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(GMT+08:00) 2005-06-20 15:51:21    
हान राजवंश में विभिन्न जातियों के बीच सम्पर्क व सहयोग में वृद्धि

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पश्चिमी हान राजवंश के प्रारम्भिक काल में, श्युङनू जाति के लोग उत्तरी चीन के विशाल इलाकों में काफी क्रियाशील थे। वे हान जाति के लोगों को घोड़े और जानवरों के फर देकर उनसे कृषि व दस्तकारी की चीज़ें लेते थे। किन्तु, श्युङनू दास-मालिकों के अभिजात वर्ग और हान राज-घराने के बीच अक्सर फौजी मुठभेड़ें भी होती रहती थीं। ईसापूर्व 127, 121 और फिर 119 में सम्राट ऊती ने श्युङनू को पछाड़ने के लिये वेइ छिङ और ह्वो छ्वीपिङ जैसे सेनापतियों को विशाल फौजों के साथ भेजा था।

बाद में श्युङनू के मुखिया हूहानये ने पश्चिमी हान के साथ मैत्री बढ़ाने का निश्चय किया, और फिर पश्चिमी हान सम्राट य्वानती ने राजकुमारी वाङ चाओच्युन की शादी उससे कर दी। इस शादी के बाद श्युङनू और हान राजघराने के बीच दूतों का अक्सर आवागमन होने लगा तथा दोनों जनता के बीच के सम्बन्ध घनिष्ठ से घनिष्ठतर होते गए।

पश्चिमी हान राजवंशकाल में चीन के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में ईलओ, फ़ूय्वी, श्येनपेइ और ऊय्वान आदि अल्पसंख्यक जातियां रहा करती थीं। वर्तमान चच्याङ, फ़ूच्येन, क्वाङतुङ और क्वाङशी के इलाकों में रहने वाली अल्पसंख्यक जातियों को पाएय्वे के नाम से पुकारा जाता था। आज के युननान और क्वेइचओ के क्षेत्रों की अल्पसंख्यक जातियां सामूहिक रूप से "दक्षिणपश्चिमी ई"कहलाती थीं। उत्तरपश्चिमी क्षेत्रों में मुख्य रूप से ती और छ्याङ आदि अल्पसंख्यक जातियां बसती थीं। ये सभी अल्पसंख्यक जातियां लम्बे अरसे से भीतरी इलाकों की जनता के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रखती आ रही थीं। उन्होंने मातृभूमि के सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिए हान जाति की जनता के साथ मिलकर मेहनत से काम किया था।

बालकश झील के दक्षिण और पूर्व के क्षेत्र, अर्थात आज के शिनच्याङ के क्षेत्र, प्राचीन काल में पश्चिमी क्षेत्रों के नाम से मशहूर थे। ईसापूर्व 138 और 119 में सम्राट ऊती ने चाङ छ्येन के नेतृत्व में कान फ़ू सहित एक प्रतिनिधिमण्डल इन क्षेत्रों की यात्रा पर भेजा था, जिन में से केवल चाङ छ्येन और उनके सहायक कान फ़ू ही भाग कर जीवित लौटे थे। ये यात्राएं हान जाति और इन क्षेत्रों की जातियों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हुई थीं। तब से पश्चिमी हान सरकार पश्चिमी क्षेत्रों में अक्सर अपने दूत भेजती रही और बदले में इन क्षेत्रों के प्रतिनिधि भी छाङआन आते रहे।

इन क्षेत्रों से अंगूर, लहसुन, अखरोट और तिल जैसी उपजें तथा वहां का नृत्य व संगीत भीतरी इलाकों में लाया गया। इसी तरह, इन क्षेत्रों की जनता ने भी हान जाति से लोहा गलाने व कुआं खोदने की तकनीक सीखी और खेतीबारी का ज्ञान प्राप्त किया। ईसापूर्व 60(सम्राट श्वानती के शासनकाल "शनच्वे"के दूसरे वर्ष) में पश्चिमी हान सरकार ने खुनलुन पर्वतश्रृंखला के उत्तर में, थ्येनशान पर्वतश्रृंखला के दोनों ओर और दूर बालकश झील तक फैले विशाल क्षेत्र में अपना शासन चलाने के लिए बुगुर (वर्तमान शिनच्याङ के लुनथाए के नजदीक) में पश्चिमी क्षेत्र-प्रशासन की स्थापना की थी।

पश्चिमी हान राजवंश के उत्तरकाल में कुलीन लोग, उच्च अफसर और बड़े जमींदार ज्यादा से ज्यादा जमीन हड़पने लगे थे, जिससे अधिकाधिक उपजाऊ जमीन उनके हाथ आती गई और व्यापक किसान समुदाय भूमिहीन बनता गया। ये भूमिहीन किसान खानाबदोश होकर जगह-जगह मारे-मारे फिरने लगे या अपने को दासों के रूप में बेचने लगे। जैसे-जैसे सामाजिक अन्तरविरोध तीव्र से तीव्रतर होते गए, वैसे-वैसे किसान –विद्रोहों का तूफान प्रचण्ड रूप से उठता गया।

फलस्वरूप, पश्चिमी हान राजवंश के शासन की नींव खोखली हो गई। छै ईसवी में हान राजघराने के रिश्तेदार वाङ माङ ने सम्राट फिङती से सत्ता छीन ली। 9 ईसवी में उसने शिन के नाम से एक नए राजवंश की स्थापना की। सामाजिक अन्तरविरोधों को शिथिल बनाने के हेतु उसने अफसरशाही व्यवस्था, मुद्रा-प्रणाली, भूमि-व्यवस्था, कराधान और सरकारी इजारेदारी समेत अनेक क्षेत्रों में सुधार लागू किए।

लेकिन उस के अधिकतर सुधार वास्तविकता के अनुरूप नहीं थे। इस के अलावा, सुधारों के मुद्दे बहुत पेचीदा होते थे और उनका नियमन करने वाले कानूनों में निरन्तर परिवर्तन भी होते रहते थे। इस सब के कारण जनता में असुरक्षा की भावना और पूरे समाज में अस्थिरता बढ़ती गई। गम्भीर सामाजिक संकट अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया और अन्त में बड़े पैमाने के किसान-विद्रोह जगह-जगह फूट पड़े।