया।
सूबेदारों व मजिस्ट्रेटों के काम का निरीक्षण करने के लिए हर प्रान्त में एक गवर्नर नियुक्त किया गया। इस के अलावा नमक बनाने, लोहा गलाने और सिक्के ढालने के कामों पर राजकीय एकाधिकार कायम करने जैसे कदम भी उठाए गए। परिणामस्वरूप केन्द्रीकृत सामन्ती राजसत्ता और भी सुदृढ़ हो गई। साथ ही देश में विभिन्न जातियों की जनता के बीच सम्पर्क भी निरन्तर बढ़ता गया। पश्चिमी हान राजवंशकाल में चीन एक शक्तिशाली व समृद्ध एकीकृत बहुजातीय सामन्ती राज्य बन चुका था।
पश्चिमी हान काल में सामाजिक अर्थव्यवस्था का खासा विकास हुआ। छिन राजवंश के अन्तिम काल में हुए किसान-युद्ध के फलस्वरूप व्यापक किसान-समुदाय को कुछ जमीन और सम्पत्ति मिली, जो उससे पहले छीन ली गई थी तथा बहुत-से दासों को मुक्ति प्राप्त हुई। जनता के रहनसहन की परिस्थितियों में सुधार हुआ तथा उत्पादन के विकास के लिए एक अनुकूल व सुस्थिर वातावरण पैदा हुआ। परिणाम-स्वरूप उत्पादकता तथा सामाजिक उत्पादन दोनों में वृद्धि हुई। पश्चिमी हान राजवंश के आरम्भिक काल के शासक अपनी आंखों से किसान-विद्रोहों की भयंकर शक्ति देख चुके थे, इसलिए उन्होंने छिन राजवंश के शीघ्र विनाश से सबक लेते हुए अपने शासन को सुदृढ़ बनाने और सरकार की आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से कृषि और दस्तकारी को प्रोत्साहन देने पर विशेष ध्यान दिया तथा "हल्की बेगार लेने व कम टैक्स वसूल करने"और "जनता को राहत देने"की नीति अपनाई। यह नीति अर्थव्यवस्था की बहाली व विकास के लिए भी फायदेमन्द साबित हुई।
कृषि का विकास उल्लेखनीय था। खेतीबारी में बैलों और लोहे के औजारों का और व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता था। वर्तमान ल्याओनिङ, कानसू, हूनान और सछ्वान आदि प्रान्तों या इनसे भी दूरस्थ इलाकों में खुदाई से प्राप्त पश्चिमी हान राजवंशकाल के लोहे के कृषि-औजारों से इस बात की पुष्टि होती है। लोहे के अनेक नए कृषि-औजारों का आविष्कार भी किया गया। ऊती के काल में, रसद-सप्लाई के इनचार्ज सेनापति चाओ क्वो ने दो बैलों से खींचे जाने वाले हल और बुवाई के औजार का आविष्कार किया था। उसने फसलों के हेरफेर (क्राप रोटेशन) का उन्नत तरीका भी प्रचलित किया, जिससे न सिर्फ़ पौधों के भरपूर पनपने में बल्कि भूमि के उपजाऊपन को बनाए रखने में भी काफी मदद मिली। बड़े पैमाने पर जल-संरक्षण परियोजनाओं का निर्माण करने और परती जमीन को खेतीयोग्य बनाने के फलस्वरूप कृषि का अभूतपूर्व विकास हुआ और अनाज की पैदावार में भारी बढ़ोतरी हुई। उस काल की"फ़ान शङचि की पुस्तक"में खेतीबारी के अनुभवों का निचोड़ निकालकर तब तक के कृषि के विकास का उल्लेख किया गया है।
पश्चिमी हान काल में दस्तकारी उद्योग का भी बहुत विकास हुआ था। लोहा गलाने के उद्योग का पैमाना काफी बड़ा हो गया था। कृषि या अन्य क्षेत्रों में काम आने वाले औजारों और हथियारों की किस्मों व उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ उनकी क्वालिटी में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ। नमक उद्योग दिनोंदिन पनपने लगा। रेशम की कताई, बुनाई और रंगाई में नई-नई तकनीकों का आविष्कार हुआ। उस समय तक ब्रोकेड बनाने के तरीके में भी महारत हासिल की जा चुकी थी। छाङशा शहर के मावाङत्वेइ नामक स्थान पर एक हान कब्र की खुदाई से पश्चिमी हान राजवंश के आरम्भिक काल की एक सौ से अधिक रेशमी चीजें प्रापित हुई हैं, जो बड़ी सुन्दर और बारीक काम वाली हैं। इन में जाली का एक वस्त्र भी है, जो पतंगे के पंख की तरह बहुत ही पतला है और जिस का वजन एक ल्याङ (पचास ग्राम) से भी कम है। लिनचि और छङतू उस समय के प्रमुख बुनाई-केन्द्र थे।
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